A को लगता था कि B उसके साथ नहीं है तो हालात से हार मान उसका झुकाव C की ओर बढ़ने लगा. इधर C का मुँह पहले से फूला हुआ था तो उसने A को अपने पास फटकने भी नहीं दिया. B और C के नखरों से परेशान A के पास अब अपनी पुरानी प्रेमिका D की तरफ़ लौट जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था. ये वही थी जिसे एक बार A ने B की ख़ातिर ठुकरा दिया था. पर पुराने प्रेमी को देख D मुस्कुरा दी और A ने उसके गले में बाँहें डाल नई ज़िन्दगी के स्वप्न सजाने शुरू कर दिए. यह सब देख C निराशा के गहरे भंवर में डूब गई क्योंकि उसके दिल में अब भी A के लिए 'कुछ-कुछ होता था', लेकिन अब उसने इन सबसे किनारा करने का कठोर मन बना लिया था इसलिए वह अपने टूटे हृदय की किरचों को जोड़ने के जतन में लग गई.
इधर कहानी में एक नया ट्विस्ट आया. हुआ यह कि A और D अपने बियाह की जोरदार तैयारी में लगे थे, तब तक पंडिज्जी को B ने किडनैप कर लिया. ये पंडिज्जी D के रिश्तेदार थे और उन पर बड़ा भारी कर्ज़ा चढ़ा हुआ था. B ने उनका कर्ज़ा उतरवाने का प्रॉमिस कर दिया था. अब मुआ पैसा क्या न करवाए! प्रेम-व्रेम का क्या वो तो इन्हें दुबारा भी हो सकता है! बस इसी सोच के साथ पंडिज्जी (Dवाले) ने B का ताजा एवं तत्काल प्रणय निवेदन स्वीकार कर लिया. ख़ुशी में बावरावस्था को प्राप्त D (वोई रिश्तेदार वाले) B ने सोशल मीडिया पे अपनी DP बदल ली और अब वे अपनी बीड़ी सुलगा रहे. यह देख एक्चुअल D ने घबराकर ट्वीटिया दिया कि "जिन्ने हमें धोका दीया है. हम बिनके साथ नईं हैं. इनकौ सबक़ सिखानो परेगो."
A ने भी गुस्से में भरकर श्राप देकर कहा, "मरे, जे तो पापी लोग निकरे! आग लगे सबन में."
Dऔर B अपनी दुनिया में मशग़ूल बत्तीसी चमकाय रये और ख़ूब फोटू खिंचवान में लगे हैं और भक्तजन कुदकने में.
इस लघुकथा से यह सिद्ध होता है कि मोई जी ने जो AB वाला नया फॉर्मूला बताया था वो यही था! जो कि आज आख़िरकार सही सिद्ध हो ही गया!
जनता ने A को देख आह भरते हुए वही कहा जो उन्होंने बचपन में कहीं पढ़ा था, 'चौबे जी छब्बे बनने गए, दुबे होकर लौटे' (ये कहावत है कृपया दुबे जी एवं चौबे जी इसे दिल पर न लें). आज देख भी लिया. ओ मोरे राम!
पता नहीं ये राजनीतिक कुटिलता है या कि ग़ज़ब राजनीति की अजब परिभाषा! पर इतना तो तय है कि आज यदि असली वाले चाणक्य जी जीवित होते तो आँख खुलते ही हृदयाघात से स्वर्ग सिधार जाते क्योंकि उनसे ज्यादा होशियार लोग इस धरती पर पैदा हो चुके हैं.
बेचारी वोट देने वाली भोली जनता को अब ये समझना होगा कि सच्चाई, ईमानदारी और पारदर्शिता का ढोल पीटने वाली राजनीति का असल चरित्र क्या है!
सुनिए, सुनिए ये कानपुर वाले ठग्गू के लड्डू जैसे हैं, जिनकी tagline है "ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे हमने ठगा नहीं!"
हे ईश्वर! उनका क्या होगा जिन्होंने ट्रक भर मोहनथाल ऑर्डर कर दिए थे! क्यों न डिलीवरी पॉइंट बदलवा लिया जाए?
उधर न्यूज़ एंकर हकबकाकर समझ ही न पा रहे कि क्या बोलें, क्यों बोलें और कब बोलें क्योंकि रात को तो दूसरी स्क्रिप्ट तैयार की थी. ये ठीक वैसा ही है कि फ्रेंडली स्क्रीनिंग किसी और फ़िल्म की और थिएटर में कोई और रिलीज़ हो गई! ये धोखा है, फ़रेब है पर लोकतांत्रिक देश में किसी चुटकुले की तरह बार-बार सुनाया जा रहा है. लोगों की आँखें फटी रह गईं और दूर कहीं नीरो बाँसुरी बजा रहा है.
-प्रीति 'अज्ञात'
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बाप रे ई सब मैथ्स मेरे दिमाग में घुसता ही नहींं...हा हा हा हा..।
जवाब देंहटाएंइनको कोई फर्क़ नहीं पड़ने वाला पर इनके गड़बडझाले में आम जनता जरूर पगला जायेगी।