बुधवार, 1 अप्रैल 2020

#Lockdown_stories4

सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेकर रात तक
रात से लेकर सुबह तक, सुबह से फिर शाम तक.....बस काम करोओ...हो ओ बस काम करो।

 
हैं!!! 
उदित जी-अलका जी! ये मैं क्या सुन रही हूँ?
आनंद बक्षी साब - नहीं, बिटिया। मैंनें तो ठीक ही लिखा था। शायद तुम्हारा ही मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। तुम्हें दुआ नहीं डॉक्टर की ही जरुरत है।  
ओह्ह! नहीं -नहीं! अपन ऐसे ही मंत्र याद करके जी लेगा। कान की मशीन लगवा लेगा, संगीत भूल जाएगा पर डॉक्टर के यहाँ नहीं जा पायेगा, मोई जी। वहाँ बहुत भीड़ है, परेशानी है। 
क्षमा कीजिये, प्रभु! ।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि
अर्थात हे मनुष्य! तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फल में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मफल में हेतु रखनेवाला मत हो तथा तेरी अकर्म में (कर्म न करने में) भी आसक्ति न हो। 
जजज्जी,पंडिज्जी। हमारे तो घर में लगे आम के पेड़ में भी दस बरस से एक आम न आया। हम तो उसके फल की भी इच्छा करना भूल चुके हैं और उसे वानर जाति के सुपुर्द कर दिया है। नीबू भी 90% बाँट देते हैं, 10% चुरा लिए जाते हैं। हम तो घर बैठे-बैठे दुश्मनों के दांत खट्टे कर देते हैं। कितनी वीरता और त्याग की कहानियाँ सुनेंगे जी? अभी तो चर्चा शुरू हुई है। 
बाक़ी सब बढ़िया है। 
-प्रीति 'अज्ञात'
#Lockdown_stories4  

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