शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

चिट्ठी न कोई संदेस


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'जग ने छीना मुझसे, मुझे जो भी लगा प्यारा'
शायद ही कोई ऐसा संगीत-प्रेमी होगा, जिसने अपने जीवनकाल में यह पंक्ति न गुनगुनाई होगी! यह जादूगरी केवल जगजीत सिंह को ही आती थी कि दुःख के समय में वे हर किसी के अपने हो जाते थे. उन्होंने ही यह यक़ीन भी दिलाया कि पीड़ा से भरी इस पंक्ति की हर ध्वनि अनगिनत प्रतीक्षाओं का मौन प्रत्युत्तर है और किसी के चले जाने के बाद भी उसके प्रेम में डूबे रहना ख़ुदा की इबादत से कम नहीं होता! ग़ालिब के अल्फ़ाज़ और उस पर जगजीत की आवाज ईश्वर की भेजी कोई बहुमूल्य चिट्ठी सी लगती है. प्रेमियों ने जब-जब प्रेम की पीड़ा को भीतर तक महसूस किया है तो उसे स्वर जगजीत ने ही दिए हैं और उनकी ये ग़ज़लें तो प्रेमियों ने घोलकर पी ली हैं - 'प्यार मुझसे जो किया तुमने, तो क्या पाओगी', 'तेरे ख़ुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे', 'कोई ये कैसे बताये कि वो तनहा क्यूँ है'.  मोहब्बत में धड़कते दिलों ने 'तुमको देखा तो ये ख़्याल आया', 'झुकी-झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं' , 'ये तेरा घर ये मेरा घर' गुनगुनाकर ही इश्क़ की मुश्क़िल मंज़िलें तय की हैं.

मैं जब अपने-आप के बारे में सोचती हूँ तो जगजीत एक परछाई की तरह साथ हो लेते हैं. वो मेरे सुख से हँसते हैं और दुःख में सिर पर सदा ही स्नेह भरा हाथ फेर पूछते आये हैं, 'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो'. कोई ताज़्जुब नहीं कि वो जब क़िताबों में डूबे रहने और खेलने का समय था, मुझे और मुझ जैसे न जाने कितनों को उनसे इश्क़ हो गया था. हम सब पागलपन की हद तक उनकी मखमली आवाज़ के दीवाने थे और उनकी गायी ग़ज़लों का अच्छा-ख़ासा कलेक्शन था हमारे पास. लड़कियाँ जब बाज़ार में सौंदर्य प्रसाधन ढूँढा करती थीं, हम चुपके से किसी म्यूजिक स्टोर पर जाकर उनकी नई एल्बम तलाश करते थे.

आज उन्हीं सब सिरफ़िरों की तरफ़ से एक स्नेह और अपनापन भरा पत्र है तुम्हारे लिए -
ओह! जगजीत..तुमको शुक्रिया उन सबकी तरफ़ से, जिनके दर्द को तुमने स्वर दिए हैं, जिनके ज़ख़्मों पर अपनी आवाज का मरहम लगाया है. तुमको क्या पता! कि महबूब से मिलने की हर उम्मीद जब-जब टूटी है तुमने उन टूटे दिलों को अपनी शरण दी है, उनके आँसुओं को गले लगाया है, उनकी पीड़ा को समझ उनकी पीठ पर तसल्ली का स्नेहिल हाथ फेरा है. 
दर्द को जब कोई न समझ सका तो वहाँ तुम थे, बिछोह का दुख जब-जब एकांत में चीत्कारें भर बिलखता था, तो वहाँ तुम थे, जीवन की निराश घड़ियाँ जब ख़ुद की भी एक बात तक नहीं सुनतीं थीं तो तुम्हीं ने आकर हाथ थामा.  जाने कितनी उदास रातों की तन्हा आवाज हो तुम, पीड़ा में डूबते हर हृदय की एकल पुकार हो तुम! 
यह भी तुम्हीं ने सिखाया कि चाहत किसी को अपने दिल मे जगह देने का नाम है, क़ैद करने का नहीं!
जब भी 'वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी' सुनती हूँ.स्मृतियों का हर सुनहरा भीगता पृष्ठ ख़ुद-ब-ख़ुद पलटता चला जाता है.

जीवन से जुड़े बस तीन ही मलाल रहे हैं उनमें से एक तुमसे न मिल पाने का भी है. मैंने तुमको तबसे सुना है, जब प्रेम समझती भी नहीं थी पर फिर भी तुम्हारी दीवानी थी. अब जबकि इस शब्द को जीने लगी हूँ तो तुम नहीं हो.कहीं भी नहीं हो! एक आवाज बन तुमने जो मेरा साथ निभाया है उस पर हज़ार ज़िंदगियाँ क़ुर्बान!
मुझे तुमसे कितना प्रेम है यह जताना भी बेतुका लगेगा.  बस इतना समझ लो कि जिसके भी पास दिल है उसकी हर दुआ में पहला नाम तुम्हारा है. उसकी धड़कनों में लहू के साथ मोहब्बत की तरह बहते हो तुम. उसके दुःख के सहरा में दवा की तरह रहते हो तुम. जैसे एक दोस्त की तरह कह रहे हो, 'ग़म का खज़ाना तेरा भी है, मेरा भी'. 

आज जबकि प्रेम के इस सप्ताह में तुम्हारा जन्मदिवस है तो तुम्हारी ही  डूबती आवाज़ में डूबती चली जा रही हूँ 'चिट्ठी न कोई संदेस, जाने वो कौन से देस जहाँ तुम चले गए'
मैं जानती हूँ जैसे कि मैं इसे कानों में लगाए नींद के आग़ोश में चली जाती हूँ वैसे ही तुम्हारी गोदी में सिर रखकर इन दिनों ख़ुदा को भी चैन की नींद आती होगी. काश! मेरी हर दुआ और शुक्रिया तुम तक पहुंचे! यूँ ईश्वर से शिक़ायत तो इस बार भी है!
- प्रीति 'अज्ञात'


4 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/02/2019 की बुलेटिन, " निदा फ़जली साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. "चिट्ठी न कोई संदेश , जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गये"

    प्रीति जी,

    मैंने वर्ष 1998-2000 में अपना हाई स्कूल और इंटरमीडिएट पास किया। मुझे अच्छी तरह याद है कि कैसे इतनी कम उम्र के बच्चे ग़ज़ल के दीवाने हो चुके थे। अधिकतर यूथ, बड़े ही शोर-शराबे व धूम-धड़ाम के गाने सुनते हैं। किन्तु 'जगजीत सिंह' जी मखमली आवाज़, दर्द और प्यार में डूबी ग़ज़ल की पंक्तियां हमें आत्मविभोर कर देती थीं। मैं और मेरे दोस्त जगजीत सिंह जी के हर नए म्यूजिक एल्बम का बेसब्री से इंतज़ार किया करते। टेप रिकॉर्डर का वो ज़माना आज भी याद है और मेरी अलमारियों में ग़ज़ल की कैसेट आज भी सजेह कर रखीं हैं।

    ऐसा कहा गया कि - 'चिट्ठी न कोई संदेश' का गायन जगजीत सिंह ने अपने पुत्र की मृत्यु के उपरांत किया। उनकी यह ग़ज़ल अपने पुत्र को समर्पित थी!! मैं नहीं जानता कि यह वाक्य कितना सच है; किन्तु हां जगजीत सिंह का बेटा 'विवेक सिंह' रोड एक्सीडेंट में मृत्यु को प्राप्त हो गया था। बेटे की मृत्यु ने जगजीत की आवाज़ में दर्द को और गहरा कर दिया।

    जगजीत सिंह साहब की व्याख्या जिस प्रकार आपने की, वह सच में कबीले-ए तारीफ है। आज के युवा विदेशी धुन, ओछे फ़िल्मी गीतों के शिकार हैं; भला उन्हें शब्द और भाव का ज्ञान कहां से मिले। हिंदी और उर्दू निरंतर अपना अस्तित्व खोती जा रही है। अब कहां हैं - आनंद बक्शी , एस एच बिहारी , राजेंद्र कृष्णा , मजरूह , खय्याम , शाहिर लुधियानवी , शैलेन्द्र जैसे लेखक हैं जो शब्दों में दर्द, भाव, प्रेम, एहसास को पैदा कर सकें।

    जगजीत सिंह पर लिखा आपका यह लेख सच में मुझे अतीत की ओर खींच ले गया।

    धन्यवाद
    रवि प्रकाश शर्मा

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    1. मेरे पास भी उनके सारे कैसेट्स हैं :)
      आपका बहुत-बहुत शुक्रिया.

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