शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

इंटरनेट देवता जी

हमारे परमपूज्य श्री श्री 1008 इंटरनेट देवता जी का निवास-स्थान कहाँ है ? :O
मेरा उनसे विनम्र अनुरोध है कि वर्षा ऋतु में भी नियमितता बनाये रखें। जिससे कुछ गरीबों को सन्देश के आदान-प्रदान में असुविधा न हो ! आपकी उपस्थिति के बिना जीवन व्यर्थ है और दूरभाष पर होने वाले आर्थिक और मानसिक व्यय को बचाने में भी आप नितांत उपयोगी सिद्ध हुए हैं ! :)

हे, जन-जन के कष्ट निवारक! 
समीपता और दूरी के समानता से संचालक! 
मनोरंजनकर्ता, सबके मस्तिष्क के स्वामी ! 
आज के पावन दिवस पर आपको कोटिश: प्रणाम एवं ह्रदय से आभार ! :)

दक्षिणास्वरुप कुछ पुराने मोबाइल और माउस रख दिए हैं !
कृपादृष्टि बनाये रखना, बाबा !
आशीर्वाद दीजिये न बाबा ! :(
अरे हाँ,  वो कष्ट-निवारण मन्त्र का जाप करते समय समोसा, एक खाऊँ या दो ? :P
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मोरल : मेरा पूरे विश्व से निवेदन है कि आदरणीय सम्मानित श्री अंतर्जालीय देवता और सूचना संपादक परम भक्त श्रीमान गूगल देवता जी  की पूजा-अर्चना के लिए एक धार्मिक स्थल का  निर्माण किया जाए ! लेकिन :/ टेंशन यही है कि वो किस धर्म का होगा ! उफ्फ्फ, यहाँ तो सबका आना-जाना है, फिर अपन के लड़ने के लिए कोई मुद्दा ही नहीं रहेगा ! हुँह, तो क्या फायदा रे ! :/ :(
- © 2015 प्रीति 'अज्ञात'. सर्वाधिकार सुरक्षित 

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

'सौदामिनी', जीवन के आख़िरी पन्नों से......

कितना आसान है ये कह देना, "बस तुम खुश रहो, मुझे और कुछ नहीं चाहिए ! अगर ये मेरे बिना सही, तो वो भी मंज़ूर है मुझे!"
पर दिल क्या सचमुच मंज़ूर कर पाता है इसे ?
उसकी एक हल्की-सी आहट, उसकी मौज़ूदगी का अहसास भर सिहरा देता है ! उम्मीद और डर के बीच झूलता हुआ ये मन साँसे रोक कर इंतज़ार करता है कि अब कोई पलटकर पूछेगा, "कैसी हो तुम?"
अब कोई सिर पर हाथ फेरेगा और कहेगा, "अरे, उदास क्यों हो भई?" आँखें ये सोचकर ही भीगने लगतीं हैं, गला रुंध-सा जाता है और मस्तिष्क स्वयं को उन जवाबों के लिए तैयार करता है लेकिन तब तक वो चेहरा ओझिल हो चुका होता है ! 
मैं तो यही कहती कि "ठीक हूँ!" तुम्हारा पूछना भर ही मेरा दिन बना देता !
पर अब सचमुच अहसास होने लगा है कि तुम खुश हो मेरे बिना !
सॉरी,लेकिन मैं इतनी महान नहीं कि आसानी से कह सकूँ..."बस तुम खुश रहो, मुझे और कुछ नहीं चाहिए! 
क्योंकि मुझे तुम्हारी मौज़ूदगी चाहिए!
तुम्हारी वो मुस्कान चाहिए जो मुझे देख ही तुम्हारी आँखों की झीलों में खुशबुओं-सी तैरने लगती थी !
मुझे मेरे इस दुनिया में होने की एकमात्र वज़ह चाहिए! 
हाँ, इसके अलावा मुझे वाक़ई कुछ नहीं चाहिए !
वो अगले जन्म के साथ का वादा भी नहीं! 
जो जीते-जी न मिल सका, मर जाने के बाद उसकी उम्मीद रखूँ; अब इतनी बेवक़ूफ़ भी नहीं रही मैं!
यूँ जानती तो ये भी हूँ कि मेरी बातों का कोई मोल नहीं!
याद है एक दिन तुमने गुस्से में कहा था कि "मैं पछतावा हूँ तुम्हारी ज़िंदगी का, प्रताड़ित करती है मेरी उपस्थिति तुम्हें !"
बहुत रोई थी मैं उस दिन... और अभी भी तो !
पर हर बार की तरह तुम्हें 'बेनेफिट ऑफ डाउट' दे दिया था ! तुम्हारा गुस्सा और मूड, तुम खुद भी कहाँ जान सके हो अब तक!
हर बार आखिरी पत्र मानकर लिखती हूँ! पर लौट आती हूँ खुद ही, बिन बुलाये !
न जाने क्या शेष है अभी !
उम्मीद नहीं है ये!
इंतज़ार भी नहीं!
चाहत तो यूँ भी दोतरफ़ा ही जायज़ होती है !
पीड़ा बेतहाशा है !
पता नहीं क्यों, दिल आज भी इस सच को स्वीकार नहीं कर पा रहा कि "तुम सचमुच खुश हो मेरे बिना !"
तुम ख़ुद शांत मन से एक बार कह दो न मुझे, कुछ इस तरह कि विश्वास कर सकूँ और उसके बाद तुम देखना, आवाज़ तक नहीं दूंगी कभी!
हाँ, एक तसल्ली हो जायेगी हमेशा के लिए !
उसके बाद क्या होगा ?
क्या करोगे जानकर ?
"फ़टी-पुरानी, बिना ज़िल्द वाली पीली क़िताबों का आख़िरी पृष्ठ अक़्सर गायब ही रहता है !"
(एक अंश - 'सौदामिनी', जीवन के आख़िरी पन्नों से, से )
© प्रीति 'अज्ञात'
Pic Credit : प्रीति 'अज्ञात'

सोमवार, 13 जुलाई 2015

आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी 
सादर अभिवादन
आज भी रोज की तरह समाचार देख-पढ़ मन व्यथित हुआ और लगा कि आम भारतीय नागरिक की तरह मुझे भी अपने 'मन की बात' कह ही देनी चाहिए!

* एक समाचार से ज्ञात हुआ कि कुछ लोग जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं! मैं राजनीति बिल्कुल भी नहीं जानती पर इतना ज़रूर समझती हूँ, कि गर ऐसा हुआ तो सही नहीं होगा! यूँ भी हमारे देश में समस्याओं की जड़ ये 'जाति' और 'धर्म' ही तो रहा है! वरना ये दंगे-फ़साद किसके नाम पर हो रहे हैं?

*सोचिए ज़रा, कितना अच्छा होता....अगर चुनाव 'इंसान' और उसके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर हो! लोग 'जाति' नहीं 'इंसान' को चुनें, उसके नेक कार्य और अच्छी सोच पर भरोसा रखें न कि उनकी 'कास्ट' को आगे ले जाने के अशोभनीय आश्वासनों पर!

* क्या यह संभव नहीं कि हर नेता या चुनाव उम्मीदवार की जाति बताई ही न जाए, निष्पक्षता तो तभी तय होगी! पहचान के लिए उनके स्कूल, कॉलेज के प्रमाण-पत्र बनाये रखने में कोई बुराई नहीं!

* मैं किसी पार्टी के समर्थन या विरोध में नहीं हूँ, बल्कि आम भारतीय नागरिक की तरह अपने देश के विकास की पक्षधर हूँ!
* मैं 'जातिगत' आरक्षण की नहीं बल्कि हर उस विद्यार्थी की पक्षधर हूँ जो 80% अंक से भी अधिक लाने पर उदास है क्योंकि उसी के सामने 60% अंक वालों को प्रवेश मिल जाता है और वो अपने 'सामान्य-श्रेणी' में होने को कोस रहा होता है!

क्या 'शिक्षा' या ज्ञान का पैमाना, 'बुद्धिमत्ता' नहीं होना चाहिए ?
* मैं हर उस इंसान की, हर उस जाति की, हर उस धर्म की पक्षधर हूँ जहाँ एक बुद्धिमान बच्चा, पैसों के अभाव में शिक्षा से वंचित रह जाता है....... मैं ऐसे हर एक 'भारतीय' को उसका, हक़ दिलाने की पक्षधर हूँ! मैं एक क़ाबिल इंसान को उसकी योग्यता के आधार पर चुनने की पक्षधर हूँ!

* मैं विरोधी हूँ उस हर इंसान की जो योग्य न होने के बावजूद भी जाति या डोनेशन ( जी हाँ, यह भी रईसों का सुगम मार्ग है) के बल पर प्रवेश पा लेता है, डॉक्टर या इंजीनियर भी बन जाता है...और कुछ वर्षों बाद हम समाचार पढ़ते हैं, 'डॉक्टर की लापरवाही से मरीज़ की मौत' या फिर 'कमजोर पुल टूटने से बस खाई में गिरी, मरने वालों की संख्या सैकड़ों में'...पर यदि गहराई से सोचा जाए तो पता चलता है कि इस लापरवाही का ज़िम्मेदार वो 'प्रवेश-द्वार' है जहाँ इन्हें होना ही नहीं चाहिए था!

* 'बुद्धिमत्ता', 'जाति' से तय नहीं होती! कमजोर व पिछड़े वर्गों को ऊपर उठाने का मतलब उन्हें ये सुविधा देना नहीं, बल्कि उनकी शिक्षा के प्रति रूचि बढ़ाना है. उन्हें सब कुछ निशुल्क दें और जो बेहतर होंगे वो स्वयं ही हर परीक्षा उत्तम अंकों से उत्तीर्ण कर लेंगे, उनके लिए अलग से व्यवस्था करने की क्या आवश्यकता है?
 "जब विरासत दिखती है, तो कौन मेहनत करता है भला!"

* दो-टूक़ बात तो ये है कि हमें कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता कि 'सरकार' किस पार्टी की है! हमें तो देश के विकास से मतलब है, हम तो यही चाहते हैं कि जब कहीं बाहर जाएँ तो हमारे पूर्वजों की तरह उसी शान से कह सकें कि "हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है!"
'गंगा सफाई अभियान', 'स्वच्छता अभियान', 'बेटी बचाओ अभियान' और ऐसे ही अन्य सकारात्मक योजनाओं को देख एक उम्मीद जगी है!

भारतवासियों में बहुत ताक़त है, बहुत हिम्मत है, हर मुश्किल घड़ी से निपटने का हुनर भी खूब आता है! 'सती-प्रथा' और 'बाल-विवाह' जैसी कुरीतियों को हम सबने ही दूर भगाया है! 'कन्या-भ्रूण हत्या' और कितने ही 'आपराधिक' मामलों के विरोध में सारा देश एकजुट हुआ है! तो, ये 'जाति-प्रथा' दूर करना भी मुश्किल नहीं...
"ज़रूरत सिर्फ़ एक 'मुहर' की है!"

धन्यवाद!
प्रीति 'अज्ञात'