ईवेंट मैनेजमेंट और 'डी. जे. वाले बाबू मेरा गाना चला दो', के पदार्पण से पहले घर-परिवार की शादियों में सारी रौनक़ इसी सब से थी। कभी-कभार ऐसे कार्यक्रमों में लड़कों को आने की अनुमति ही नहीं मिलती थी, तो वे स्टूल वगैरह लगाकर रोशनदान से झाँकते या फिर दरवाजे की झिर्री में से जितना भी देख सकें, उतना ही देख धन्य हो जाते। भाभी की माँ-मनौवल भी करते कि दो मिनट को तो देखने दो न!
ये पारंपरिक गीत-नृत्य, ढोलक की थाप ही उत्सव का सही आनंद देते थे। मात्र शादी का ही नहीं बल्कि परिवार के एक होने का, एक साथ रहने का उत्सव। दस-दस दिन तक ब्याह की रस्में चलतीं। कोई पहले जा रहा हो, तो उसकी टिकट रद्द करवा दी जाती तो कभी स्टेशन से वे खुद ही भावुक हो लौट आते।
ये परम्पराएं थीं तो साथ था। साथ था तो दिल भी जुड़े थे। खूब लड़ाई के बाद भी मन एक हो जाता था। परिवारों की सुंदरता इन्हीं सब से थी। अब रस्में छूटीं तो जैसे बहुत कुछ छूट गया लगता है। पंडित जी भी समयानुसार एडजस्ट करने लगे हैं।
पहले की शादियों में ये सब दृश्य बहुत आम हुआ करते थे। अब ऐसा कम होता है। इसीलिए आज इस वीडियो को देख दिल खुश हो गया कि चलो, कहीं तो यह सब जीवित है। यूँ आजकल भी लेडीज़ संगीत के नाम पर तामझाम तो पूरा है पर उसमें बनावटीपन अधिक है। भला ये भी कोई बात हुई कि कोरियोग्राफर सिखाए कि कब कौन सा स्टेप लेना है। अजी, जब मंच जैसी परफॉरमेंस होने लगेंगी तो घर की बात ही कैसे आएगी।! मजा तो तब है जब कोई एक नाचे और दूसरा बीच में घुसकर कोई मनचाहा स्टेप डाल दे। कोई गाए और भूल जाए, फिर अम्मां सुधार करें कि नहीं इसके बाद ये वाली लाइन आती है।
आजकल तो पार्टी प्लॉट का पता आता है या होटल का भी हो सकता है। नियत समय पर पहुँचो, खाओ, मिलो, लिफ़ाफ़ा दो और अगली ही गाड़ी से निकल लो!
- प्रीति अज्ञात 5 सितंबर 2022
बात इस वीडियो के संदर्भ में कही गई है -
#जीना_है_बेकार_जिसके_घर_में_न_लुगाई #लोकगीत #लेडीज़संगीत #संस्कृति
कुँवारों, इस गीत को दिल पर न ले लेना
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