रविवार, 3 अप्रैल 2022

चुनाव ही ज़िंदगी है, है न?

सुबह अलार्म बज गया है, आँखें खोलें या थोड़ी देर और सो लें? चाय-बिस्कुट सामने है, पहले एक चुस्की ले लें या बिस्कुट कुतर लें? अखबार का पहला पन्ना खोल, पहले हेडलाइन देख लें या फोटो निहार लें?… असंख्य चुनावों को रोज जीते हैं हम। इन्हीं पर खुश होते, इन्‍हीं पर पछताते हैं हम। कभी चुनाव को लपकते, और कभी चुनाव से कतराते हम। अपने चुनावों पर आँखें फाड़े विचार करते, और उन्हीं को नज़रअंदाज़ करते हम। चुनाव ज़िंदगी है, उसको जीने का सलीक़ा सीखते हम।

होता है, न! जब रात की नीम बेहोशी के बाद सुबह आँख खुलती है और एक नया सवेरा दस्तक़ देता है। उसी दौरान हम सहज भाव से बिस्तर पर पड़े हुए ही अपने लिए यह चुनाव कर लेते हैं कि आज क्या-क्या करना है। यदि हमारी योजना सही है तो उस दिन को एक सुंदर दिन बनने से कोई नहीं रोक सकता! तात्पर्य यह कि चयन हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। सब्जी-भाजी से लेकर, कपड़े-लत्ते तक, हम अपनी सुविधानुसार प्रतिदिन कुछ न कुछ चुनते आए ही हैं। रेस्टोरेंट में क्या खाना है, उस पर भी गंभीरता से सोच विचार करते हैं लेकिन कुछ चुनाव ऐसे हैं जो हमारा जीवन बदल सकते हैं। उन्हें हम कपड़ों के रंग की तरह नहीं चुन सकते हैं।

‘चयन’ की यही महत्ता है। सही चयन ही हमारे जीवन की दशा और दिशा तय करता है।

उत्तम शिक्षा का चुनाव इन्हीं में से एक है। सही शिक्षा, हमें भाषायी सभ्यता की ओर ले जाती है। हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाती है। प्रतिकूल परिस्थिति में भी यह हमें अभद्रता, अशिष्टता से मीलों दूर रखती है। हमारे भविष्य के निर्माण की महत्वपूर्ण सीढ़ी, यह शिक्षा ही है। हमें हमारे बच्चों के लिए महंगे विद्यालयों से अधिक फोकस इस तथ्य पर करना चाहिए कि उन विद्यालयों, महाविद्यालयों का वातावरण कैसा है। यह तो जानी हुई बात है कि परिवार के साथ-साथ एक अच्छा शिक्षक ही हमारे व्यक्तित्व निर्माण को प्रभावित करता है। हम आज जो कहते, करते या सोचते हैं,  हमारे ये संस्कार कोई आज अचानक हुई बात नहीं है। इसके बीज तो हमारे विद्यालय के प्रथम दिन से ही पड़ने प्रारंभ हो गए थे।

हमारे मित्र कैसे हों? इस बारे में सोचना भी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि हमारे जीवन का रंगहीन या रंगीन बनना उनके चयन पर निर्भर करता है। बच्चे के बुरे व्यवहार को ढकते हुए कितनी सरलता से आक्षेप मढ़ दिया जाता है कि सब इसके दोस्तों की ‘संगत का असर’ है। ऐसा कहकर माता-पिता ने स्वयं को तो दोषमुक्त कर लिया, पर उस बच्चे का क्या! क्या हमने उसे अच्छे मित्र की पहचान का पाठ कभी पढ़ाया? हमने कभी कहा कि बेटा, जो गरीबी और दुख में भी तुम्हारे साथ अडिग खड़ा है, वही तुम्हारा सच्चा मित्र है। जो तुम्हारी गलतियों पर दुनिया के सामने प्रश्नचिह्न नहीं लगाता बल्कि तुम्हें प्यार से समझाता है और सुधारने के लिए प्रेरित भी करता है, वही सही मायनों में तुम्हारा अपना है। बात बच्चों तक ही सीमित नहीं है। उम्र के किसी भी मोड़ पर हम खड़े हों, स्वार्थी एवं नकारात्मक दोस्तों से एक निश्चित दूरी बनानी ही होगी।

कहते हैं ‘प्रेम अंधा होता है’, यह कहकर नहीं होता। मैं भी मानती हूँ कि कब कोई अचानक ही अच्छा लगने लगता है और हम दिल के हाथों विवश हो जाते हैं। प्रेम पर सचमुच किसी का बस नहीं! लेकिन प्रेम में भी संभलकर चलना बहुत जरूरी है। प्रेम डगर आसान कतई नहीं होती। इसलिए जीवनसाथी के चुनाव में जल्दबाज़ी नहीं होनी चाहिए। धड़कते दिल के साथ, दिमाग की सारी बत्तियाँ भी जलती रहें।  प्रेम के पलों से हसीन कुछ नहीं होता लेकिन जीवन अलग ही शर्तों पर चला करता है। यहाँ निराशा, हताशा और अवसाद के पल भी हैं। क्या उन पलों में आप अपने साथी के सिर पर कांधा रख रो सकते हैं या उन्हें झटक दिया जाएगा? आपकी सफ़लता में आपका साथी उतना ही प्रसन्न होता है, जितने आप हो या कि उसकी मुस्कान खोखली है? उसे आप पर विश्वास है या कि छोटी-छोटी बातों पर भी उसके मन में संदेह घर कर लेता है? इन प्रश्नों के उत्तर ही हमारे जीवन को संवार या बिगाड़ सकते हैं। इसलिए सही साथी का चयन, हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। वैसे तो मैं प्रेम विवाह के पक्ष में हूँ पर यदि माता-पिता तय करते हैं तो उनको भी लड़के/लड़की के परिवार, नौकरी, मासिक आय के साथ-साथ संबंधित पक्ष का सामाजिक व्यवहार भी समझ लेना चाहिए। उनके सही चुनाव पर उनके बच्चों का भविष्य टिका है।

कई बार रिश्ते इतने कड़वे हो जाते हैं कि जीना दूभर लगने लगता है। कभी यूँ भी महसूस होता है कि ‘इस दुनिया में हमारा कोई नहीं!’ या कि ‘हमारे जाने से किसी को कोई भी फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला!’ इसका कारण कुछ भी हो सकता है, व्यक्ति की बेरोज़गारी, नौकरी का छूटना, परिवार या मित्रों से तनाव, कर्ज़, अपने साथ हूए यौन अपराध की पीड़ा, घुटन, विवशता! दुखों की एक ऐसी लंबी सूची हम सबके पास है जो हमें जब चाहे कुंठा, अवसाद और घोर निराशा के भंवर में फेंक सकती है। उस दुख से उबरने का सबसे पहला तरीक़ा यही नज़र आता है कि ‘मर जाएँ!’ लेकिन ठहरकर सोचिए कि जब हमने इस जीवन में पहला क़दम रखा था तब कितने निर्दोष मन के और प्रसन्न रहे होंगे हम। लेकिन जबसे हमने अपेक्षाओं का चयन किया, दुख घेरता चला गया। यह जीवन किसी भी पीड़ा या दुख से ऊपर की चीज़ है और इसकी सार्थकता इसी में है कि इसे पूरे हर्षोल्लास के साथ जिया जाए। दुख को मात देकर जिया जाए। हमारी खुशी का चयन, हमारे हाथ में है। जीवन और मृत्यु में से हमें सदैव जीवन को ही चुनना होगा। हमारे ‘जन्म’ को हमने नहीं चुना तो मृत्यु को चुनने का कोई अधिकार हमें नहीं है। हम खुलकर जिएं, जमकर जिएं।

हम अपने ही नहीं, दूसरे के वजूद को भी उतनी ही अहमियत दें। अभी कुछ दिनों पहले ही एक महिला की आत्महत्या की खबर सामने आई। कारण ‘पोस्ट प्रेगनेंसी डिप्रेशन’ बताया गया, जिससे हर महिला जूझती है। उसने बच्चे को जन्म दिया,  फिर उसको सार्थक बनाने का चुनाव बाकी लोगों के लिए क्या इतना कठिन था कि उसने अकेला, असहाय महसूस किया? क्या ये निर्विवाद रूप से नहीं होना चाहिए कि उसने अपना सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य निभाया तो आसपास का समाज उसे सही साबित करने या औचित्य देने का चुनाव क्यों नहीं कर पाता! क्या वाकई विकल्प नहीं होते? ये ‘तेरा काम तू जाने’ की मानसिकता ने हमें किस मोड़ पर ला छोड़ा है!

क्या ऐसा नहीं लगता कि हमें हमारे जीवन मूल्यों के चुनाव पर डटे रहना चाहिए? हमारे नैतिक और सामाजिक मूल्यों के चयन का उत्तरदायित्व हमारा है? हमारी खुशी, हमारे परिवार, समाज और इस देश की खुशी की नींव ही हमारे उत्तम चयन पर निर्धारित है।

हम कई बार निर्णयों को लेकर असमंजस में रहते हैं। प्रायः बाद में समझ आता है कि “तब ये कहना चाहिए था, वो कहना चाहिए था।” लेकिन वे कौन लोग हैं जिन्होंने सही समय पर सही चुनाव किया और सफ़लता की नई परिभाषा गढ़ी। हमें उन लोगों के बारे में जानना, पढ़ना होगा, उनसे सीख लेनी होगी।

अब तक मैंने राजनीतिक चुनाव की बात नहीं की है। थोड़ा बचती हूँ क्‍योंकि एक यही चुनाव तो है, जिसके बारे में हर तरफ से 24 घंटे ज्ञान दिया जाता है। लेकिन, इस महीने चूँकि 5 राज्‍यों में विधानसभा चुनाव होने हैं तो मैं भी अपने ज्ञान की एक आहुति चुनावी चकल्‍लस वाले हवन में डालना चाहती हूँ। ये बिल्‍कुल नहीं कहूँगी कि आप किसे वोट दें, और किसे नहीं। प्रभावित भी नहीं करूँगी, क्‍योंकि इसका ठेका भी बहुतों ने ले रखा है। हाँ, अपने स्‍वभाव के मुताबिक इतना जरूर कहूँगी कि बाकी चुनावों की तरह ये चुनाव भी पूर्वाग्रह और नकारात्‍मकताओं से दूर रहकर हों। अकसर पूर्वाग्रह और नकारात्‍मक विचार हमें कल्‍याण और सकारात्‍मकता से परे कर देते हैं। ‘हमारे सपनों का भारत’ बनाने के सफर में महत्‍वपूर्ण कदम है मतदान, लेकिन यह नितांत आवश्यक है कि यह कदम उठाने से पहले उत्तम चयन के समस्त अध्याय हमें कंठस्थ हों।

- प्रीति अज्ञात 

'हस्ताक्षर' फरवरी 2022 अंक में प्रकाशित संपादकीय 

https://hastaksher.com/why-the-exercise-of-selection-is-necessary-choice-is-life-isnt-it-editorial-by-preeti-agyaat/

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