आज सुबह से ही मैं श्रीदेवी के असमय निधन से स्तब्ध हूँ. सोशल मीडिया उनकी ख़बरों से पटा पड़ा है. बहुत कुछ है जो कहा गया, बहुत कुछ कहना शेष भी रह गया. बहुत कुछ है जो मैं भी कहना चाहती हूँ पर क्या चंद शब्दों में किसी ऐसे व्यक्तित्व की चर्चा संभव है जिसने अपना फ़िल्मी सफ़र लगभग तब ही प्रारम्भ किया हो, जब हम और आप किशोरावस्था के उस दौर से गुज़र रहे थे; जहाँ ख़्वाबों की दहलीज़ पर क़दम बस पड़ने को ही थे! नहीं, बिलकुल भी आसान नहीं होता है उस शख़्स से जुड़ी सारी स्मृतियों को एक ही पल में एकत्रित कर पाना. यादें तो उन नन्हे पर मज़बूत तिनकों की तरह हैं जिन्हें लम्हा-लम्हा जोड़ किसी सशक्त घोंसले का निर्माण होता है. अब उन्हीं नाज़ुक तिनकों को एक-एक कर गिनने का समय आ गया हो जैसे! पर मैं यह भी क्यों स्वीकार कर लूँ कि श्रीदेवी अब हमारे बीच नहीं रहीं!
समझ नहीं पा रही हूँ कि मैं इस हद तक बेचैन क्यों हूँ? आख़िर मेरा उनसे रिश्ता ही क्या था? वो तो मुझे जानती तक न होंगीं! तो फिर ये क्या है जो मेरी आँखों को नम किये जाता है? क्यों मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे मैंनें किसी बेहद अपने को खो दिया हो!
आह! भावनाएँ जब उफ़ान पर होती हैं तब बहुधा उन्हें व्यक्त करने के लिए शब्दों का अभाव-सा क्यों महसूस होता है? ये जो दिल है, भीतर-ही-भीतर इस तरह चुपचाप आँसू क्यों बहाता है? और भाव हैं कि कागज़ों पर उतरने से साफ़ इंकार कर देते हैं. ऐसे समय में चुप होकर स्वयं को समेट लेने की मैं भरसक कोशिशें कर रही हूँ. अब जबकि इस ख़बर को मुझ तक पहुँचे हुए लगभग बारह घंटे बीतने को हैं, मैं स्वयं और मुझ जैसे कईयों को उत्तर दे पाने में स्वयं को थोड़ा समर्थ महसूस कर रही हूँ.
दरअसल हम सब बड़े मतलबी लोग हैं. हम उन्हीं से जुड़ जाते हैं जिन्होंने हमारे सपनों को हवा दी हो! हमारे दिलों में मोहब्बत की शमा रोशन की हो! इश्क़ की गुदगुदाहट से हमें लबरेज़ कर दिया हो! जीतू जी और श्री की शुरूआती फिल्मों ने किशोर मन की इन्हीं सीढ़ियों पर ही अपना हाथ थामा था!
चुलबुली, शोख़ अदाएँ हमें हमेशा ही लुभाती रही हैं और उस पर शैतानियों का मुलम्मा चढ़ जाए, तो कहना ही क्या! 'चालबाज़' ने हमारे इन्हीं अरमानों में ही तो इंद्रधनुषी रंग भरे थे!
भोले मासूम नयन और भावुक मन, जो कभी बात समझता है तो कभी क़तई सुनना तक नहीं चाहता, 'लम्हे' इन्हीं ख़ूबसूरत लम्हों की ही तो बयानगी है!
संवेदनशीलता, भाव-प्रवणता और भावुकता भरे ह्रदय वाली स्त्री जो समझदार हो, सबकी परवाह करे, नृत्य, पाक कला में भी पारंगत हो और अपनी खिलखिलाहट से घर गुंजायमान कर दे; 'चाँदनी' ने इसी उम्मीद की चमक घर-घर में बिखेर दी थी.
मिस्टर इंडिया की वो जर्नलिस्ट जो बच्चों के नाम तक से चिढ़ती थी, जब उन्हें गले लगाती है तो देश के बच्चे-बच्चे की दीदी बन जाती है और वही जब 'काटे नहीं कटते ये दिन और रात' पर थिरकती है तो लाखों युवाओं की धड़कनें यक़ायक़ जैसे थम सी जाती हैं.
कौन भूल सकता है, 'सदमा' के उस मासूम चेहरे को; जिसने हॉल को हिचकियों से भर दिया था!
हर लेडीज संगीत कार्यक्रम, नगीना के 'मैं नागिन तू सपेरा' के बिना अधूरा है और चाँदनी के 'मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियाँ हैं' पर नृत्य किये बिना कोई दुल्हन घर से विदा नहीं होती. ये चुहलबाज़ियाँ ही तो जीवन के उदास क्षणों भरे अल्बम में हँसी की जगमग तस्वीर उकेरती हैं.
वो चेहरा जिसकी हँसी अपनी-सी लगे, जिसका दुःख हमको भी तोड़ दे, जिसकी शैतानियों पर हमारा दिल भी बच्चा बन जाए, जिसकी मासूमियत हर उम्र का मन मोह ले, जिसके इश्क़ का अंदाज़ पत्थरों को भी पिघलाने का माद्दा रखता हो, 'ख़ुदा ग़वाह' हो जिसका ......वह शख़्स कभी ग़ैर नहीं होता, वो हमारे-आपके जीवन का एक हिस्सा बन जाता है, उम्र के हर दौर में उसका चेहरा, उसके गीत हमारे साथ चलते हैं. उसकी फ़िल्में सदैव हमारे साथ रहती हैं, जिनमें उसकी मुस्कान बदलती नहीं! ऐसे शख़्स दुनिया छोड़ जाने के बाद भी हमारे साथ रहते हैं इंग्लिश-विंग्लिश बोलती, आत्मविश्वासी, स्नेहिल, प्रेरणामयी किसी MOM की तरह!
क़िरदार को जीना किसे कहते हैं, यह कोई श्रीदेवी से सीखे. लाखों दिलों को धड़काने वाली इस अदाकारा के दिल ने धड़कने से मुँह क्यों फेर लिया, यह बात समझ के बाहर है. 'खनन-खन चूड़ियाँ खनक गई' कहकर इतराने वाली वो मोरनी न जाने कहाँ चली गई! पर इतना तय है कि ये लम्हे, ये मौसम हम वर्षों याद करेंगे...ये मौसम चले गये तो हम फरियाद करेंगे! लेकिन हम ये भी जानते हैं कि ईश्वर की इस तानाशाही से बस नाराज़ हुआ जा सकता है, सिर पटका जा सकता है पर वहाँ अब कोई फ़रियाद की सुनवाई होती ही नहीं! सारी याचिकाएँ यूँ ही खारिज़ होती चली जाती हैं.
न जाने कहाँ से आई थी / न जाने कहाँ गई अब / दीवाना किसे बनाएगी ये लड़की!
बड़ी छोटी थी मुलाक़ात/ बड़े अफ़सोस की है बात / किसी के हाथ न आएगी ये लड़की.....!
बेहद मलाल है इस लड़की की दूसरी पारी न देख पाने का...पर यही नियति है शायद, मेरी, आपकी, हम सबकी!
अश्रुपूरित विदा, मिस हवा हवाई! पद्मश्री, श्रीदेवी जाओ, अपनी चाँदनी की चमक से उस जहां को भी रौशन कर दो! सितारों के आगे जहां और भी हैं!
- प्रीति 'अज्ञात'
#श्रीदेवी #Sridevi
समझ नहीं पा रही हूँ कि मैं इस हद तक बेचैन क्यों हूँ? आख़िर मेरा उनसे रिश्ता ही क्या था? वो तो मुझे जानती तक न होंगीं! तो फिर ये क्या है जो मेरी आँखों को नम किये जाता है? क्यों मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे मैंनें किसी बेहद अपने को खो दिया हो!
आह! भावनाएँ जब उफ़ान पर होती हैं तब बहुधा उन्हें व्यक्त करने के लिए शब्दों का अभाव-सा क्यों महसूस होता है? ये जो दिल है, भीतर-ही-भीतर इस तरह चुपचाप आँसू क्यों बहाता है? और भाव हैं कि कागज़ों पर उतरने से साफ़ इंकार कर देते हैं. ऐसे समय में चुप होकर स्वयं को समेट लेने की मैं भरसक कोशिशें कर रही हूँ. अब जबकि इस ख़बर को मुझ तक पहुँचे हुए लगभग बारह घंटे बीतने को हैं, मैं स्वयं और मुझ जैसे कईयों को उत्तर दे पाने में स्वयं को थोड़ा समर्थ महसूस कर रही हूँ.
दरअसल हम सब बड़े मतलबी लोग हैं. हम उन्हीं से जुड़ जाते हैं जिन्होंने हमारे सपनों को हवा दी हो! हमारे दिलों में मोहब्बत की शमा रोशन की हो! इश्क़ की गुदगुदाहट से हमें लबरेज़ कर दिया हो! जीतू जी और श्री की शुरूआती फिल्मों ने किशोर मन की इन्हीं सीढ़ियों पर ही अपना हाथ थामा था!
चुलबुली, शोख़ अदाएँ हमें हमेशा ही लुभाती रही हैं और उस पर शैतानियों का मुलम्मा चढ़ जाए, तो कहना ही क्या! 'चालबाज़' ने हमारे इन्हीं अरमानों में ही तो इंद्रधनुषी रंग भरे थे!
भोले मासूम नयन और भावुक मन, जो कभी बात समझता है तो कभी क़तई सुनना तक नहीं चाहता, 'लम्हे' इन्हीं ख़ूबसूरत लम्हों की ही तो बयानगी है!
संवेदनशीलता, भाव-प्रवणता और भावुकता भरे ह्रदय वाली स्त्री जो समझदार हो, सबकी परवाह करे, नृत्य, पाक कला में भी पारंगत हो और अपनी खिलखिलाहट से घर गुंजायमान कर दे; 'चाँदनी' ने इसी उम्मीद की चमक घर-घर में बिखेर दी थी.
मिस्टर इंडिया की वो जर्नलिस्ट जो बच्चों के नाम तक से चिढ़ती थी, जब उन्हें गले लगाती है तो देश के बच्चे-बच्चे की दीदी बन जाती है और वही जब 'काटे नहीं कटते ये दिन और रात' पर थिरकती है तो लाखों युवाओं की धड़कनें यक़ायक़ जैसे थम सी जाती हैं.
कौन भूल सकता है, 'सदमा' के उस मासूम चेहरे को; जिसने हॉल को हिचकियों से भर दिया था!
हर लेडीज संगीत कार्यक्रम, नगीना के 'मैं नागिन तू सपेरा' के बिना अधूरा है और चाँदनी के 'मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियाँ हैं' पर नृत्य किये बिना कोई दुल्हन घर से विदा नहीं होती. ये चुहलबाज़ियाँ ही तो जीवन के उदास क्षणों भरे अल्बम में हँसी की जगमग तस्वीर उकेरती हैं.
वो चेहरा जिसकी हँसी अपनी-सी लगे, जिसका दुःख हमको भी तोड़ दे, जिसकी शैतानियों पर हमारा दिल भी बच्चा बन जाए, जिसकी मासूमियत हर उम्र का मन मोह ले, जिसके इश्क़ का अंदाज़ पत्थरों को भी पिघलाने का माद्दा रखता हो, 'ख़ुदा ग़वाह' हो जिसका ......वह शख़्स कभी ग़ैर नहीं होता, वो हमारे-आपके जीवन का एक हिस्सा बन जाता है, उम्र के हर दौर में उसका चेहरा, उसके गीत हमारे साथ चलते हैं. उसकी फ़िल्में सदैव हमारे साथ रहती हैं, जिनमें उसकी मुस्कान बदलती नहीं! ऐसे शख़्स दुनिया छोड़ जाने के बाद भी हमारे साथ रहते हैं इंग्लिश-विंग्लिश बोलती, आत्मविश्वासी, स्नेहिल, प्रेरणामयी किसी MOM की तरह!
क़िरदार को जीना किसे कहते हैं, यह कोई श्रीदेवी से सीखे. लाखों दिलों को धड़काने वाली इस अदाकारा के दिल ने धड़कने से मुँह क्यों फेर लिया, यह बात समझ के बाहर है. 'खनन-खन चूड़ियाँ खनक गई' कहकर इतराने वाली वो मोरनी न जाने कहाँ चली गई! पर इतना तय है कि ये लम्हे, ये मौसम हम वर्षों याद करेंगे...ये मौसम चले गये तो हम फरियाद करेंगे! लेकिन हम ये भी जानते हैं कि ईश्वर की इस तानाशाही से बस नाराज़ हुआ जा सकता है, सिर पटका जा सकता है पर वहाँ अब कोई फ़रियाद की सुनवाई होती ही नहीं! सारी याचिकाएँ यूँ ही खारिज़ होती चली जाती हैं.
न जाने कहाँ से आई थी / न जाने कहाँ गई अब / दीवाना किसे बनाएगी ये लड़की!
बड़ी छोटी थी मुलाक़ात/ बड़े अफ़सोस की है बात / किसी के हाथ न आएगी ये लड़की.....!
बेहद मलाल है इस लड़की की दूसरी पारी न देख पाने का...पर यही नियति है शायद, मेरी, आपकी, हम सबकी!
अश्रुपूरित विदा, मिस हवा हवाई! पद्मश्री, श्रीदेवी जाओ, अपनी चाँदनी की चमक से उस जहां को भी रौशन कर दो! सितारों के आगे जहां और भी हैं!
- प्रीति 'अज्ञात'
#श्रीदेवी #Sridevi