रविवार, 3 अप्रैल 2022

शराबबंदी: अब पाप के प्रायश्चित का समय आ चुका है!

बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार जी ने हाल ही में शराबबंदी को लेकर एक महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा, ‘जो लोग बापू की भावनाओं को नहीं मानते, शराब का सेवन करते हैं उनको मैं हिंदुस्तानी ही नहीं मानता! ऐसा करने वाले काबिल तो हैं ही नहीं, वे महा-अयोग्य और महापापी हैं।’ उनके इन शब्दों को कुछ लोग बेहद हल्के में ले रहे हैं। इसकी खूब खिल्ली भी उड़ाई जा रही है। नीतीश कुमार के बयान पर आ रही प्रतिक्रिया को मैं हमारे समाज से जोड़कर समझना चाहती हूँ। जानना चाहती हूँ कि जो लोग इस बयान पर हँस रहे हैं उनकी मानसि‍कता कैसी है! वे शराबबंदी जैसे विषय पर सतही तर्क क्‍यों दे रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि ‘शराब पीना महापाप है’ सुनकर हँसने वाले स्वयं ही नशे में हैं।

शराब यदि इतनी ही भारतीयता से भरी होती तो इसे पीने वाले छुपते नहीं! ये धड़ल्ले से बिकती भले ही हो लेकिन हमारे समाज में इसका सेवन सदैव ही गलत माना जाता रहा है। इसे छुपाकर लाया जाता है, छुपाकर ही रखा जाता है और पीने वाले भी यह सुनिश्चित करते हैं कि पीते समय पकड़े न जाएं! छुपकर अपराध होता है, समाज-सेवा नहीं! भारतीय परिवारों में इसको स्वीकार्यता नहीं प्राप्त हुई है और हो भी क्यों? शराब पीकर किसी का भला हुआ है क्या?

पीने वाले इसे क्यों पीते हैं? क्या इसके औषधीय गुणों के लिए? वह पेय जिसे ग्रहण करने के बाद आपका मन-मस्तिष्क अपना संतुलन खो बैठे, आत्मबल शून्य हो जाए, वह स्वास्थ्य की दृष्टि से तो कतई लाभदायक नहीं है। न ही इसके बाद कोई सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। सब जानते हैं कि शराब के अत्यधिक सेवन से देह शिथिल हो जाती है और व्यक्ति अपने होश खो बैठता है। ऐसी स्थिति में वाहन चलाते हुए दुर्घटनाग्रस्त होने की या किसी को कुचल मार डालने की अनगिनत घटनाओं के हम साक्षी हैं। नशे की आड़ में तमाम अपराधों को अंजाम दिया जाता है। घरेलू हिंसा के अधिकांश किस्सों की जड़ में शराब की भी भूमिका रही है। शराबी का परिवार नकारात्मक माहौल में रहने को अभिशप्त रहता है तो इसे पीने वालों को महा-अयोग्य और महापापी क्यों न कहा जाए!

बापू की याद दिलाकर कौन सा पाप कर दिया, नीतीश जी ने? उनके कथन का उपहास उड़ाकर हम महान नहीं बन रहे बल्कि एक ऐसी वस्तु का समर्थन कर रहे हैं जिसने असंख्य जीवन नष्ट कर दिए। समाज का सिस्टम ऐसा है कि हर वस्तु का नकली और सस्ता संस्करण साथ ही तैयार कर लिया जाता है फिर भले ही उसके लिए किसी की जान से खिलवाड़ ही क्यों न करना पड़े! अवैध शराब का बनना और भारी मात्रा में बिकना इसी का उदाहरण है। उसके बाद लोग मरते हैं तो मरें, किसको फ़र्क़ पड़ता है! मरने वालों में ज्यादातर तो मजदूर वर्ग के होते हैं जो चंद रुपयों के लिए दिन भर खटते हैं। उस यातना को भुलाने के लिए जैसे मर ही जाना चाहते हैं, तभी पी लेते होंगे!

कुछ लोग अपनी कमी से मुँह चुराने के लिए नशा करते हैं। असफ़लता के बाद नशा करते हैं। प्रेम में दिल टूटने के बाद नशा करते हैं। ग़म भुलाने के लिए पिए जाते हैं! लेकिन दुख पीछा छोड़ता नहीं क्योंकि अब शराब की लत और जुड़ जाती है।

मनुष्य की सोच, उसकी समझ ही उसकी शक्ति है लेकिन शराब उसे क्षीण कर देती है। ऐसे में शराब नहीं पीने की बात, यदि किसी सरकार की तरफ से आई तो क्या गलत? आगाह ही तो कर रही आपको। इस वैधानिक चेतावनी को समझिए और इससे होने वाले गुण-दोषों की सूची बनाइए तो संभवतः कथ्य के मर्म तक पहुँच सकें!

हमें तो रोज इस नशाखोरी को कोसना चाहिए। रोज यह प्रार्थना करनी चाहिए कि प्रत्येक राज्य शराबमुक्त हो, नशामुक्त हो।  क्योंकि अभी तो चाहे गुजरात हो या बिहार, शराबबंदी होने से वहाँ नशा बंद नहीं हुआ है! पड़ोसी राज्य हैं न मदद को! उस पर एक संगठित तंत्र है जो आपकी सेवा को सदा तत्पर रहता है।

कई सरकारें ये दलील देती हैं कि शराब से उन्‍हें राजस्‍व प्राप्‍त होता है, जिससे वे समाज कल्‍याण के काम करते हैं। यह बेतुका तर्क है। इतना ही नहीं, किसी का जीवन बर्बाद करने की सामग्री को उपलब्ध कराकर, फिर उससे मुक्ति के केंद्र भी खुलवाए जाते हैं। उस पर आत्मसंतुष्टि का आलम  यह कि वैधानिक चेतावनी तो दे ही दी गई है!

एक स्वस्थ और संपन्न समाज, बापू का सपना था। अब बापू के इस देश को शराब के नशे से मुक्त रखने का प्रण होना चाहिए और यह क़दम केंद्र सरकार की तरफ़ से उठे, तब स्थिति बेहतर होगी। जब वस्तु, उपलब्ध ही नहीं होगी और न ही उसके विकल्प होंगे, तभी मुक्ति मिलेगी। नीतीश जी ने जो कहा, वह प्रशंसनीय है। लेकिन अब पाप के प्रायश्चित का समय आ चुका है। समय आ गया है कि पूरा देश इस पर एकमत हो। नागरिकों के अच्छे दिन लाने के लिए, नशाबंदी एक ठोस एवं आवश्यक क़दम होगा। देखना यह है कि ‘जहाँ पैसा ही भगवान है’, वहाँ वैधानिक चेतावनी देकर या ‘उड़ता पंजाब’ जैसी फ़िल्में बनाकर ही देश आगे बढ़ता रहेगा या कि देशवासियों के खुशहाल जीवन और उत्तम स्वास्थ्य हेतु सचमुच परिवर्तन की कोई आस रखी जा सकती है!

- प्रीति अज्ञात

'हस्ताक्षर' अप्रैल 2022 अंक में प्रकाशित संपादकीय

https://hastaksher.com/nitish-kumar-i-just-dont-consider-them-indian-those-who-do-not-believe-in-bapus-feelings-and-consume-alcohol-editorial-by-preeti-agyaat/

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3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत चिंतनपरक लेख प्रीती जी।कहते हैं,पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए।उन्हें अपने एन्द्रिय सुख से मतलब है।निश्चित रूप से नितीश कुमार का बयान सही है। गाँधी के देश में मदिरापान अक्षम्य अपराध है। दुख की बात है कि पहले कथित अभिजात्य वर्ग की कुछ औरतें ही सुरापान करती थी,आजकल आम वर्ग की लड़कियाँ भी इस शौक की ओर आकर्षित हो रही हैं।स्वस्थ समाज की कल्पना 9इस दुर्व्यसन का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

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