"चाँद सृष्टि को उसके जन्मदिन पर उपहार में मिला चांदी का गोल सिक्का है जिसे उसने अपनी अलगनी पे झूलती आसमानी चादर पे इक रोज़ मुस्कुराकर टाँक दिया था। ये चादर दिन की भागती ज़िन्दगी को सुकून की ठंडी छाँव देती है। अपने-आप से हारते हुए आदमी की आँखों में उम्मीद के तमाम सपने भरती है। ये नीला बिछौना जब शाम समंदर में अपना चेहरा देख शरमाकर गुलाबी हो जाता है तभी खिलखिलाते तारे मिलकर इसे घेर लेते हैं। उस रात ख़ुशी के हजार रंग रातरानी का रूप धर ख़ूब महकते हैं।
जब तक आसमान पर ये सिक्का टिका है न....प्रेम को कोई डिगा नहीं सकता!"
- प्रीति 'अज्ञात'
जब तक आसमान पर ये सिक्का टिका है न....प्रेम को कोई डिगा नहीं सकता!"
- प्रीति 'अज्ञात'
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