सोमवार, 9 जुलाई 2018

संजीव कुमार: इस मोड़ से जाते हैं....!

"सुनो, आरती! ये जो फूलों की बेलें नजर आती हैं न; दरअसल ये बेलें नहीं हैं अरबी में आयतें लिखी हैं इसे दिन के वक़्त देखना चाहिए, बिल्कुल साफ़ नज़र आती हैं. दिन के वक़्त ये सारा पानी से भरा रहता है. दिन के वक़्त जब ये फ़व्वारे......"

निश्चित तौर पर गुलज़ार जी की ये पंक्तियाँ हर सिने-प्रेमी को शब्दशः याद होंगी और इसे  सुनते ही जो शानदार चेहरा उभरकर सामने आता है वह है - संजीव कुमार
किशोर दा, रफ़ी साब के गाये कितने ही गीतों को उन्होंने अपने जानदार अभिनय से अमर कर दिया. आम हीरो की छवि से एकदम अलग प्यारा सा, मुस्कुराता चेहरा लिए, शिष्टता की प्रतिमूर्ति थे संजीव कुमार, जिनकी विशिष्ट अभिनय शैली के हम सब हमेशा से क़ायल रहे हैं. खिलौना, शोले, आंधी, मौसम, अंगूर, अनहोनी, त्रिशूल, मनचली, अनामिका, कोशिश, नौकर, नया दिन नई रात, सीता और गीता, श्रीमान श्रीमती, पति पत्नी और वो, सिलसिला, शतरंज के ख़िलाड़ी, हमारे तुम्हारे, बेरहम, त्रिशूल और ऐसी ही कई फिल्मों में अपने हर किरदार को निभाते हुए उन्होंने अभिनय के नए मापदंड स्थापित कर उन ऊँचाइयों को स्पर्श किया कि वे इतने वर्षों बाद भी प्रशंसकों के दिलों में घर बनाये हुए हैं और पूरी शिद्दत से याद किये जाते हैं.

'खिलौना' के मानसिक रूप से असंतुलित व्यक्ति का अत्यधिक भावुक, संवेदनशील अभिनय और वह गीत, "खिलौना जानकर तुम तो....." आज भी मन भिगो जाता है. एक तो रफ़ी साहब की दर्दभरी आवाज़ का जादू, उस पर संजीव कुमार का भावपूर्ण अभिनय; हिट तो होना ही था. याद है न! कैसे प्रतिशोध की ज्वाला में जलते 'शोले' के ठाकुर के मिसमिसाते डायलॉग, "सांप को हाथ से नहीं, पैरों से कुचला जाता है गब्बर." ने  सिनेमा हॉल को तालियों की गडगडाहट से पाटकर रख दिया था.
'सिलसिला', 'अनामिका','आँधी' में वे संज़ीदा पति/प्रेमी के रूप में नज़र आये और इनके गीत आज लगभग चार दशकों बाद भी उतने ही लोकप्रिय बने हुए हैं. 

अनामिका का 'मेरी भीगी-भीगी सी पलकों पे रह गए, जैसे मेरे सपने बिखर के....' और आँधी का 'तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं...' आज भी लाखों उदास प्रेमियों की एकाकी रातों और तन्हाई के साथी बनते हैं.
'कोशिश' में मूक-बधिर इंसान के रूप में अपने उत्कृष्ट अभिनय से उन्होंने सबके ह्रदय पर ऐसी छाप छोड़ी कि इसके लिए उन्हें दूसरी बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. पहला उन्हें फ़िल्म 'दस्तक' के लिए प्राप्त हुआ था. 'आँधी' के लिए भी उन्हें 'फिल्मफेयर' पुरस्कार मिला.

पर ऐसा नहीं कि संजीव कुमार ने केवल गंभीर भूमिकाएँ ही निभाईं. मस्तमौला प्रेमी और इश्कबाज़ पति के रोल भी उन्होंने बेहद ख़ूबसूरती से निभाये. पारिवारिक और जासूसी फ़िल्में भी कीं. वे नए प्रयोग करने से भी नहीं हिचकते थे और उनकी फ़िल्म 'नया दिन नई रात में' उन्होंने एक साथ नौ विविध चरित्र निभाकर सबको अचंभित कर दिया था. यह उनकी असाधारण अभिनय क्षमता ही थी कि जीवन के हर रस को वे पर्दे पर बड़ी सहजता से जीवंत कर देते थे. 'अंगूर' में उन्होंने दर्शकों को खूब हँसाया और 'नौकर' में भी अपनी अभिनय प्रतिभा से सबको लाज़वाब कर दिया. इस फिल्म का 'पल्लो लटके' गीत तब ख़ूब बजा करता था और अब इसके रीमिक्स ने भी वर्तमान पीढ़ी तक इसकी लोकप्रियता की ख़बर पहुँचा ही दी है. यह संजीव कुमार का ही असर है कि 'पति, पत्नी और वो' का यह गीत, 'ठन्डे-ठन्डे पानी से नहाना चाहिए' आज भी सबका प्रिय बाथरूम सॉंग बना हुआ है. उन दिनों सब माता-पिता अपने नन्हे-मुन्नों को यही गीत सुनाते हुए स्नान करने के लिए फुसलाया करते थे.

दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन (मौसम), तुम आ गए हो नूर आ गया है (आँधी), इस मोड़ से जाते हैं (आँधी), ग़म का फ़साना बन गया अच्छा (मनचली), हवा के साथ-साथ (सीता और गीता) मनचाही लड़की कहीं कोई मिल जाए (वक़्त की दीवार) ... उनकी सुपरहिट फिल्मों और गीतों की फ़ेहरिस्त काफी लम्बी है.

हरिभाई के नाम से लोकप्रिय, अभिनेता संजीव कुमार की फिल्मों और उनके उत्कृष्ट अभिनय की ऐसी ही न जाने कितनी अनूठी स्मृतियाँ आँखों में तैर रही है. उन पर फिल्माए कई गाने भी सदैव साथ चला करते हैं. अभी उनकी फ़िल्म 'अनोखी रात' का ये सदाबहार गीत याद आ रहा है -
"ओहरे ताल मिले नदी के जल में,
नदी मिले सागर में,  
सागर मिले कौन से जल में
कोई जाने न....!'
कलाकार मरते नहीं! हमारी यादों में वे सचमुच अमर हो जाते हैं.
- प्रीति 'अज्ञात'

11 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन आलेख!! संजीव, भारतीय सिने इतिहास के सबसे फाइन अभिनेताओं में शुमार होते हैं...

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  2. अहहा! बहुत प्यारा लिखा। वे प्रतिभा की एक खान थे। नमन।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सिने जगत के दो दिग्गजों को समर्पित ९ जुलाई “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. अहा! अद्भुत लिखा आपने। संजीव कपूर उमड़ा कलाकार थे।

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  5. अच्छा लिखा...विष्णु पनड़्या

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