गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

माननीय बुलडोज़र जी की अलौकिक महिमा

समय का खेला देखिए कि कहाँ हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिंतित थे लेकिन अब देसी स्तर पर दुखी होना पड़ रहा है। हमने तो रूस- यूक्रेनयुद्ध की चिंता में स्वयं को भयानक रूप से व्यस्त कर रखा था कि बुलडोज़र अंकल ने मस्तिष्क के चारों प्रकोष्ठों के द्वार जोरों से खटखटा दिए। अब यूक्रेन को तो समझदार एवं मतलबपरस्त दुनिया ने भी छोड़ ही रखा है, यह सोच मन को तनिक समझा लिया है। पर राष्ट्रहित के नाते, एक सच्चे देशवासी का 'लोकल पे वोकल' होना परमावश्यक है। ये हमारे देश की और इसकी जांबाज़ मीडिया की ही ताक़त है कि प्रत्येक ज्वलंत मुद्दे से खटाक से फोकस बदल दिया जाता है। 

अब इसका कारण तो आज प्रातः की मधुर बेला में समझ आया कि इत्ते दिनों से श्रीमान परम आदरणीय, माननीय बुलडोज़र जी की महत्ता क्यों दर्शाई जा रही थी। बताइए, हमारे अपने अमदावाद में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन जी बुलडोज़र प्लांट के उद्घाटन के लिए पधार चुके हैं और हमें कानोंकान खबर तक न हुई। पर अब न केवल हमारे ज्ञानचक्षु ही खुल गए बल्कि मन की आँखें भी हमने चौपट्टा खोल दी हैं। इन अंग्रेजों का ‘फूट डालो,राज करो’ से मन भर नहीं पाया था क्या जो नया शगूफ़ा छेड़ दिया? बताइए, बुलडोज़र काहे को बन रहे? हर राज्य में सप्लाइ होने को ही न? अब वहाँ पिरसाद तो बाँटेंगे नहीं! सोच रहे कि ‘सुरक्सा’ की दृष्टि से हम भी एक बुक करा ही लें। कभी भिड़ंत हुई तो हमरी मर्सिडीज़ और ऑडी का तो इससे मुक़ाबला हो ही न पाएगा। उल्टे पिचकड़ा और बन जाएगा।  

सच कहूँ तो ‘बुलडोज़र संस्कृति’ ने न्याय तंत्र की तपती जलती घमौरियों को राहत दे दी है। वैसे भी उनके भरोसे कुछ हो तो रहा नहीं था।खामखाँ आरोपी मुस्टंडे हुए जा रहे थे और सबूत लाने वाले मिटते चले जा रहे थे। ऊप्स! आई मीन दुर्घटनाग्रस्त। ऊपर से दवाबका टेंशन अलग!
जिसने विरोध किया, इस्तीफ़े से कम पर फिर बात न बन सकी! या फिर हार्ट अटैक ने ही पैकअप करा दिया। कानून के हाथ लंबे होते हैं तो हुआ करें! अंधा भी तो है न। तभी तो  किसी के गिरेबान तक पहुँचने में कई बरस लगा देता है। कभी मनमाफ़िक शक्ल न मिलने पर 'मसबूरी' में गिरेबान छोड़ना भी पड़ जाता है। तात्पर्य यह कि प्रियश्री बुलडोज़र अंकलजी की क़ातिलाना नज़रों से कोई बच नहीं सकता! घायल करके ही दम लेती हैं। दोषी-वोषी वाली जाहिलपने की बात तो तुम करना ही मत!  

वैसे भी चीखने-चिल्लाने से काम न बनेगा जी! वे तो हेडफोन पहनकर काम कर रहे हेंगे। उनको कछु सुनाई नई आ रओ। जब हाड़ मांस के बने मनुष्यों के हृदय पाषाण बन चुके और अक्ल पर गुफा के बाहर न खिसकने वाला सौ मन का पत्थर पड़ा हुआ है तो भैया, मशीनों के हृदय पसीजने की उम्मीद रख आप स्वयं को ही धोखा दे रहे हो। हम तो एक ही सलाह देंगे कि बिना कोई चूँ-चपड़ किए बच सको तो बच लो! क्योंकि बुलडोज़र अंकल तो पढ़े-लिखे हैं नहीं। मतलब 'सिक्सा' से इनका दूरदराज तक का भी नाता नहीं। सिविक सेंस होता नहीं! अतः वे इन्फॉर्म करके तो कुचलने से रहे। अब तो सीधे यलगार होगी और खेल खत्म! सब मटियामेट। वैसे भी भौतिक वस्तुओं से क्या और कैसा मोह। माटी की देह को भी माटी में मिल जाना है। बस मौत से पहले देशहित में अपने अमिट योगदान के अंतर्राष्ट्रीय तरीके को प्रशंसनीय कहना न भूल जाना। ज्यादा दुख हो तो सिर पटककर मंदिर-मस्जिद की देहरी पर रो लेना। उनका कुछ तो यूज़ हो!

भगवान जी बहुत सालों से भक्तों की लीला देख रहे हैं कभी न कभी उनके शांत चेहरे पर डिट्टो वही भाव दिखाई देंगे, जैसे उनके पोस्टर में प्रदर्शित किए जा रहे हैं। तब तक संतोष रखो।  वे मूरख थे जो ‘गरीबी हटाओ’ की रट लगाते रहे, जरा इनसे मैगी न्याय सीखो। गरीब को हटाने से दो विकराल समस्याओं- गरीबीऔर बेरोज़गारी का डायरेक्ट सूपड़ा साफ़ हो जाता है। मतलब न रहेगा बेरोजगार और न इसकी बेरोज़गारी की बाँसुरी की कर्कश ध्वनि मखमली समाज पे पैबंद की मानिंद चिपकी रहेगी।
अब तो जी इधर दंगा हुआ और उधर लपेटे में पूरा मोहल्ला। नगर निगम का काम आसान। एक ही झटके में सारे अवैध निर्माणों की लिस्ट हाथ आ जाती है। तो क्या जो किसी के हाथ कटे हैं तो कटे हैं, दुकान तो उसकी भी टूटेगी बाबू। इत्ता गोल्डन चांस दुबारा जाने कब मिले और फिर हाथ तो ठाकुर  के भी नहीं थे। उसने बताया न कि साँप को हाथों से नहीं, पैरों से कुचला जाता है। तो भई, कुचले जाने का डर इत्ता गहरा बैठा कि मारे घबराहट के बुलडोज़र भैया भी जरा दाएं बाएं घूम गए। यद्यपि मानसिक संतुलन इतना तो था कि ठोकर उधर ही मारी जिधर साब जी ने बताई थी। कुल मिलाकर विक्षिप्त नहीं हुए।  

उनको रूल क्लीयर कट पता हैं कि नेता का बेटा है तो दंगाई नहीं माना जाएगा। कार से कुचलेगा तो भी उसके घर को अतिक्रमण का ठप्पा लगाकर नहीं तोड़ा जाएगा क्योंकि इन बड़े लोगन के घर भौत जादा हार्ड होते हैं और उस पर उनका मकराना का ऐसा संगमरमरी हुस्न कि बुलऊ फिसल जाए।  
इस विकराल मशीन को गुमटी, झोंपड़ी, खोमचा ठेला, कच्चे घर टाइप चीजें पलटने में मज़ा आता है। क्योंकि उसके आसपास रोते हुए लोग, अपनी चीज़ें बटोरते-बिलखते लोग किसी के मन की बात का विषय नहीं बन पाते। भावनाओं को नहीं झिंझोड़ पाते! बल्कि इस बर्बादी में सबको तसल्ली की और अपनी संकल्पना के साकार होने की मधुर धुन सुनाई देती है। राष्ट्र को और सुंदर, महान बनाने के लिए सब mango people अपने नंबर के लिए तैयार रहें, क्योंकि मरना, कुटना, कुचलना और फिर बुक्के फाड़कर रोना आप ही के भाग्य में लिखा है।
- प्रीति अज्ञात
#बुलडोज़र #Bulldozer #प्रीति अज्ञात #PreetiAgyaat



2 टिप्‍पणियां: