आज भारत में ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी रनबीर कपूर के प्रशंसकों की संख्या अपार है, और इसका कारण उनकी चाकलेटी छवि नहीं बल्कि 'रॉकस्टार' और 'बरफी' में किया गया शानदार अभिनय है जिसने लाखों सिनेप्रेमियों को उनका मुरीद बना दिया था. रोमांस और डांस भी वे अच्छा ही करते हैं. लेकिन खबरों में बने रहने और ठीक-ठाक अभिनय के बाद भी संजय दत्त के हिस्से इतनी लोकप्रियता कभी नहीं आई. हां, ये अलग बात है कि अधिक संख्या के कारण फिल्में शायद उनकी ही ज्यादा देखी गई हों. जब 'रॉकी' रिलीज हुई वो दौर ही कुछ अलग था. मनोरंजन के नाम पर सिनेमाघर ही थे, सो लोग वहीं चले जाते थे. उन दिनों पसंद से कहीं अधिक जाने का उत्साह हुआ करता था कि "चलो, ये भी देख आयें." उस पर यदि गीत-संगीत मधुर हुआ तो भी पब्लिक के पैसे वसूल हो जाते थे.
वैसे रॉकी का "क्या यही प्यार है" और साजन का "मेरा दिल भी कितना पागल है" आज भी सबके पसंदीदा रोमांटिक गानों की सूची में जगह बनाए हुए है. संजू ने सौ से भी अधिक फ़िल्में की होंगी पर चयन और अभिनय की दृष्टि से रॉकी, साजन, सड़क, नाम, खूबसूरत, मुन्नाभाई और परिणीता ही देखने योग्य रहीं.
पसंद होना तो बाद में, उनकी फ़िल्मों के नाम देखकर ही दिमाग़ ख़राब हो जाता था. कारतूस, जान की बाज़ी, मेरा हक़, मेरा फ़ैसला, कब्ज़ा, मर्दों वाली बात, हथियार, इलाका, ज़हरीले, यलगार, ख़तरनाक,प्लान, अनर्थ और ऐसे न जाने कितने हिंसक नामों वाली फ़िल्में कि मन ही घबरा उठे. अरे, ऐसे विध्वंसक नामों वाली फ़िल्में कौन करता है भई! ये तो ट्रेलर भर है पूरी सूची पढ़ते-पढ़ते तो हो सकता है आप ही हथियार उठाकर आक्रमण करने लग जाओ. न जाने उनकी ऐसी फ़िल्मों को हां करने के पीछे की वजह क्या रही होगी! आर्थिक कारण हो सकता है. खैर! कुछेक कॉमेडी फिल्मों में उनका अभिनय देखकर लगता था कि उन पर ऐसे रोल ज्यादा सूट करते हैं, पर वो दौर भी उतना चला नहीं.
यूं हम भारतीय फ़िल्मी कलाकारों के प्रति काफी भावुक और संवेदनशील हो जाते हैं और उनके विरुद्ध कोई भी बात सुनना हमें बिलकुल बर्दाश्त नहीं होता! लेकिन संजय दत्त के साथ ऐसा नहीं हो सका. शुरू से ही उनकी इतनी अधिक नकारात्मक बातें पढ़ने-सुनने में आती रहीं कि लोगों में उनके लिए सहानुभूति से कहीं अधिक इस बात का गुस्सा रहा कि सुनील दत्त और नरगिस जी जैसे आदर्शवादी माता-पिता के बेटे को अपने पेरेंट्स की इज्ज़त का जरा भी ख़याल नहीं आता! उन दोनों का सोच जनता का मन दुःख से भर जाता था. संजय का पक्ष जानने में किसी को कभी रुचि नहीं थी.
पर फिल्म संजू दर्शकों की उत्सुकता बढ़ा रही है. इससे उनके जीवन के दूसरे पक्ष का भी पता चल रहा है. लोग जानना चाहते हैं कि उस इंसान ने कितनी पीड़ा झेली, जो आधे से भी अधिक जीवन अपने-आप से जूझता रहा. यद्यपि इस दुःख से उबरने के लिए किये गए उनके व्यवहार एवं बुरी आदतों को किसी भी स्थिति में तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता लेकिन अपने सच को स्वीकारने और एक दर्द भरी यात्रा को पर्दे पर उतारने की स्वीकृति देने के लिए वे अवश्य ही बधाई के पात्र हैं. संजू के रोल के लिए की गई मेहनत के कारण रनबीर भी खूब वाहवाही लूट रहे हैं.
उम्मीद है यह फ़िल्म दर्शकों को पसंद आएगी और बुरा काम करने से पहले इसकी सच्चाई युवाओं को दसियों बार सोचने पर मजबूर करेगी. आखिर, अपने लिए ऐसा यातना भरा जीवन कौन चाहेगा!
'संजू' न केवल रनबीर की शानदार परफॉरमेंस के लिए जानी जाएगी बल्कि इससे संजय दत्त के प्रशंसकों को उनकी ज़िंदगी को नए सिरे से समझने का अवसर भी मिलेगा. निश्चित रूप से फ़िल्म के ट्रेलर ने ही उनके प्रति सुगबुगाहट पैदा कर नई संवेदनाओं को जागृत करना शुरू कर दिया है.
संजू बाबा भी अब उस दुनिया से बाहर आकर ख़ुशहाल जीवन जी रहे हैं. अब उनके हिस्से में तमाम खुशियों और दुआओं के बरसने का समय है. जहां तक रनबीर की बात है तो यह तय ही है कि यह फ़िल्म उनके कैरियर में मील का पत्थर साबित होगी. देखना यह है कि इस फ़िल्म की सफलता किसकी झोली ज्यादा भरती है, खुद संजू की या संजू बने रनबीर की!
- प्रीति 'अज्ञात'
#Sanju#Pre release#iChowk
वैसे रॉकी का "क्या यही प्यार है" और साजन का "मेरा दिल भी कितना पागल है" आज भी सबके पसंदीदा रोमांटिक गानों की सूची में जगह बनाए हुए है. संजू ने सौ से भी अधिक फ़िल्में की होंगी पर चयन और अभिनय की दृष्टि से रॉकी, साजन, सड़क, नाम, खूबसूरत, मुन्नाभाई और परिणीता ही देखने योग्य रहीं.
पसंद होना तो बाद में, उनकी फ़िल्मों के नाम देखकर ही दिमाग़ ख़राब हो जाता था. कारतूस, जान की बाज़ी, मेरा हक़, मेरा फ़ैसला, कब्ज़ा, मर्दों वाली बात, हथियार, इलाका, ज़हरीले, यलगार, ख़तरनाक,प्लान, अनर्थ और ऐसे न जाने कितने हिंसक नामों वाली फ़िल्में कि मन ही घबरा उठे. अरे, ऐसे विध्वंसक नामों वाली फ़िल्में कौन करता है भई! ये तो ट्रेलर भर है पूरी सूची पढ़ते-पढ़ते तो हो सकता है आप ही हथियार उठाकर आक्रमण करने लग जाओ. न जाने उनकी ऐसी फ़िल्मों को हां करने के पीछे की वजह क्या रही होगी! आर्थिक कारण हो सकता है. खैर! कुछेक कॉमेडी फिल्मों में उनका अभिनय देखकर लगता था कि उन पर ऐसे रोल ज्यादा सूट करते हैं, पर वो दौर भी उतना चला नहीं.
यूं हम भारतीय फ़िल्मी कलाकारों के प्रति काफी भावुक और संवेदनशील हो जाते हैं और उनके विरुद्ध कोई भी बात सुनना हमें बिलकुल बर्दाश्त नहीं होता! लेकिन संजय दत्त के साथ ऐसा नहीं हो सका. शुरू से ही उनकी इतनी अधिक नकारात्मक बातें पढ़ने-सुनने में आती रहीं कि लोगों में उनके लिए सहानुभूति से कहीं अधिक इस बात का गुस्सा रहा कि सुनील दत्त और नरगिस जी जैसे आदर्शवादी माता-पिता के बेटे को अपने पेरेंट्स की इज्ज़त का जरा भी ख़याल नहीं आता! उन दोनों का सोच जनता का मन दुःख से भर जाता था. संजय का पक्ष जानने में किसी को कभी रुचि नहीं थी.
पर फिल्म संजू दर्शकों की उत्सुकता बढ़ा रही है. इससे उनके जीवन के दूसरे पक्ष का भी पता चल रहा है. लोग जानना चाहते हैं कि उस इंसान ने कितनी पीड़ा झेली, जो आधे से भी अधिक जीवन अपने-आप से जूझता रहा. यद्यपि इस दुःख से उबरने के लिए किये गए उनके व्यवहार एवं बुरी आदतों को किसी भी स्थिति में तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता लेकिन अपने सच को स्वीकारने और एक दर्द भरी यात्रा को पर्दे पर उतारने की स्वीकृति देने के लिए वे अवश्य ही बधाई के पात्र हैं. संजू के रोल के लिए की गई मेहनत के कारण रनबीर भी खूब वाहवाही लूट रहे हैं.
उम्मीद है यह फ़िल्म दर्शकों को पसंद आएगी और बुरा काम करने से पहले इसकी सच्चाई युवाओं को दसियों बार सोचने पर मजबूर करेगी. आखिर, अपने लिए ऐसा यातना भरा जीवन कौन चाहेगा!
'संजू' न केवल रनबीर की शानदार परफॉरमेंस के लिए जानी जाएगी बल्कि इससे संजय दत्त के प्रशंसकों को उनकी ज़िंदगी को नए सिरे से समझने का अवसर भी मिलेगा. निश्चित रूप से फ़िल्म के ट्रेलर ने ही उनके प्रति सुगबुगाहट पैदा कर नई संवेदनाओं को जागृत करना शुरू कर दिया है.
संजू बाबा भी अब उस दुनिया से बाहर आकर ख़ुशहाल जीवन जी रहे हैं. अब उनके हिस्से में तमाम खुशियों और दुआओं के बरसने का समय है. जहां तक रनबीर की बात है तो यह तय ही है कि यह फ़िल्म उनके कैरियर में मील का पत्थर साबित होगी. देखना यह है कि इस फ़िल्म की सफलता किसकी झोली ज्यादा भरती है, खुद संजू की या संजू बने रनबीर की!
- प्रीति 'अज्ञात'
#Sanju#Pre release#iChowk
iChowk में 29-06-2018 को प्रकाशित -
गजब की फिल्म है. सभी को देखनी चाहिए
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