मोदी जी भले ही 'विश्व योग दिवस' का श्रेय ले लें पर इस बात में कोई संदेह नहीं कि योग को दुनिया भर में यदि किसी व्यक्ति ने पहुँचाया है तो वो बाबा रामदेव ही हैं. इसके लिए तो 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' WHO द्वारा उन्हें एक पुरस्कार देना बनता ही है. हाँ, उनकी 'दिव्य कोरोना किट' के साथ दिक़्क़त ये हो गई कि बाबा ने इन्हें कोरोना के शर्तिया इलाज़ की तरह प्रचारित कर डाला. बस, किरपा इधर ही अटक गई है जी. अरे, कह देते कि इससे अच्छा इम्युनिटी बूस्टर दुनिया में कोई न बना सकता! दुनिया तो तब भी आपके उत्पादों को हाथों-हाथ लेती. बाबाजी की ब्रांड कोई जेम्स बॉन्ड से कम थोड़े न है! सच तो यह है कि पतंजलि का कोई दुश्मन ही नहीं! अब वो स्वयं ही कुल्हाड़ी पर पैर मार लें तो हम भौंचक्के ही हो सकते हैं और क्या!
आप उनकी वेबसाइट पर चले जाइए. प्रवेश द्वार पर ही दो मुस्कुराते चेहरों के साथ 'योग और आयुर्वेद का दिव्य संगम' पढ़ मन-मस्तिष्क सुखद अनुभूति से भर उठता है. हृदय आह्लादित हो अपने चारों प्रकोष्ठों संग इस दिव्यता को पाने का घनघोर नाद कर उठता है. लालची मनुष्य थोड़ा और जीवन पाने को लालायित होने लगता है.
हम सब जानते ही हैं कि समय के साथ-साथ बाबा रामदेव जी का भी विकास होता रहा और देखते ही देखते पतंजलि पीठ ने देश भर में अपनी पैठ बना ली. अब व्यवसायी होना तो कोई ग़ुनाह नहीं! विकास पर सबका हक़ है. हम भी चाहते हैं कि हमारा आने वाला कल बीते हुए कल से बेहतर हो! यहाँ तो एक व्यक्ति आपके सभी तंत्रों की शुद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की बात कर रहा है, उसके पास जड़ी-बूटियाँ हैं, तमाम वनस्पतियों को उनके श्रेष्ठतम रूप में औषधि की तरह परोस देने का हुनर है तो उसका स्वागत क्यों न हो! एलोपैथी के साइड इफेक्ट्स तो हम सब जानते ही हैं. इन्हीं कारणों से स्वहित के उद्देश्य से सबने दिल खोलकर पतंजलि के उत्पादों का स्वागत किया. एक- एक कर हम सबके घरों में इन उत्पादों ने घर कर लिया.
शुरुआत भले ही औषधि से हुई पर उसके बाद हमारी रसोई का भी उन्हें पूरा ख़्याल रहा. जब सही खाओगे तभी तो दवा और असरकारी होगी तो हम इस दिव्य कंपनी का गुड़, घी, तेल बूरा,ओट्स सब गुणकारी खाद्य पदार्थों का नियमित सेवन करने लगे. पर हाय इन निर्जीव बर्तनों को कैसे शक्ति दें? ये चिंता हमें खाए जा रही थी. चिंता नक्को, अपने प्रिय अलादीन बाबा ने तुरंत ही डिश वाश बार पेश किया फिर अपन ने डिटर्जेंट भी ले लिया. एक प्रश्न अब भी शेष था कि आंतरिक तो ठीक पर इस बाहरी काया का क्या करें? कैसे इसके हुस्न में इज़ाफ़ा हो? ये अरमान भी पूरे हुए. दाँतों के लिए दंतकांति ने हमारी मुस्कान में ऐसे वृद्धि की कि हमसे जुडी सारी भ्रांतियाँ दूर हो गईं और हम हँसमुख कहलाये जाने लगे. सौंदर्य निखारने को दिव्य उबटन की प्राप्ति हुई. तत्पश्चात
सौंदर्य एलोवेरा gel, फेसवाश से मित्रता हुई. उस पर कायाकल्प ऑयल, शैम्पू,
बॉडी लोशन
और मेंहंदी ने तो हमारा कायापलट ही कर दिया. तात्पर्य यह कि हमारे घर का प्रत्येक कक्ष बाबा का ऋणी है. जी, हम पतंजलि की पूजा हवन सामग्री, ग्लास क्लीनर, एयर फ्रेशनर को भी भूले नहीं हैं. उऋण होने के लिए हमें अब कोरोना किट का सेवन करना ही होगा! मरते दम तक हम आदरणीय के साथ खड़े हैं. यूँ हम मरेंगे ही कायको? अपन तो दिव्या हैं और अमरत्व की ओर हौले-हौले बढ़ रहे हैं.
हम तो चाहते ही यही हैं कि अगली बार बाबा अपनी टीम से कोई औषधि बनवाएं और बस ग़लती से इतना कह जाएँ कि 'इसके सेवन से कोई मरेगा नहीं!' फिर देखिये उनकी इस बात को अपने हिसाब से एडजस्ट कर लोग ये समझेंगे कि अरे, वाह! अब तो अमरत्व प्राप्त करके ही रहना है. भोले लोग, बस मन का ही तो सोच लेते हैं. इसमें उनका क्या दोष! बड़े ही दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि इस समय स्वामी जी की स्थिति 'चौबे जी छब्बे बनने गए और दुबे होकर लौटे' की मानिंद है. पर मुझे मेरे बाबा रामदेव पर पूर्ण विश्वास है. मैं जानती हूँ कि इस विवाद का भी कोई तोड़ निकलेगा और एक दिन परम पूज्य जी चक्रवर्ती अवश्य बनेंगे.
- प्रीति 'अज्ञात'
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सुन लिया कान खोल कर :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं😀😀😀😃👌👌👌वाह! बहुत सुंदर व्यंग
जवाब देंहटाएंप्रीति जी। बाबा जी की उपलब्धियों ने दिलखुश कर दिया। लोग तो झूठ मुठ की दवाइयाँ बेच कर मुनाफ़ा कमा रहे हैं, यहाँ तो बाबाजी गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखते हैं और अपने बाबाजी ने यदि राजनीतिक खेमे में घुसपैठ ना की होती तो उन्हें शांति नोबल मिलने की पूरी संभावना थी , पर बाबा जी की वाचालता ने सारा काम खराब कर दिया 😊😊