रविवार, 5 अगस्त 2018

मित्रता दिवस

'मित्रता दिवस' के मनाये जाने से उन लोगों के पेट में एक बार फिर से जबरदस्त मरोड़ उठ सकती है जो वैलेंटाइन डे को मातृ-पितृ दिवस और क्रिसमस को तुलसी पूजन दिवस के रूप में मनाये जाने की वक़ालत किया करते हैं. मजेदार बात यह है कि फादर्स डे और मदर्स डे पर भी इनका यही सुर रहता है एवं तब इनकी सरगम से वही घिसी-पिटी धुन निकलती है कि "हम विदेशी दिवस क्यों मनायें जी, हमारे यहाँ तो सदा से माता-पिता पूजनीय रहे हैं." उसके बाद इनके द्वारा उदाहरण स्वरुप सदाबहार श्रवण कुमार जी की कहानी दोहराई जाती है जिसे सुन-सुनकर अब श्रवण कुमार की श्रवणेन्द्रियाँ भी असहज महसूस करती होंगी. मैं कभी यह सोच परेशान होती हूँ कि इनके पास और कोई उदाहरण क्यों नहीं होता! तो कभी तमाम वृद्धाश्रमों की तस्वीर आँखों में चुभने लगती है.  पर उस समय मेरा यह यक़ीन कि 'अच्छाई आज भी जीवित है', मुझे किसी निरर्थक बहस में पड़ने से रोक देता है. 
बहरहाल, बात चाहे जो भी हो पर मेरा मानना है कि 'जो अच्छा है उसका विरोध नहीं होना चाहिए.' ख़ासतौर पर तब जबकि वातावरण को दूषित करने के लिए कुछ लोग कटिबद्ध हो आपसी वैमनस्यता बढ़ाने की साज़िशें रच रहे हों. लोगों को तो इमरान ख़ान की इस बात से भी तक़लीफ़ हो गई है कि उन्होंने कपिल देव, गावस्कर और सिद्धू (siddhu) साहब को क्यों न्योता! यक़ीनन ऐसी सोच वाले दोस्ती का 'द' भी नहीं समझते.  

सकारात्मकता कभी बुरी नहीं होती इसलिए 'मित्रता दिवस' मुझे ईद, होली सरीख़ा लगता है क्योंकि यह तोड़ने नहीं, जोड़ने की बात करता है. जहाँ आप अपने मित्रों के गले लग पुराने गिले-शिक़वे दूर कर सकते हैं. जी चाहे तो उनकी पीठ पर मुक्का भी मार सकते हैं, लड़ सकते हैं और दुनिया-जहान की सारी परेशानियाँ उनसे साझा कर एक दर्ज़न गालियाँ खा अपने बेवकूफ़ होने का प्रमाणपत्र निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं. दोस्तों का कुछ बुरा नहीं लगता, उनकी नाराज़गी में स्नेह बरसता है. बस जब वो हमें नज़रअंदाज़ कर कहीं और भटकने लगें तब जरूर दिल गोलगप्पे सा फूलकर धचाक से टूट जाता है. पर जबसे सल्लू मियाँ ने बताया है कि 'दोस्ती की है तो निभानी तो पड़ेगी!' हम तुरंत ही मान भी जाते हैं.
- प्रीति 'अज्ञात'
* ये फोटो दो साल पुराना है, पर विचार अब भी वही हैं.
#मित्रता दिवस


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