(दो दोस्त, पॉपकॉर्न खाते हुए)
उफ्फ, ये कचरा कहाँ फेंकूँ?
वो देख न उधर.…एक खाली रैपर पड़ा है, वहीँ डाल दे.
और नहीं तो क्या! एक हमारे डस्टबिन में डाल देने से कौन सी गंदगी साफ़ होने ही वाली है!
हम्म, वोई तो!
और बता, क्या चल रहा है?
बस, जी रहे हैं. जैसे-तैसे!
अच्छा, सुन..... पिछले वर्ष जो अपहरण और बलात्कार वाली घटना हुई थी, उसका क्या हुआ ?
कुछ नहीं, मामला अदालत में है!
हे,हे,हे.....अब तो इलास्टिक की तरह खिंचेगा रे भैया! जोर लगा के हईशा!
हा,हा,हा...पर बड़ी दया आती है न कभी-कभी?
एक हमारे अच्छे बनने से कौन-सा सुधार आने वाला है! जब हम नहीं सुधरे, तो देश क्या सुधरेगा!
सही पकडे हैं!
और वो उसके दो बरस पहले जो वृद्ध जोड़े को लूटपाट के बाद मार दिया था?
उसका भी वही हाल! तारीख़ें, बढ़ती जा रहीं हैं!
सात वर्ष पहले जो ज़िंदा जलाने वाला कांड हुआ था, किसको सज़ा मिली ?
पता नहीं, सुनते हैं एक गवाह मर गया और दूसरा मुक़र गया!
पच्चीस साल पुराना वो जघन्य हत्या का मुक़दमा?
अरे! उसके तो जज़ की ही हत्या हो गई और परिवार वाले न्याय के इंतज़ार में ही चल बसे!
ओह्ह्ह...क्या होगा, हमारे देश का?
हर दिन का अख़बार, अपराधों से भरा होता है.
अरे, फ़िल्में जिम्मेवार हैं इसकी!
पर वो तो समाज का आईना होती हैं न!
हाँ, सो तो है!
दरअसल, सारा दोष system का है, देखो न भ्रष्टाचार कितना बढ़ता जा रहा है? कोई कुछ करता ही नहीं! सब हाथ पे हाथ धरे बैठे हैं.
तुम्हारे बेटे के एडमिशन का क्या हुआ?
होना क्या था, एक लाख दिए..हो गया! दूसरे लोगों ने तो दो-तीन लाख तक दिए थे!
ओह्ह, फिर तो सस्ते में हो गया!
न जाने रिश्वतखोरों से कब इस देश को मुक्ति मिलेगी?
क्या करें मित्र, बड़ी प्रॉब्लम हैं!
ग़रीबी, घटती नहीं और महंगाई बढ़ती जा रही है!
उस दिन गाँव फ़ोन किया था, काका को?
किया तो था.
मैनें पूछा, क्या हाल हैं भाई? अबकी फ़सल तो अच्छी हुई न?
आँखों में पानी भर बोला...."हुई तो थी, पर बारिश ने सब लील लिया"
यहाँ 'सब' का मतलब मात्र 'फ़सल' ही नहीं...'आस', भी चली गई, वर्ष भर की रोजी-रोटी का जुगाड़ भी, अब वहां चूल्हा नहीं जलेगा, थका मन और शरीर loan को चुकाने की क़िस्तों में गुजर जाएगा !
कुछ घटेगा कहीं तो किसानों की संख्या!
सुना है, हर सरकार की प्राथमिकता सूची में पहला नाम इन्हीं का होता है!
इतने दशकों से सुन ही तो रहे हैं.
एक मिनट, घर से फ़ोन आ रहा है.
हाँ, मम्मी!
अच्छा, ठीक है. हाँ, सुपरस्टोर से ही लाऊँगा.
सुन, मॉल जा रहा हूँ. बाय
ओके, बाय
कल मिलते है. मैसेज कर देना मुझे.
हम्म्म, ओके बॉस!
चलिये, तब तक हम और आप अपने शहरी होने को celebrate करते हैं....बाक़ी फ़िक्र तब करेंगे, जब हमारी प्लेट खाली होगी!
हाँ, हेलो...Please, Take my order ! One large Mushroom Pizza with extra cheese........!
- © 2015 प्रीति 'अज्ञात'. सर्वाधिकार सुरक्षित
Pic : Clicked By Preeti 'Agyaat'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आज का पंचतंत्र - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंBahut badhiya ...ham hi nahi sudhrenge to kya thik hoga.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना .................
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना .................
जवाब देंहटाएंsahi pakde hain....good post...
जवाब देंहटाएंप्रिति जी, सभी समस्या की जड यही मानसिकता है कि हमारे अकेले से कया होगा? लेकिन असलियत यहीं है कि हम दुसरों को नहीं सुधार सकते, लेकिन खुद तो सुधर सकते है न? सुंदर प्रस्तुति...
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