यूँ तो हर मौसम के अपने-अपने दुखड़े और किस्से हैं लेकिन अहमदाबाद की गर्मी की तो बात ही निराली है. दरअसल इसे गर्मी कहना भी इस शब्द का अतिरेक सम्मान है क्योंकि यहाँ की गर्मी, गर्मी नहीं बल्कि 2000 डिग्री सेल्सियस की धधकती भट्टी है. आप आँगन में पापड़ रखकर दो मिनट मौन रखें, सिक जायेगा. बाल धोये हैं और पार्टी में जाना है? तो बस बालकनी से झांककर सब्ज़ी वाले को आवाज़ लगाइये, एक नया हेयर स्टाइल डेवलॅप हो चुका होगा. कपड़े तार के एक सिरे से डालना प्रारम्भ करें और फिर साथ-ही-साथ दूसरे सिरे से समेट भी लें. तात्पर्य यह है कि जो इंसान अपने मूल स्वभाव से विचलित हुए बिना यहाँ चैन से जी लिया, उसके चरणों की धूलि स्पर्श कर साष्टांग दंडवत बनता ही है क्योंकि इस प्रचंड गर्मी में सामान्यतः एक हँसमुख इंसान भी जब मार्केट जाता है तो आगबबूला होता हुआ, चिड़चिड़ा बनकर घर लौटता है. आप उससे पूछने की हिम्मत तो कीजिये कि "भई, सामान ले आये?" फिर देखिये वह कैसा ड्रैगन की तरह आग उगल फुफकारें मारेगा! स्त्री होगी तो पसीना पोंछते-पोंछते घर में घुसेगी और फिर सीधा ही सामने वाली कुर्सी पर धराशाई हो अचेतन अवस्था को प्राप्त हो जाएगी. सबसे अधिक परेशानी बच्चों को होती है. हँसते-खिलखिलाते, गोरे-चिट्टे बच्चे को सुबह बाय करके स्कूल भेजने वाली माँ दोपहर में उतरते मैले-कुचैले बच्चों से नज़र हटा यह सोच बस के अंदर तब तक झाँकती है कि "हाय! मेरा होनहार क्यों न उतरा!" जब तक बगल में खड़ा भुर्ते वाले बैंगन सरीख़ा खिसियाता बच्चा ख़ुद ही न बोल दे, "अरे, मम्मी! घर चलो न, बैग बहुत भारी है." दुपहिया वाहनों से आती सखियाँ भी तभी पहचान में आती हैं जब तक वो नाम लेकर न पुकारें. उफ़! पैकिंग ऐसी कि हवाई यात्रा के लगेज में रखे काँच के 'हैंडल विथ केयर' के सामान की भी न होती होगी. पैकिंग क्या जी, दस्तानों की लम्बी दास्तां है.मम्मियाँ, ममी की तरह पैक रहती हैं 😑😎पहचानने योग्य आँखों पर चढ़े गॉगल्स भी मुँह चिढ़ाते हुए पूछ रहे होते हैं, "पहचान कौन?"
अच्छा! एक बड़ी प्यारी बात भी होती है इस भीषण ऋतु में. वो ये कि चार रास्ते (चौराहा) पर किसी की गाड़ी से कुछ टच हो जाए, या चलते समय कोई साइड नहीं दे रहा हो न; तो उस समय भीतर कितना भी गुस्सा भरा हो पर बंदा कूल ही behave करता है. वो थके, निढाल चेहरे से आपकी ओर देखेगा और एक पल को आँखें बंद करेगा पर कहेगा कुछ नहीं! आप मन-ही-मन लड़ाई न करने वाले एक आदर्श नागरिक की कल्पना कर धन्य टाइप महसूस करते हैं पर दरअसल वह उस वक़्त इस चिलचिलाती गर्मी से लड़ रहा होता है और मारे कुढ़न के उसकी आवाज़ ही नहीं निकल पाती. सियाचिन के हमारे सैनिकों को सौ सलाम पर इस समय किचन में काम करने वाली गृहिणियाँ भी सादर, सप्रेम अभिनन्दन की सर्वाधिक हक़दार हैं. माथे, कमर, पीठ पर बहते हुए खारे जल स्त्रोतों और उनकी वाष्पीकरण की प्रक्रिया के विशुद्ध वैज्ञानिक फ़ील के साथ रोटियाँ बनाना भी हल्दी घाटी (कृपया मसाले के अर्थ में समझें) के युद्ध से कम नहीं होता जी!
लेकिन जैसे पंडित जी के पास हर मुसीबत से निकलने के उपाय होते हैं वैसी ही अन्न व्यवस्था यहाँ पर भी है. हर अमदावादी एक क्विंटल आइसक्रीम तो अकेले खा ही जाता होगा! मैंने शोध तो नहीं किया पर अनुमान है कि पूरे विश्व में आइसक्रीम की सर्वाधिक ख़पत इसी शहर में होती होगी. यहाँ हर मौसम में सैकड़ों तरह की आइसक्रीम मिलती हैं और दनादन खाई भी जाती हैं. यही हाल आमरस का भी है. किलो-विलो में आम कोई न खरीदता जी, पेटी आती है पेटी और आते ही सब पिल पड़ते हैं. सिर्फ़ इतना ही नहीं, अगले मौसम के लिए भी इस आमरस को डीप फ्रीज़ किया जाता है कि कहीं ऐसा न हो कि पारा पचास के पार पहुँचे और ये ख़ास आम तब तक बाज़ार में आ ही न पायें!
बहुत लिखा, थोड़ा समझना! हाँ, एक आख़िरी बात और......यदि आप जीवन से तंग आ गए हों और ये दुआ करते हों कि "हे, भगवान!अब तो उठा ले." तो ज्यादा कुछ नहीं करना है, बस AC में 22 का तापमान सेट करके एक घंटा बेतक़ल्लुफ़ी से बैठिये और दोपहर 12 से 3 के बीच अचानक बाहर आ जाइए. बिना टिकट सारी व्यवस्था अपने-आप हो जाएगी.
अतः हे, मानवश्रेष्ठ! आइये, पधारिए और कुछ दिन तो गुज़ारिए, गुजरात में! बस, गुज़र मत जइयो! 😝हेहेहे! ये मौसम का जादू है, मितवा
#आ_अमदावाद_छे! 😍
-© प्रीति 'अज्ञात'
#ahmedabad
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मजेदार इससे ज्यादा गर्मी हमारे श्री गंगानगर में होती है वैसे। नही तो गूगल करके देख लें राजस्थान के सबसे गर्म जिलों में नंबर 1 है हम। लेकिन दिमाग से ठंडे भी :P हमेशा की तरह रोचक पोस्ट
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आप,आप, आप और आप - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंकुछ मजा जैसलमेर दिल्ली आदि का भी लीजिए
जवाब देंहटाएंवाह! अति रोचक वर्णन...
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