सोमवार, 30 मार्च 2020

#Lockdown_stories2 जाना था जापान, पहुँच गए चीन समझ गए न!

भले ही मेरी ऑनलाइन मैगज़ीन है, ब्लॉग्स हैं, सोशल मीडिया अकाउंट्स हैं फिर भी मैं स्वयं को टेक्नोचैलेंज्ड की श्रेणी में रखती आई हूँ। ज्यादा तीन-पाँच वाले काम मुझे समझ ही नहीं आते। कारण यही कि सारा लेखन लैपटॉप पर होता है और वो भी बिना किसी प्रपंच के। एक समय था जब मुझे कंप्यूटर ऑन करना भी नहीं आता था। वर्षों से टक्करें मार-मारकर अब लिखना और फोटोशॉप सीख गई हूँ। मोबाइल से रिश्ता बस कॉल इनकमिंग-आउटगोइंग तक ही सीमित है।व्हाट्स एप्प पर टुकुर टुकुर टाइपिंग से बेहतर मुझे सीधे फ़ोन पर बात करना लगता है। मैसेंजर कभी इन्स्टॉल किया ही नहीं और व्हाट्स एप्प ग्रुप्स में जोड़ने वाले खुद ही मुझसे हार मान नमस्कार कर चुके हैं क्योंकि मुझसा देसी और इनएक्टिव इंसान 'न भूतो न भविष्यति।'

वैसे भी दुनिया के हर इंसान से तो मेरा भावनात्मक लगाव है नहीं तो इनसे मैं सुप्रभात और शुभरात्रि लेकर क्या करूँ और ज्ञान भरा एक ही मैसेज जब चार अलग लोग एक ही दिन भेजते हैं तो सोचिए कैसा लगता है! पहले मैं टाइम चेक़ कर अनुमान लगाया करती थी कि इन म्यूच्यूअल फ्रेंड्स में से किसने किसका कॉपी किया है फिर जो रेस में पहला होता था उसे स्माइली भेज देती थी।उसके बाद जब वही मैसेज या वीडियो परिवार के ग्रुप में देखती थी तो पता चलता था कि प्रीति बेटा दुनिया उतनी भी विशाल नहीं जितनी तुम माने बैठी हो! गोलमाल है भई सब गोलमाल है! 

ख़ैर..इस बारे में हम सा चींटी प्राणी कर भी क्या सकता है! अब तो सरकार ही हमरी माई बाप है। तो उनको ही सोचना चाहिए कि बिना फीलिंग्स वाली इन प्लास्टिक संवेदनाओं का क्या करना है! वैसे मुझे पूरा भरोसा है कि अब वो दिन दूर नहीं जब आप कोई भी इमोजी टच करेंगे, टंकार के साथ जय श्री राम ही जायेगा। आप दिल भेजेंगे, नमस्ते जाएगी, चाय भेजेंगे लौकी का जूस जाएगा, फूल भेजेंगे तुलसी मैया का पौधा जाएगा, केक भेजेंगे तो बताशा जाएगा। नेटफ्लिक्स खोलेंगे तो रामायण आएगी, सास बहू के सीरियल खोलते ही MDH वाले दादाजी संस्कारी होने का मतलब समझाएंगे। रामराज्य ऐसे ही थोड़े न आ जायेगा। पूरे तंत्र को लगाना पड़ता है जी। 

इधर फिटनेस चैनल हमारे नेताओं को दिखाकर बता रहा होगा कि असल किरपा तो ये बनने में बरसती है। नामुरादों, फिट होकर क्या करोगे? पकौड़े ही तो तलने हैं न तुम्हें। एथलीट बन भी गए तो आगे का जीवन 'चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात' सा ही कटेगा। यहाँ तो बिना डिग्री राजा भोज बना जा सकता है इसलिए ही तो शिक्षा एसेंशियल सर्विसेज में नहीं है। अब हमने ही यूनिवर्सिटी मेरिट में आकर कौन से तीर मार लिए, इधर ही बिना कमाई क़लम घसीट रहे हैं न! वही गंगू तेली टाइप। उसपे frustration जब तब हिलोरें मारता है, सो अलग!  

लो 'जाना था जापान, पहुँच गए चीन समझ गए न!' मल्लब 'जब दिल हूं हुं करे, घबराआआए' तब भड़ास यूँ निकलती है।
बात तो हम अपने टेक्नोचैलेंज्ड होने की कर रहे थे। एक सिंपल एप्प को समझने में भी मुझे दस गुना समय लगता है। यहाँ तक कि नया मोबाइल लेने के बाद भी मैं पुराने को तब तक use करती रहती हूँ जब तक कि नया समझ न लूँ। इस प्रक्रिया में मुझे औसतन पंद्रह दिन से एक माह तक का समय लगता है।

सौभाग्य से हमारी प्रिय मित्र नीरजा जी टेक्नो एक्सपर्ट हैं। मुझसे तो सौ गुना बेहतर हर हाल में हैं। कई बार मुझे झींकते हुए देखतीं हैं तो हमेशा कोई न कोई एप्प डाउनलोड करने की सलाह देतीं और भी कई गुणवान बातें मैंने उनसे सीखी हैं। ऐसे ही एक शुभ दिन में उन्होंने मुझे बिग बास्केट के बारे में बताया। बच्चे भी रोज कहते थे, थैला उठाये दस किलो सामान लेकर क्यों आती हो, जब घर पे सब आ सकता है! अब हमारे घर से चार कदम दूरी पे सब्जी और ग्रॉसरी वाला है। कई बार ठेले वाला भी घंटी बजा दिया करता है। तो उस समय मुझे बिग बास्केट की जरूरत कभी महसूस नहीं हुई।

अब lockdown के दिनों में मैंने यह app इन्स्टॉल कर लिया। तुरंत वेलकम मैसेज आया, अपन तो जी खिल उठे। फिर एक-एक कैटेगरी में जाकर आधे घंटे कुचुर-कुचुर कर सामान सेलेक्ट किया, उसमें भी बेटी को बग़ल में बिठा रखा था। हम लोग साल भर का राशन नहीं भरते, हर माह खरीदते हैं। चूँकि सरकार ने पैनिक होने को मना किया तो अपन रत्ती भर भी नहीं हुए। लेकिन ये क्या वेलकम करने वाले ने अगले ही पल हमारी यह कह घनघोर बेइज़्ज़ती कर दी कि बैकलॉग के कारण अभी कुछ दिन हम ये सर्विस नहीं दे पायेंगे। बाद में कोशिश करें। मतलब अगर कोरोना से बचे तो हमारी बची खुची ज़िंदगी का राशन इनकी किरपा से मिलेगा.....और अगर किरपा न हुई तो अपन भूख से तड़प-तड़पकर इधर ही जान दे देगा मोई जी। सॉरी बोल सबकी आस यूँ न तोड़िये, कुछ कीजिये, बच्चे की दुआएँ लगेंगीं। वरना देश के शहीदों की सूची में एक नाम और जोड़ ही लीजिए। बाक़ी सब बढ़िया है।
सियावर रामचंद्र की जय, पवनसुत हनुमान की जय।
-प्रीति 'अज्ञात'
#Lockdown_stories2  

#Lockdown_stories1

#मोहैतोमुहै

मैं हमेशा से इस भ्रम में थी, मानती और कहती भी हूँ कि मैं स्वयं के लिए ही पनौती हूँ लेकिन आज एक न्यूज ने मेरे ये ख़यालात बदल दिए।
सर्फिंग करते हुए अचानक एक तस्वीर दिखाई दी, साथ में कैप्शन था 'बैंगलोर की कहक़र गया था थाईलैंड, पुलिस ने किया पर्दाफ़ाश' पढ़कर हमें तो बहुत जोर से हँसी आई और चित्र को zoom किया। पत्नी की भौंहें तनी हुई और पति के चेहरे पर उड़ती हवाइयाँ उसके गुनाह की सारी कहानी कह रही थीं।

मैं आपको बता दूं कि थाईलैंड को मसाज़ कंट्री की तरह दुष्प्रचारित किया जाता है जबकि यह अत्यधिक spiritual country है, बेहद खूबसूरत भी। समय और मैं रही तो उस पर लिखूँगी कभी। हाँ, मसाज़ सेंटर भी बहुत हैं वहाँ, पर यही उसकी विशेषता नहीं है। 

ख़ैर....इन साहब ने जिस तरह से ये खबर अपनी पत्नी से छुपाई उससे साफ ज़ाहिर है कि इनके इरादे नेक नहीं थे। अब कोई ट्रेन तो थी नहीं जो कह देते कि अरे, नींद लग गई तो अगले स्टेशन पर पहुँच गए थे। 
सोचो, हर स्थान पर ये फ़ोटो खिंचवाने से बचे होंगे। समुंदर की लहरों संग उल्टा तैरे होंगे। बीच पर रेती में मुँह घुसा लिया होगा। लगेज में से एयरलाइन के सारे कागज़ हैंडल और ताले से उखाड़ फेंके होंगे। पर्स में से बोर्डिंग पास निकालकर एयरपोर्ट के बाहर ही dustbin में डाल दिया होगा । एकाध करेंसी बची होगी तो मित्र की जेब में 'रख ले यार' कहकर डाल दी होंगी। यह दान नहीं बल्कि मुँह बंद रखने की कीमत ही समझिए। बाथटब में निरमा वाशिंग पाउडर से झाग बना स्वयं को स्वच्छ किया होगा कि देसी smell से शक़ की कोई गुंजाइश न रहे। इतने सारे efforts के बाद निश्चिन्त होकर सफ़र की थकान का पोज मारते हुए मुँह लटकाए घर में घुसे होंगे। शायद किसी शॉप से मुरक्कू और मैसूर पाक भी खरीद लिया हो।

बताइए, इतनी तैयारी के बाद ये सितम!
भारतीय पुलिस को अपनी सारी होशियारी अभी ही दिखानी थी।
बेचारे ने सपने के करोड़वें हिस्से में भी नहीं सोचा होगा कि देश में पहुँचते ही कोरोना खींसे निपोरता मिलेगा। फिर lockdown होगा। फिर विदेश से आने वालों को quarantine में रखा जाएगा, फिर उस पीरियड में विदेश जाने वालों की सूची बनेगी, फिर घर-घर जाकर उनकी क्लास ली जाएगी और फिर मैं पकड़ा जाऊँगा। 
यह कोई आम घटना नहीं है जी बल्कि साक्षात् इतिहास रचा गया है कि एक ऐसा महापुरुष जिसका झूठ बीवी ने नहीं बल्कि पुलिस ने पकड़ा वो भी बिना FIR दर्ज करे।
भक्क! ऐसा भी होता है कहीं।
अरे! हुआ है सच्ची!

सदियों में एक ऐसा इंसान पैदा होता है जिसे महापनौती साबित करने के लिये पूरी क़ायनात उसके पीछे लग जाती है। न जाने कौन से जन्म के पापों की सज़ा मिली है आपको। इस जन्म के पाप तो पता चल गए हैं जी। तो भैये हार्दिक संवेदनाओं के साथ आज से पनौती का महान टैग आपका हुआ। हम अब चैन से गुजर-बसर करेंगे। आज तो हमरा भी मन कर रहा कि एक बार कह ही दें #मोहैतोमुहै
मंगलभवन अमंगलहाaaaaरी.....
राम सियाराम सियाराम जय जय राम
-प्रीति 'अज्ञात'
#Lockdown_stories1 

मंगलवार, 10 मार्च 2020

विदा, #प्रेम भारद्वाज जी

ये तब की बात है जब मैं सोशल मीडिया पर इतनी सक्रिय नहीं थी। महीने में अधिकतम 4 -5 बार यहाँ आती और वास्तविक दुनिया में लौट जाती। उन दिनों इस आभासी दुनिया (अब नहीं मानती) से ख़ासी विरक्ति हो चली थी मुझे। हाँ, पत्रिका 'हस्ताक्षर' शुरू हो चुकी थी सो उस पर और ब्लॉग पर सक्रियता बरक़रार थी। अंक तो याद नहीं पर ये बात अब तक नहीं भूली हूँ कि उन्हीं दिनों मेरे किसी सम्पादकीय पर मुकेश जी ने लिखा था कि "देखना एक दिन तुम्हारे सम्पादकीय भी प्रेम भारद्वाज जी की तरह ही पढ़े जायेंगे।" ये प्रेम भारद्वाज जी से मेरा प्रथम परिचय था।
दिल्ली सर्कल और विशिष्ट संगठनों से मैंने सदैव एक निश्चित दूरी बनाकर रखी है उसके कई कारण हैं पर वे बातें फिर कभी। लेकिन इतना अवश्य जान लीजिये कि सबके लिए सम्मान और स्नेह में कोई कमी नहीं! लेकिन हाँ, मुकेश जी के इस कमेंट के बाद मुझे बेहद उत्सुकता हुई और मैंने तुरंत अपनी मित्रता-सूची खँगाली तो प्रेम जी का नाम वहाँ पहले से ही था। उनकी वॉल पर गई तो उनकी लेखनी की शक्ति का अनुमान स्वतः ही हो गया। एकबारग़ी लगा भी कि उन्हें मेसेज कर दूँ कि मेरे लिखे पर अपनी राय अवश्य दें पर फिर संकोचवश ऐसा कर न सकी। सोचा, कभी दिल्ली पुस्तक मेले में मुलाक़ात होगी तो कह दूँगी। बात आई-गई हो गई।
मैं इस बात को शायद भूल ही जाती लेकिन अभी फरवरी में मुंबई जाना हुआ और मित्र अनुराधा सिंह से न केवल उनकी अस्वस्थता की जानकारी मिली बल्कि यह भी ज्ञात हुआ कि उनका इलाज़ अहमदाबाद में चल रहा है। प्रेम भारद्वाज जी का नंबर मुझे मिल गया था और उनके हालचाल लेने थे। उस समय मेरे मन में सौ प्रश्न चल रहे थे कि किस तरह बात शुरू करुँगी! पता नहीं पहचानेंगे भी या नहीं! कैंसर से मेरे इतने क़रीबियों को खोया है कि इस शब्द भर से मेरा गला भर्रा जाता है। सच कहूँ तो उस दिन थोड़ा अभ्यास करके मैंने उन्हें फ़ोन लगाया। अपना परिचय दिया। वे सहज भाव से बोले, "जानता हूँ आपको।" उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछा तो कहने लगे, "Up -Down चल रहा है।" फिर धीरे से बोले, "Down ही चल रहा है।" उस वक़्त उन्हें बोलने में भी बेहद तक़लीफ़ हो रही थी लेकिन गहन उदासी और पीड़ा के स्वर मैं भीतर तक महसूस कर पा रही थी। कई बार किसी की उदासी आपको मौन कर देती है और कहने को कुछ भी नहीं बचता! दुःख और भी कई गहरी रग़ों को छेड़ जाता है, दर्द के सारे पुराने पृष्ठ फड़फड़ाते नज़र आते हैं।
मैंने उनसे हॉस्पिटल में मिलने की अनुमति लेते हुए एड्रेस भेजने को कहा। ये 24 फरवरी की बात है। लेकिन तबसे उनका व्हाट्स एप्प बंद ही था। मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी और ये भी कि बिना एड्रेस के जाऊँ कैसे? 4-5 दिन बाद उनके परिवार के एक सदस्य का नंबर मिला और उनसे सारा डिटेल भी। तब तक प्रेम जी को ब्रेन हैमरेज भी हो चुका था। तमाम आशंकाओं से घिरी मैं अपने पति के साथ 1 मार्च को उनको देखने हॉस्पिटल पहुँची।वहाँ जाकर पता चला कि ब्रेन हैमरेज का असर उतना गहरा नहीं हुआ और शरीर में मूवमेंट हो पा रहा है। उस दिन उन्होंने सहारे से बैठकर खिचड़ी भी खाई थी। मैं गई, तब वे गहरी नींद में थे। घर के सदस्यों ने उन्हें उठाना भी चाहा था पर मैंने ही मना कर दिया। मुझे लगा कि नींद में दर्द का अहसास थोड़ा कम होगा उन्हें और फिर सुधार की ख़बर पाकर मैं प्रसन्न भी थी। सोचा, जब स्वस्थ हो जायेंगे तब उनसे मिल ही लूँगी। उनकी बहिन का नंबर लिया और अपडेट करते रहने का कहकर मैं लौट आई थी। सोशल मीडिया पर इस सब की चर्चा से परिवार परेशान होता ही है, उन्होंने कहा भी था। इसलिए मुझे जो भी पोस्ट दिखीं, मैंने उन्हें hide करने का अनुरोध भेज दिया था। बीच में एक बार उनके घर बात की तो पता चला कि वे कुछ भी खा-पी नहीं रहे हैं।
आज सुबह अचानक उनकी बहिन का मैसेज दिखाई दिया, "भैया इस दुनिया में नहीं रहे।"
मैं उनसे मिलकर भी नहीं मिली थी, बात होते हुए भी कुछ नहीं हुई थी, पर उनके बारे में रत्ती-भर न जानते हुए भी उनके शब्दों से गहरा पाठकीय रिश्ता था। एक समृद्ध लेखक की यही पूँजी है कि उसका शरीर भले ही दफ़न हो जाए लेकिन शब्द सदैव ज़िंदा रहते हैं! पाखी को पहली उड़ान देने वाले प्रेम भारद्वाज जी को अंतिम विदाई, मेरी विनम्र श्रद्धांजलि। 🙏🙏
- प्रीति 'अज्ञात'

रविवार, 8 मार्च 2020

#HappyWomensDay2020

व्यस्तता भरे जीवन में से कुछ समय अपने लिए बचाकर/चुराकर रखना है। अपने शौक़ पूरे करने हैं। वो डिश भी अपने लिये जरूर बनानी है जो आपको पसंद है, भले ही घर में उसे कोई और न खाता हो। अपनी अस्वस्थता का बेसुरा राग अलापने से बेहतर है, स्वास्थ्य पर ध्यान देते हुए मस्त रहना।
हर बात में ये नहीं बोलना है कि "इनसे पूछकर बताती हूँ।" कुछेक निर्णय अपने-आप भी लिए जा सकते हैं। भले ही सुख में जी रही हों पर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की राह निकालनी ही है।
हर बार समाज ही सब कुछ बुरा नहीं कहता.. कभी-कभी हम लोग ही स्वयं अपना जीना हराम कर लेते हैं। पीड़िता, मजबूर, त्याग और बलिदान की देवी बनकर। महान बनने से कुछ नहीं होता सिवाय सिरदर्द के क्योंकि कुछ वर्षों बाद यही महानता और 'DISEASE TO PLEASE' घुटन बनकर भीतर से ख़त्म करने लगती है। इसीलिए सच के साथ खड़े होकर अपनी बात कहना सबसे पहले सीखना है।
हमें उम्र भर यह कहते हुए कुंठित क्यों होना कि "मेरी पढ़ाई तो चौके-चूल्हे में ही झोंक दी गई।" आप उसके साथ भी बहुत कुछ कर सकती हैं बशर्ते आप अपने आप को भी प्राथमिकता सूची में स्थान दें। याद कीजिए, आखिरी बार कब आपका नाम लिया गया था? मम्मी, चाची, बुआ, मौसी, दीदी के रिश्तों से होते हुए कब ज़िन्दगी गुज़र जाती है पता भी नहीं चलता और एक दिन आपका नाम मात्र प्रमाणपत्र तक ही सीमित रह जाता है।
मेरे जीवन का मूल मंत्र -'अच्छा सोचो, अच्छा कहो, अच्छा सुनो' और लोगों की बुराइयों को अपनी अच्छाइयों से मारो! 😍
MORAL: Happy Women's Day! पर पुरुषों के पीछे सोटा लेकर क़तई नहीं दौड़ना है। 😁
वैसे तो हर दिन अपना ही है पर जैसे बर्थडे वाले दिन स्पेशल लगता है, आज भी हम सबको वही अहसास मुबारक़ हो! 💐💐
- प्रीति 'अज्ञात'

#HappyWomensDay2020 #InternationalWomensDay