सोमवार, 6 अप्रैल 2020

कोरोना वायरस से समझौता वार्ता

हम अभी लॉन में बैठे हुए गिलहरी, तितलियों से उनकी मुस्कराहट और सुंदरता का राज़ बस पूछ ही रहे थे कि दरवाजे पर आहट सी हुई. इस समय कौन हो सकता है! सोचकर ही धुकधुकी होने लगी. फिर मन को कड़ा करके गेट तक पहुँचे. सुरक्षा के सारे मन्त्रों का नौ बार जाप करते हुए झाँका तो एक बॉलनुमा पर नुकीली संरचना नज़र आई. पहली नज़र में पहला प्यार तो नहीं हुआ पर चेहरा जाना-पहचाना सा लगा. ओह्ह! अरे! अच्छा! ये तो वही प्लास्टिक वाली पिंगपोंग बॉल है जिस पर आलपिन में गुलाबी मोती फँसाकर एक जमाने में हमने शो पीस बनाया था. 

अरे यार! तुम अब तक भीष्म पितामह टाइप कंटीली शैया पर ही हो! निकाल काहे नहीं लिए रे ये काँटे? आओ, हम निकाल दें. लड़ियाते हुए हमने मुखारविंद से उच्चारित किया. बस ट्वीज़र लेकर उसकी तरफ़ भावुक हृदय संग हाथ बढ़ाया ही था कि तभी मुझे उस बॉल चेहरे में दो क्रूर, कुटिल आँखें चमकती नज़र आईं. मुँह से OMG कहकर चीखना चाहा ही था कि तब तक गिल्लू और तितली मुझे घसीटकर अंदर ले आये और लगे डपटने, "कितनी बार कहा है आपको, लक्ष्मण रेखा नहीं क्रॉस करनी! मतलब नहीं करनी! जनता की तरह बिहेव मत करो!" 
"बहुत दिनों से मनुष्य नहीं देखा, बस इसलिए नैक निकल आये थे." हमने रिरियाते हुए सफ़ाई दी.

गला खरखराने लगा था कि पीछे फिर आहट आई और हमने भयभीत मन से गुनगुनाया, "जरा सी खांसी भी आ जाये तो दिल सोचता है....कहीं ये वो तो नहीं, हाआय कहीं ये वो तो नहीं!" 
"अरे! आंटी जी, जे वोई है", तितली ने कर्णपटल में घुसते हुए चीत्कार भरी. अब हमको तो घिघियावस्था को प्राप्त होना था सो पलटने की बजाय जम्प मारकर ठीक एक मीटर आगे पहुँच गए, फिर तनाव से मुक्ति हेतु अपने-आप से रोमांटिक अंदाज़ में दोनों बाँहे फैलाते हुए कहा, "पलट"
पर वो पिंगोलू जी तो कमर पर हाथ रखकर खड़े थे. हमने हाथ जोड़कर डिस्टेंस मेंटेन करते हुए कहा, "पिरनाम, कोरोना जी. वर्ल्ड टूर पे निकले हो का! जेट लेग हो जायेगा, जाओ अपने घर यू पिंग पोंग पिंग!"
"काहे जाएँ, सुना है बड़ा चर्चा है तोहार देस का? अतिथि देवो भवः हूँऊऊ ! यही कहत रहीं न सबसे?" वो गब्बर सिंह अंदाज़ में बोला. 
"जी, वो तो अब भी कहते हैं. तब ही तो आपको नमस्ते किये और सारी दुनिया को भी सिखा दिए हैं. आपके आने की जब चिट्ठी मिली तो पूरे देश में नगाड़ा पिटवा दिया था जी. कुछ लोग तो ग़ज़ब का परफॉरमेंस भी दिए थे. टीवी पे तो देखा होगा न हमार जलवा? अब का जान दे दें तोहार ख़ातिर?"

"देखा टीवी भी और तुम सबकी हरक़तें भी! जो ये सब तुम दुनिया वाले इतने वर्षों से प्रकृति भगिनी से छेड़छाड़ करते आ रहे हो न! इसकी सजा तुम्हें मिलेगी, बराबर मिलेगी." वह साक्षात् क्रोध की हार्ड कॉपी था.
"अब क्या बोलें! हमने तो आपका नमक भी नहीं खाया है." हम एक मीटर जमीन की तरफ झुकते हुए सकुचाते सॉफ्ट मोड में बोले. 
"खाने की जरुरत ही क्या है? बस हाइजीन मेंटेन मत करो. ईश्वर की तरह मैं भी कण-कण में व्याप्त हूँ." उसके इतना कहते ही बेचारी गिल्लू ने घबराकर मुँह में घुसा दाना बाहर उगल दिया. 

समझौता वार्ता अभी चालू थी. हमने कोरोना जी को वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए विनम्र भाव से कहा कि "भई माफ़ कर दीजिए. मनुष्य को अपनी भूल का अहसास हो चुका है. अब गुस्सा थूक भी दीजिये."
"थूकना मत! थूकना मत!" तितली पूरी ताक़त से चिल्लाकर दो बार बोली.
"देखा! तुम इंसानों से अधिक समझदारी तो इन जीव-जंतुओं में है." कोरोना जी ने अकड़कर कहा.
"जी, सो तो है! हमारे तो कुत्ते और गाय भी दो दफ़े दायें-बायें देखकर ही सड़क क्रॉस करते हैं." हम खींसे निपोरते हुए चहकने लगे.

अब हम दोनों थोड़ा घुलमिल से गए थे तो इनफॉर्मल होकर हमने उन्हें इन्फॉर्म किया, "थोड़ा ग्रॉसरी की परेशानी है और डेयरी पर दर्शन जैसी भीड़ देखकर दूध नहीं ला पाये थे, वरना चाय तो.....!"
"नहीं, नहीं बहिन जी! इट्स ओके." अबकी बार वो विनम्र था.
"अच्छा, ये बताइये कि आप जहाँ जाते हैं वहाँ रायते सा फ़ैल क्यों जाते हैं?"
"देखिये, पहली बात तो ये कि मैं आग्रह और आमंत्रण के बाद ही आता हूँ. फैलना नहीं चाहता पर आप सभी देशों का अहंकार, आत्ममुग्धता और ओवर कॉन्फिडेंस ही आपको ले डूबता है. आप प्रकृति की इज़्ज़त करना सीख जाइये, हमारी प्रजाति भी आपकी इज़्ज़त करने लगेगी. पहले अनुज स्वाइन फ्लू को दूत बनाकर भेजा था, उसको लतिया तो दिया आप सबने...पर अपने-आप को कब लतियायेंगे? कब सुधरेंगे?" वो आग-बबूला हो उठा.

"क्षमा कीजिए, प्रभु! पर आपका लुक देखकर पूछने का मन हो गया कि क्या आप भी पितामह की तरह अपनी मृत्यु का तरीक़ा साझा करना चाहेंगे?" हमने उसके गुस्से को इग्नोर मारते हुए निवेदन किया. 
"कूल डूड हूँ, सो बस ज्यादा गर्मी नहीं बर्दाश्त होती. घमोरियां निकल आती हैं." वह भोलेपन से बोला. 
"और कोई जानकारी?"
"जी मैं आपकी प्रजाति की तरह भेदभाव नहीं करता! सभी को समभाव से देखता हूँ, सेक्युलर हूँ. बड़े-बड़ों के मुग़ालते दूर करना मेरा प्रिय शग़ल है." उसने आँख मिचमिचाते हुए कहा.
"अच्छा, तो आप यायावर हैं?"
"पथिक ही समझिये."
"जी, लेकिन आपके ठसके और नख़रे देख ऐसा बिल्कुल नहीं लगता! आप आस्तीन के साँप हैं जो कुछ दिन बाद समझ में आते हैं. लेकिन आपको हमारी विशाल संस्कृति की शक्ति का रत्ती भर भी अनुमान नहीं! हम अकेले नहीं, करोड़ों एक साथ हैं. आपको टॉर्च देकर थोड़ा आगे का रास्ता तो समझा ही दिया है. अब आप सीधा निकल्लो जी!जाइये और अपने होम टाउन में वानप्रस्थ गुजारिये. तब तक आपको ट्रीट देने के लिए हम भी वैक्सीन की तैयारी करते हैं और देश को इस वार्ता की झलक सूत्रों के हवाले से देकर आते हैं." कहकर हम अदब से उठ खड़े हुए.

देखा, तो मुंडी नीचे कर, पाँव घसीटता हुआ कोरोना वायरस जाकर नंन्हे श्वान पुत्रों से भिड़ रहा था, "क्यों बे! झूठ बोल रहे थे न! इन्होने तो हमें टमाटर खिलाया ही नहीं!"
वो कुछ जवाब दे पाते तब तक उनके पिताजी अपने गुट के साथ दौड़ते हुए आये जिन्हें देखते ही कोरोना सरपट भाग खड़ा हुआ.
मैं मन ही मन धन्य महसूस कर रही थी कि हमारे पास हर चीज़ का तोड़ है. अजी, हम बेजोड़ हैं!
-प्रीति 'अज्ञात'
#Lockdown_stories9

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहुत ही रचनात्मक, गहराई तक असर डालने वाला और मजेदार बातचीत।

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  3. बहुत ही सुन्दर समसामयिक वार्तालाप
    वाह!!!

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  4. शानदार अभिव्यक्ति!
    सामायिक विषय पर रोचक सृजन।

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