पार्श्वगायक के.के. नहीं रहे! यह खबर जबसे मिली है, मन शोक में डूबा है। यह ठीक वैसा ही अहसास है जैसा श्रीदेवी और इरफ़ान के गुजर जाने की खबर सुनकर हुआ था। मन मानने को तैयार नहीं होता! भला ऐसा कैसे हो सकता है! पर ऐसा हो गया है! जीवन का सच यही है कि ऐसा कभी भी, कहीं भी, किसी के भी साथ अचानक हो सकता है। इस दुनिया में हमारे आगमन की तिथि तो फिर भी तय हो जाती है पर विदाई अकस्मात ही होती है। किसी अपने का यह अकस्मात या आकस्मिक निधन ही भीतर तक तोड़ देता है। संभवतः इसी कारण मृत्यु कभी कहकर नहीं आती क्योंकि उसे स्वीकारने की और उसके साथ राजी-खुशी चले जाने का साहस हममें कभी नहीं आ सकता! न ही किसी अपने से जुदा होने की तारीख तय होने पर हम इस जीवन को इस तरह जी सकेंगे, जैसे जिए जा रहे हैं।
यूँ सामाजिक नियमावली के आधार पर के.के. मेरे अपने नहीं थे। न भाई, न दोस्त, न पास या दूर के रिश्तेदार। उनसे संगीत का रिश्ता था, आवाज का रिश्ता था, भावनाओं का रिश्ता था। मेरे लिए केके मात्र गायक नहीं, एक इमोशन थे। एक ऐसा इमोशन जिसने युवाओं की दोस्ती, उनकी मोहब्बत और उससे जुड़ा सुख-दुख जैसे घोंटकर पी लिया था। यही तरलता उनकी गायकी में बहती थी। जादू कुछ ऐसा कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाए। यूँ वे कभी कभार कुछेक मंचों पर शायद आए होंगे पर मैंने उनकी आवाज केवल गीतों में ही सुनी, वे अपने गीतों के माध्यम से ही सर्वाधिक मुखर रहे। उनके गीत ही हमसे बोलते रहे, उन्हें ही हम जीते रहे। कलाकारों का काम ही बोलता है। उन्हें हर जगह अपना चेहरा दिखाने की आवश्यकता नहीं होती! केके ने यही शांत, सरल और लाइमलाइट से दूर रहने वाला जीवन चुना। हालाँकि इसका नुकसान यह हुआ कि तमाम युवाओं की धड़कन बनी इस आवाज का नाम हर कोई नहीं जानता था। सब उनके गीत गुनगुनाते रहे, तमाम महफ़िलों में गाते भी रहे होंगे। प्रेमी जोड़ों ने भी अपनी कहानी इन्हीं गीतों के इर्दगिर्द बुनी होगी लेकिन अब वे ये जानकर और भी दुख में डूब गए हैं कि केके नामक एक शख्स जो उनके पसंदीदा नगमे गाता रहा; अब इस दुनिया को अलविदा कह चुका है। संगीत का एक सितारा, गुनगुनाते हुए ही हम सबके बीच से चला गया।
के.के. यानी कृष्णकुमार कुन्नथ, मलयाली परिवार में जन्मे थे। उन्होंने कई भाषाओं में गाने गाए। लेकिन हिन्दी का उच्चारण तो इतना शुद्ध कि हिन्दी भाषी भी सकुचा जाएं। इसे उनकी आवाज की कशिश और कमाल की जादूगरी ही तो कहेंगे कि प्यार और दोस्ती के गीत गाने वाला यह गायक जब ‘यारों, दोस्ती बड़ी ही हसीन है’ गाता है तो वह गीत दोस्ती का राष्ट्रगान बन जाता है। जब ‘हम रहें या न रहे कल…याद आएंगे ये पल’ गुनगुनाता है तो फिर उसके बाद से कोई विदाई पार्टी इस गीत के बिना पूरी ही नहीं होती! उनके गाए मोहब्बत के तमाम नगमों का सम्मोहन तो अपनी जगह है ही और सदा रहेगा लेकिन ‘आँखों में तेरी अजब सी अजब सी अदाएं हैं’ का जादू आज भी सिर चढ़कर बोलता है। जब विरह की बात हो, दिल के टूटने की शाम हो; तो उस घड़ी में उनका गाया एक ही गीत, उम्र भर को उनका प्रशंसक बना देने के लिए काफ़ी है! वह है फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ का ‘तड़प तड़प के इस दिल से आह निकलती रही, मुझको सजा दी प्यार की/ ऐसा क्या गुनाह किया, तो लुट गए, हाँ लुट गए, तो लुट गए हम तेरी मोहब्बत में’…. इस गीत का दर्द बस आँखें ही नम नहीं करता बल्कि रूह तक उतर जाता है। उनके सुपरहिट गानों की फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है। फिलहाल यही कहूँगी –
चुपके से कहीं, धीमे पाँव से
जाने किस तरह, किस घड़ी
आगे बढ़ गए हमसे राहों में
पर तुम तो अभी थे यहीं
कुछ भी न सुना, कब का था गिला
कैसे कह दिया अलविदा?
के.के. आप जहाँ भी हैं आपके प्रशंसकों का ढेर सारा शुक्रिया और स्नेह आप तक पहुँचे। ईश्वर आपके परिवार को खूब हिम्मत दे, आपके बच्चों के लिए ढेर सारी दुआएं।
- प्रीति अज्ञात
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