प्रेम' क्या है ? अहसासों की अभिव्यक्ति, अनुभूति, दर्द, टीस, जीने की वजह या ज़रूरत से ज़्यादा ही इस्तेमाल होने वाला महज एक शब्द। जो कभी सच्चा, कभी झूठा, कभी स्वार्थ-निहित, कभी मजबूरी भी हो जाया करता है। क्या प्रेम को समझने के लिए 'प्रेम' करना जरूरी है? शायद हाँ, इसे आत्मा को छूना जरूरी है, इसका रूह तक पहुँचना भी जरूरी है। न जाने कितने आडंबरों से घिरा हुआ है ये 'प्रेम'। पर यह किसी भी कोण से मात्र स्त्री-पुरुष के शारीरिक-आकर्षण तक ही सीमित नहीं। यह भी सच है कि जब इश्क़ की बात आए तो हम सभी लैला-मजनूं, हीर-रांझा, शीरीं-फरहाद, सोहनी-महिवाल की बातें करते हैं। कभी चर्चा होती है, राधा-किशन की तो कभी मीरा-घनश्याम की। यानी ये भी सदियों से तय है कि प्रेम में प्राप्य की इच्छा रखना बेमानी है। तो फिर हम सभी 'प्रेम' से 'प्रेम' क्यूँ नहीं करते? क्यूँ आजकल लोग मोहब्बत के नाम पर ख़ुद को तबाह कर लिया करते हैं और कुछ तो ऐसे भी किस्से होते हैं, जहाँ उम्र-भर साथ निभाने का वादा करने वाले आशिक़ अस्वीकृत हो जाने पर अपने ही प्रेमी/प्रेमिका को बर्बाद करने से नहीं चूकते। प्रेम का यह रूप कितना वीभत्स और घिनौना है। दरअसल ये 'प्रेम' है ही नहीं।
'प्रेम' को परिभाषित करना आसान नहीं, पर मेरा तो यही मानना है कि जीवन-अभिव्यक्ति का सबसे सार्थक रूप प्रेम ही है। यदि इस अहसास को पूरी तरह से जी लिया जाए, तो आपसी वैमनस्य, ईर्ष्या, कटुता, मन-मुटाव जैसे भाव स्वत: ही समाप्त हो जाएँगे। प्रेम एक सुखद अनुभूति है, जिसमें हमें पाने से ज़्यादा देने में सुख का अनुभव होता है। जिससे हम स्नेह करते हैं, उसकी खुशी अपनी-सी लगती है और उसकी ज़रा-सी परेशानी से मन जार-जार रोता है। उन पलकों से आँसू गिरने के पहले ही दुख को भाँप लेना और उसे दूर करने के लिए दिन-रात एक कर देना भी तो इसी प्यार का ही एक सुनहरा रूप है। आँखों में हर वक़्त अपने प्रिय की छवि और उसकी चाहत को दिल में बसाते हुए जीना कितना सुंदर अहसास होता है। 'प्रेम' मानव-जीवन की एक मिठास है, जिसकी प्रथम अनुभूति माता-पिता के अपार स्नेह और देखभाल से होती है। कहते हैं, जो हम दुनिया को देते हैं; हमें भी वही मिलता है तो फिर क्यूँ न हम सब स्नेह भरी वाणी से ही इस दुनिया का दिल जीत लें। कोशिश तो की ही जा सकती है, न ! जितनी वरीयता हम दूसरों को अपनी ज़िंदगी में देंगे, उतनी या उससे ज़्यादा प्राथमिकता शायद वो भी हमें दे दें ! न भी दें, पर हम तो अपना कार्य निश्छलता से करें. समर्पण भी तो प्रेम का एक व्यापक रूप ही है। बच्चों की परवरिश में प्रेमपूर्ण वातावरण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मार के ऊपर प्यार का पलड़ा हमेशा भारी रहा है। कभी इन्हीं नन्हे-मुन्नों पर आज़माकर देखिए।
स्त्री-पुरुष का प्रेम जितना सुंदर है, उतना ही क्लिष्ट भी। यहाँ अपेक्षाएँ रिश्तों पर हावी हो जाया करती हैं। कहीं अहंकार तो कहीं अवसाद घुन बनकर सारी सुंदरता को नष्ट कर देते हैं। संभवत: इसीलिए ज़्यादातर प्रेम-कहानियों का अंत दुखद ही होता है। मन से किसी से जुड़ना, विचारों-भावों का मिलन, साथ बीते कुछ हंसते-हँसाते पल इतना प्रेम ही काफ़ी है, जीवन जीने के लिए लेकिन इसके बिना भी तो जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इस ढाई आखर के शब्द ने पूरा साहित्य रच डाला है। 'प्रेम' न होता, तो किस पर लिखते? क्या लिखते? कैसे लिखते? न कविता होती, न कहानी, न गीत, न ग़ज़ल। हम सबके पास ऐसे न जाने कितने पल हैं, जो जीना सिखा देते हैं और अनायास ही हम उन्हें चाहने भी लगते हैं फिर लिख डालते हैं, इन्हीं मधुर-स्मृतियों को प्रेम की स्याही में डुबोकर। कभी मन भावुक हो उठता है, तो कभी प्रसन्न। कभी आँखें दुःख में बरसती है, तो कभी खुश हो छलकती हैं। 'प्रेम' ही 'साहित्य' है और 'साहित्य' ही 'प्रेम' है। 'प्रेम' शिक्षक भी तो है। यही हमें सिखाता है कि सब दिन एक से नहीं होते। सुख और दुःख दोनों ही को समान रूप से लेना चाहिए। परिस्थितियों में समय के साथ परिवर्तन अवश्य होता है, पर इंसान भीतर से वही रहता है। प्रेम विश्वास भी सिखाता है। दुनिया में कितनी खूबसूरती व्याप्त है, इसे सिर्फ़ एक स्नेहिल हृदय ही महसूस कर सकता है। अपने अंतर्मन से पूछिए,
क्या आपको प्रेम है -
बारिश की बूँदों से,
मिट्टी की खुश्बू से,
नदिया की कलकल से,
लहरों की हलचल से,
जंगल के हिरणों से
सूरज की किरणों से,
बहते इन झरनों से
पलते इन सपनों से
फूलों और कलियों से
गाँव और गलियों से
होली के रंगों से
घर के हुड़दंगों से
दीपक की बाती से
बगिया की माटी से
पेड़ों के झूलों से
कच्चे इन चूल्हों से
बच्चों की टोली से
मीठी उस बोली से...... और न जाने ऐसे कितने ही अद्भुत क्षण।
प्रकृति ने हर तरफ से अपने स्नेहांचल में ही तो हमें घेरे रखा है। हरे-भरे वृक्ष से झुकी हुई डालियां, उन पर बैठे खुशी में फुर्र से इधर-उधर फुदकते पंछी और फूलों पर मंडराते हुए भंवरे किसका मन नहीं मोह लेते। झील के किनारे घंटों यूँ ही बैठे रहना, कभी आसमान तो कभी पानी में उसकी छवि निहारना, सब कुछ शामिल है, इस प्रेम में।
हाँ, मुझे इस 'प्रेम' से 'प्रेम' है और आपको??
- प्रीति 'अज्ञात'
* 'साहित्य-रागिनी' वेब पत्रिका के लिए, फ़रवरी'२०१४ में लिखा गया मेरा 'संपादकीय' http://www.sahityaragini.com/rachna.php?id=209
'प्रेम' को परिभाषित करना आसान नहीं, पर मेरा तो यही मानना है कि जीवन-अभिव्यक्ति का सबसे सार्थक रूप प्रेम ही है। यदि इस अहसास को पूरी तरह से जी लिया जाए, तो आपसी वैमनस्य, ईर्ष्या, कटुता, मन-मुटाव जैसे भाव स्वत: ही समाप्त हो जाएँगे। प्रेम एक सुखद अनुभूति है, जिसमें हमें पाने से ज़्यादा देने में सुख का अनुभव होता है। जिससे हम स्नेह करते हैं, उसकी खुशी अपनी-सी लगती है और उसकी ज़रा-सी परेशानी से मन जार-जार रोता है। उन पलकों से आँसू गिरने के पहले ही दुख को भाँप लेना और उसे दूर करने के लिए दिन-रात एक कर देना भी तो इसी प्यार का ही एक सुनहरा रूप है। आँखों में हर वक़्त अपने प्रिय की छवि और उसकी चाहत को दिल में बसाते हुए जीना कितना सुंदर अहसास होता है। 'प्रेम' मानव-जीवन की एक मिठास है, जिसकी प्रथम अनुभूति माता-पिता के अपार स्नेह और देखभाल से होती है। कहते हैं, जो हम दुनिया को देते हैं; हमें भी वही मिलता है तो फिर क्यूँ न हम सब स्नेह भरी वाणी से ही इस दुनिया का दिल जीत लें। कोशिश तो की ही जा सकती है, न ! जितनी वरीयता हम दूसरों को अपनी ज़िंदगी में देंगे, उतनी या उससे ज़्यादा प्राथमिकता शायद वो भी हमें दे दें ! न भी दें, पर हम तो अपना कार्य निश्छलता से करें. समर्पण भी तो प्रेम का एक व्यापक रूप ही है। बच्चों की परवरिश में प्रेमपूर्ण वातावरण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मार के ऊपर प्यार का पलड़ा हमेशा भारी रहा है। कभी इन्हीं नन्हे-मुन्नों पर आज़माकर देखिए।
स्त्री-पुरुष का प्रेम जितना सुंदर है, उतना ही क्लिष्ट भी। यहाँ अपेक्षाएँ रिश्तों पर हावी हो जाया करती हैं। कहीं अहंकार तो कहीं अवसाद घुन बनकर सारी सुंदरता को नष्ट कर देते हैं। संभवत: इसीलिए ज़्यादातर प्रेम-कहानियों का अंत दुखद ही होता है। मन से किसी से जुड़ना, विचारों-भावों का मिलन, साथ बीते कुछ हंसते-हँसाते पल इतना प्रेम ही काफ़ी है, जीवन जीने के लिए लेकिन इसके बिना भी तो जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इस ढाई आखर के शब्द ने पूरा साहित्य रच डाला है। 'प्रेम' न होता, तो किस पर लिखते? क्या लिखते? कैसे लिखते? न कविता होती, न कहानी, न गीत, न ग़ज़ल। हम सबके पास ऐसे न जाने कितने पल हैं, जो जीना सिखा देते हैं और अनायास ही हम उन्हें चाहने भी लगते हैं फिर लिख डालते हैं, इन्हीं मधुर-स्मृतियों को प्रेम की स्याही में डुबोकर। कभी मन भावुक हो उठता है, तो कभी प्रसन्न। कभी आँखें दुःख में बरसती है, तो कभी खुश हो छलकती हैं। 'प्रेम' ही 'साहित्य' है और 'साहित्य' ही 'प्रेम' है। 'प्रेम' शिक्षक भी तो है। यही हमें सिखाता है कि सब दिन एक से नहीं होते। सुख और दुःख दोनों ही को समान रूप से लेना चाहिए। परिस्थितियों में समय के साथ परिवर्तन अवश्य होता है, पर इंसान भीतर से वही रहता है। प्रेम विश्वास भी सिखाता है। दुनिया में कितनी खूबसूरती व्याप्त है, इसे सिर्फ़ एक स्नेहिल हृदय ही महसूस कर सकता है। अपने अंतर्मन से पूछिए,
क्या आपको प्रेम है -
बारिश की बूँदों से,
मिट्टी की खुश्बू से,
नदिया की कलकल से,
लहरों की हलचल से,
जंगल के हिरणों से
सूरज की किरणों से,
बहते इन झरनों से
पलते इन सपनों से
फूलों और कलियों से
गाँव और गलियों से
होली के रंगों से
घर के हुड़दंगों से
दीपक की बाती से
बगिया की माटी से
पेड़ों के झूलों से
कच्चे इन चूल्हों से
बच्चों की टोली से
मीठी उस बोली से...... और न जाने ऐसे कितने ही अद्भुत क्षण।
प्रकृति ने हर तरफ से अपने स्नेहांचल में ही तो हमें घेरे रखा है। हरे-भरे वृक्ष से झुकी हुई डालियां, उन पर बैठे खुशी में फुर्र से इधर-उधर फुदकते पंछी और फूलों पर मंडराते हुए भंवरे किसका मन नहीं मोह लेते। झील के किनारे घंटों यूँ ही बैठे रहना, कभी आसमान तो कभी पानी में उसकी छवि निहारना, सब कुछ शामिल है, इस प्रेम में।
हाँ, मुझे इस 'प्रेम' से 'प्रेम' है और आपको??
- प्रीति 'अज्ञात'
* 'साहित्य-रागिनी' वेब पत्रिका के लिए, फ़रवरी'२०१४ में लिखा गया मेरा 'संपादकीय' http://www.sahityaragini.com/rachna.php?id=209
aapki is mantramugdh rachna se humein prem hai!
जवाब देंहटाएंwaah bahut hi sundar
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी प्रेममयी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंPrem ki sunder prastutikarn....
जवाब देंहटाएंआभार, सुरेंद्र जी, यशवंत जी, स्मिता जी, कैलाश जी और परी जी :)
जवाब देंहटाएंkhoobsurat prastuti ...shubhkamnaye..
जवाब देंहटाएंvisit here also .
anandkriti007.blogspot.com
अरे वाह्ह बहुत ही प्रेममयी प्रस्तुति प्रीती जी
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया आनंद जी और संजय जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सोच ने पर वीवश कर देने वाली रचना.
जवाब देंहटाएंpyari rachana prem ki
जवाब देंहटाएंI am really surprised by the quality of your constant posts.
जवाब देंहटाएंHi. Sir.. You really are a genius, I feel blessed to be a regular reader of such a blog Thanks so much.. -অনলাইন কাজ���� font copy and paste
muchLove quotes in hindi
very sad What'sapp dp
SAD STATUS IN HINDI FOR WHAT'SAPP STATUS