लोग कहते हैं, कि लड़के हमेशा लड़कियों के इर्द-गिर्द चक्कर लगाया करते हैं. पर मुझे ऐसा क्यूँ लगता है कि ये प्रथा तो हमारी पृथ्वी जी ने शुरू की है. :P देखो तो ज़रा, बरसों से सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाए ही जा रही है और अब तक हार नहीं मानी. लेकिन इस दुष्ट 'सूरज' को आजतक ये बात समझ नहीं आई दिखती है, जब देखो तब लाल-पीला हुए आएगा और जाते समय भी वही अकड़! दिन में भी तमतमाया ही घूमता है! :/ हद है, इत्ती ऐंठ किस बात की ? कभी तो 'Down To Earth' हो जाओ रे! :) तेरा कित्ता इलाज करवाया, गॉगल्स (बादल) भी लगवाए. पर तेरा कुछ नहीं हो सकता, दूर रहकर जलाया ही कर बस! ध्यान रख, मेरे बिना तू भी बहुत बोर होगा, क्या करेगा वहाँ अकेला आसमान में टॅंगकर! खैर, जा अभी तो; शाम के ७ बजने को हैं, अब कहीं जाके डूब ही मर ! हाँ, नहीं तो.....! :P :D
Moral : ओये, आ जइयो कल फिर से... Same time, Same satellite. , उफ्फ्फ, तेरी आदत जो पड़ गई है. :)
Moral : ओये, आ जइयो कल फिर से... Same time, Same satellite. , उफ्फ्फ, तेरी आदत जो पड़ गई है. :)
sabhi chakkar mein rahte hi hai ..waah ji kya kahne!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, मीनाक्षी जी :)
हटाएंचक्कर में तो आजकल आधी से ज्यादा दुनिया पड़ी हुई है
जवाब देंहटाएंबहुत मजेदार....मै तो पढ्कर हसने लगी और अपने बेटे को भी सुनाया पढ के...।वो भी मुस्कुरा रहा है....:)
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