बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

प्रेम और ठंडी चाय

वो दोनों, जिनके ह्रदय में अभी-अभी किसी सुनहरे ख़्वाब ने जन्म लिया है और जिन्हें लगता है कि उन्हें एक-दूसरे से बेपनाह इश्क़ है; पहले आप....की रस्म को निभाते हुए कल तक बेचैनी में प्रतीक्षा की हज़ार करवटें बदलेंगे। एक नया प्रेमपत्र लिखकर पहले वाले को नष्ट कर देंगे। वे अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत शब्दों की खोज में जुट जायेंगे। फिर शायद उनमें से कोई एक पहल कर ही दे, लेकिन उस पल ये सारी तैयारियाँ धरी की धरी रह जायेंगी और वही तीन पुरातन शब्द उनका काम आसान कर देंगे। तब ओपन रेस्टॉरेंट की टेबल पर रखे गुलाबों में एक अलग ही महक़ होगी। बहती हुई हवा सुगंध से भर किसी नई नवेली दुल्हन सा इस क़दर शरमायेगी कि गमले में लगे पनसेटिया की सारी पत्तियाँ एक साथ ही सुर्ख़ लाल हो उठेंगी, उस समय हरसिंगार पर फुदकते पक्षियों की आवाज़ 'इक प्यार का नग़मा है' से किसी प्रेमगीत सरीख़ी गुनगुनाती महसूस होगी। 

उधर जो पार्क में बेंच पर कोने में सिमटा दाएँ-बाएँ झाँकता प्यारा सा जोड़ा है न! उसे भूख ही नहीं लगती। वो आज हाथ थाम अपने सपनों को रंगबिरंगे पंख देगा। लड़की संजोये हुए सारे पंख जोड़ना चाहेगी पर लड़का उसका गाल थपथपाकर समझाएगा कि धीरे-धीरे सब अच्छा हो जायेगा, हमें ज्यादा फ़िक्र नहीं करनी चाहिए। लड़की को लड़के की हर बात सच्ची लगती है, वो पगली इस बार भी ख़ुशी से उसके गले लिपट बेवज़ह रो देगी। पार्क उम्मीदों की हरी रौशनी से जगमगा उठेगा और फूलों पर मचलती तितलियाँ लाख़ कोशिशों से भी किसी के हाथ न आएँगी। वहीं पास ही टहलता हुआ एक वृद्ध जोड़ा अपने दिनों को याद कर अनायास ही मुस्कुरा देगा।

कुछ ऐसे अभागे भी होंगे कहीं....जिनकी हथेलियों में इश्क़ की लक़ीरें बनते ही मिट चुकी हैं या जिन्होंने उसे हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया है। वे उस दिन आसमां से बातें करेंगे, चाँद के आगे अपनी वे सभी अर्ज़ियाँ एक बार फिर भरेंगे जिनकी क़िस्मत में खारिज़ होना ही लिखता आया है। उनकी दर्द भरी चीखें कहीं, किसी पार्टी के शोर-शराबे में दबकर रह जायेंगीं। वो इस सदी की सबसे लंबी रात होगी; जहाँ इनकी सर्द आहों से अगली सुबह का कोहरा और भी घना छा जाएगा। उनके ग़म को समझता सूरज भी हताश होकर फ़िर कई दिनों तक काली चादर ओढ़ चुपचाप सो जायेगा और किसी को अपना मुँह तक नहीं दिखायेगा।

इकतरफ़ा इश्क़ के मारे लोग, चाय की गर्म प्याली का पहला सिप भरते हुए उन बातों की स्मृतियों में खो जायेंगे; जब लिपटकर प्रेम का इज़हार किया जा सकता था या उसे किसी और की तरफ़ बढ़ने से रोका जा सकता था। वो उन पलों को भी कोसेंगे जब सुख की नन्ही तस्वीर से उसकी हँसी छीनकर किसी ने गाढ़ी स्याही से अथाह दुःख गोद दिया था। बीती तमाम स्याह होती एकाकी रातों की पीड़ा उनके चेहरे पर ठहर क्रूर अट्टहास करेगी। बदलते रिश्तों के इस दौर में उनकी हर साँस से अब भी दुआ ही निकलेगी लेकिन सच्चे प्रेम पर अपने विश्वास को चकनाचूर होते देख, यक़ायक उनकी निराश आँखों में हरी घास पर पसरी ओस की सारी बूँदें समा जायेंगी और उस दिन की घुटन भरी गहरी प्रतीक्षा, ठंडी चाय के प्याले में डूबकर अपनी जान दे देगी।   
- © प्रीति 'अज्ञात'

1 टिप्पणी: