बिहार के बक्सर जिले के अनूप ओझा आजकल सुर्ख़ियों में हैं. वे मंझवारी गांव में बने क्वारंटीन सेंटर के मेहमान हैं. आपने न तो माउंट एवरेस्ट पर फ़तह हासिल की है और न ही मंगल ग्रह पर अपने युवा चरण टच किये हैं. बल्कि आपने तो वो कर दिखाया है जिसे जानकर सबका मुँह हाय रब्बा कह खुला का खुला रह जाए.
सामान्य कद काठी के अनूप आम तौर पर एक बार में आठ-दस प्लेट चावल या 35-40 रोटी के साथ दाल-सब्जी खाते हैं. एक दिन 83 लिट्टी खाकर उन्होंने सबको हैरत में डाल दिया था. वे अपने गांव में भी कई बार शर्त लगाकर एक बार में करीब सौ समोसे खा जाते थे. इनकी डाइट हैरान कर देती है जिसकी बराबरी में बकासुर थाली को ही रखा जा सकता है. अच्छी बात यह है कि अनूप इस बात को लेकर बेहद सहज हैं. वे खूब कसरत भी करते हैं और दस लोगों के बराबर काम भी. उनका वज़न भी 70 किलो ही है. उनके भोजन के लिए यहाँ विशेष व्यवस्था होती है.
सबका अपना-अपना मेटाबॉलिज्म होता है भई. इसलिए हमें उनकी डाइट से कोई दिक्कत नहीं! बस, समोसे वाली बात ने ही थोड़ी हार्दिक तकलीफ़ दी है. हम तो आधा समोसा भी खाएं तो अगले दिन दोनों गालों पर एक-एक समोसे की हार्ड कॉपी उभर आती है. अब, अनूप जी को क्या पता कि इस जहान में हम जैसे दुखियारे लोग भी हैं जो इसी 70 को नीचे गिराने के लिए पाँच वर्षों से प्रयासरत हैं. पर अर्थव्यवस्था की तरह failure ही बनकर रह गए. जिस दिन इतना खा लिया न, तो क़सम से रात को लिलिपुट के रूप में सोयेंगे और सुबह पुराने वाले अदनान सामी के रूप में पुनर्जन्म होयगा. ये दस लोगों का काम कर लेते हैं पर हमें तो उठाने ने में ही दस लोग लग जायेंगे. काम की बात तो एकदम फॉरगिव एंड फॉरगेट ही कर दीजिये.
तभी तो अपन ने तो जब से ये न्यूज़ पढ़ी, मारे जलन के एकदम अटैक टाइप ही फ़ील होने लग गया था. हाथों में पसीना, जी घबराना और सीने में बहुत जोर वाला दरद. हमारा मेटाबॉलिज्म तो वर्षों से थाइरॉइड अंकल की दुआ को मद्देनज़र रखते हुए अघोषित हड़ताल पर चल रहा है तो भाईसाब इत्ती परेशानी है कि का बताएँ! आप ऐसे समझो कि हम तो सांस भी जोर से लें न, तो फेफड़ों में भरी हवा भी weighing मशीन पर शो होने लगती है और तुरंत तीन सौ पच्चीस ग्राम वज़न बढ़ा दिखता है.
चीनी के डर से चाय ही छोड़ दी हमने, मुई चाय क्या गई जैसे ज़िंदगी ही चुपचाप निकल गई हो हाथ से. बस जैसे-तैसे इस धरा को धन्य कर पाना मेन्टेन करे ले रहे हैं क्योंकि अभी देश को हमारी बहुत जरुरत है. आदरणीय मोदी जी ने भी एक बार समझाया था कि हमें इस कठिन घड़ी का डटकर सामना करना है. डटकर उत्ता मैनेज हो नहीं पा रहा तो हँसकर ही करे लेते हैं. सुप्रभात में भी एक बार अठारह अलग-अलग फ़ोन नंबरों से डिट्टो फोटू वाला मेसेज आया था कि मुसीबतों का सामना हँसते हुए करना चाहिए. अब 'इत्ते लोग कह रहे हैं तो सही ही होगा' वाली शीपिश वॉक पालिसी पर हमको खूब भरोसा है. वैसे भी विज्ञान कहता है कि हँसने में रोने से कम मसल्स लगती हैं तो आलसी लोगों के लिए भी अच्छा! अपना क्या है, जब दिल हुलकारे मारेगा तो भीतर ही भीतर रो खुदै को किचकिचा लेंगे.
अब एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न आप सबके महान मस्तिष्क में सर्प कुंडली मार बैठ गया होगा कि यार! अपन मोटे हैं या नहीं, ये पता कैसे चलता है! अरे, बड़ी सिम्पल टेक्नोलॉजी है बस एक कुर्सी पर बैठ मोजे पहनने या जूते के फीते बाँधने की कोशिश करें. यदि आसानी से बँध जाए तो मुबारक़ है और लुढ़क गए तो चीख मार घर वालों को तुरंत अपने मोटे होने की मार्मिक सूचना दें.
हम तो आदरणीय चंचल जी के गाने का सत्यानाश कर रोज़ ही ख़ुद को भोरे-भोरे श्रद्धांजलि पहुँचा देते हैं -
मोटे का दुःख क्या होता है, और कोई ये क्या जाने
उसका खाSSना देखूँ मैं, जिसने थाली भर खाSSया हैSS
हो चलो बुला SSवा आया है, योगा ने बुलाया है.
भाड़ में जाओ, ओ सॉरी जय ट्रेडमिल की
हर बात 'दर्द-ए-ज़िगर' नहीं होती हज़ूर! कभी-कभी 'दर्द-ए-फ़िगर' भी होता है.
अनूप जी, आप तो मस्त रहिये और हम जैसे जलकुकड़ों को इंस्टेंट इग्नोर कर दीजिये. हो सके, तो बस एक दिन के लिए ये मेटाबॉलिज्म हमको दे दो जी.
- प्रीति 'अज्ञात' 28 May 2020 #Latepost #Metabolism #thyroid #weightloss
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