रविवार, 19 सितंबर 2021

Cadbury का #GoodLuckGirls लैंगिक समानता के पक्षधर समाज की सचित्र, संगीतमय व्याख्या है.


अभी तक फ़िल्मों के रीमेक खूब देखे हैं हमने. लेकिन विज्ञापन का भी रीमेक बन सकता है और वो भी ऐसे विज्ञापन का, जो अपने समय का सबसे पसंदीदा विज्ञापन रहा हो! यह बात जरूर चौंकाती है. लेकिन कैडबरी ने ऐसा कर दिखाया और वो भी इतनी खूबसूरती से कि इस बार भी मुँह से वाह, वाह ही निकलती रही. इतनी नरमी और सहजता के साथ, लैंगिक समानता के संदेश को दिलों तक पहुँचा देने के लिए कैडबरी और विज्ञापन एजेंसी Ogilvy की पूरी क्रिएटिव टीम को सलाम बनता है. 

यह विज्ञापन लैंगिक रूढ़ियों और खेल से जुड़ी धारणाओं में परिवर्तन का जश्न है. इसने यह भी सिखाया कि नारी-सशक्तिकरण की बातें केवल चर्चाओं, रैलियों और आंदोलन के माध्यम से ही नहीं कही जातीं, उन्हें कलात्मक तरीके से सबकी भावनाओं को स्पर्श करते हुए भी बखूबी कहा जा सकता है. यह बदलते समय की न्यूनतम समय में की गई प्रभावी, उत्कृष्ट प्रस्तुति है.  
हो सकता है, आपने मूल विज्ञापन के समय को जिया हो और थोड़े नॉस्टैल्जिक होकर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' कहने लगें. लेकिन ये तो मानेंगे ही कि कैडबरी डेयरी मिल्क का ये नया विज्ञापन कहीं भी पुराने से उन्नीस नहीं ठहरता! संगीत और शब्द वही होने के बावजूद भी इसका असर रत्ती भर भी कम नहीं हुआ है. वही चिर-परिचित संगीत अब भी आपके मन के तारों को पहले सा छेड़, भावुक कर जाता है. 

आपको याद है न! लगभग 3 दशक पूर्व ऐसी ही मोहब्बत की खुशबू एक स्टेडियम में फैली थी. ऐसा ही अचरज हम सबकी आँखों में भरा था. विज्ञापनों की दुनिया में तहलका मचा था और बच्चा-बच्चा गुनगुनाने लगा था-
कुछ बात है हम सभी में
बात है, खास है, स्वाद है 
क्या स्वाद है ज़िंदगी में 
हूबहू यही दृश्य था. स्टेडियम में मैच चल रहा है. 99 पर खेलते हुए खिलाड़ी लड़के ने बॉउन्ड्री के पार जाने को गेंद हवा में उछाल दी है. फील्डर, कैच पकड़ने को दौड़ रहा है. दर्शक दीर्घा में जोश है और उत्सुकता भी. इसी बीच दिल में धड़कती साँसों और हाथ में कैडबरी डेयरी मिल्क को थामे हुए एक चेहरा स्क्रीन पर उभरता है. इस चेहरे से जैसे सबकी साँसें जुड़ गई हैं. 
छक्का लगता है. फ्लोरल टॉप पहने वो लड़की अब सुरक्षा घेरे को तोड़ मैदान में आ जाती है. वो खुशी से झूमकर नाचती है तो लगता है जैसे सारी दुनिया से बेपरवाह होकर वो तो बस अपने प्रेमी के शतक का उत्सव मना रही है. इधर प्रेमी के चेहरे की चमक, खिलती हँसी और उस पर लड़की के लिए उमड़ता प्यार अलग ही सबका दिल लूटे ले रहा था. तभी पार्श्व में धुन बज उठती है 'कुछ खास है ज़िंदगी में'. उसके साथ ही जीत के जश्न में कैडबरी डेयरी मिल्क की मिठास घुल जाती है. 'असली स्वाद ज़िंदगी का' की टैगलाइन के साथ दोनों गले लग जाते हैं.


अहा! जो भी इस विज्ञापन को देखता, भीतर तक खिल उठता. उसका मन महकने लगता. यह था ही इतने क़माल का. सब कुछ बेहद स्वाभाविक था इसमें. और इसी स्वाभाविकता ने उसे सबसे खास बना दिया था. देखा जाए तो इस विज्ञापन ने ही यह धारणा ध्वस्त की, कि चॉकलेट केवल बच्चे खाते हैं. अब हर कोई उसे खाना चाहता था, हर लड़का-लड़की अपने जीवन में उल्लास की मधुरता को यूँ ही जीना चाहते थे. हाथ में कैडबरी थामे लड़का-लड़की मोहब्बत की जीवंत तस्वीर बन गए थे. 

अब कैडबरी के नये विज्ञापन ने वो पुरानी यादें तो ताजा की हीं. साथ ही एक संदेश देकर इसे नए आयाम भी प्रदान कर दिए हैं. इस नए विज्ञापन में भूमिकाएं बदल गई हैं. सब कुछ वही है. बस लड़के-लड़की के रोल उलट दिए गए हैं. इस बार पिच पर एक महिला क्रिकेटर है और दर्शक-दीर्घा में पुरुष उसके लिए प्रार्थना कर रहा है. कहने को ये जरा सी बात भी लग सकती है लेकिन इस एक परिवर्तन ने भावनाओं का जैसे ज्वार ही ला दिया है. यह विज्ञापन अब केवल कैडबरी डेयरी मिल्क की ही बात नहीं कर रहा, बल्कि ये भी कह रहा है कि देखो! समय बदल गया है. देखो, हमारी लड़कियाँ भी अब खूब खेल रहीं हैं. प्रगति कर रही हैं. समाज में बदलाव आया है.अभी तक तो लड़कियाँ ही लड़कों का हौसला बढ़ाती रहीं, उनकी तारीफ़ में गदगद होती रहीं. लेकिन अब दर्शक दीर्घा में खुशी से कूदते इस लड़के से समझो कि लड़कियों को हौसला यूँ दिया जाता है. साथी की जीत में यूँ जश्न मनाया जाता है. 

बेशक़ इस नए विज्ञापन में जीत की भावना वही है, सफ़लता को उसी जोशोखरोश के साथ मनाया गया है लेकिन इस बार जो भाव और जुड़ गया है वो है हमारे समाज में स्त्रियों की प्रगति का, उन्हें सम्मान देने का, उनकी उपलब्धियों की जय-जयकार करने का. यह नए भारत का विज्ञापन है, उम्मीद का विज्ञापन है,  #GoodLuckGirls hashtag के साथ यह लैंगिक समानता के पक्षधर बनते समाज की सचित्र, संगीतमय व्याख्या है. 
इसे ichowk पर भी पढ़ा जा सकता है -


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गुरुवार, 2 सितंबर 2021

#SidNaaz का Sid हमेशा-हमेशा को चला गया.

 सिद्धार्थ शुक्ला के निधन की खबर पर सहसा विश्वास नहीं होता! एक प्रतिभाशाली, उदीयमान कलाकार जिसने अभी सफ़लता के पायदान पर आगे बढ़ना शुरू ही किया था कि अचानक ही  उसके जीवन का अस्त हो गया. पूरी तरह से चुस्त-दुरुस्त दिखने वाले, व्यायाम को अपनी नियमित जीवन शैली का हिस्सा बनाने वाले सफ़ल अभिनेता का यूँ असमय चले जाना बेहद दुखद है. उनके परिवार का सोच कलेजा भर आता है. उस माँ पर क्या बीती होगी जिसने एक बेहद ज़हीन बेटा खो दिया, उन बहिनों का क्या हाल हुआ होगा जिनका प्यारा भाई अगली राखी पर अब साथ न होगा! कल तक जो हमारे साथ था, वो आज से नहीं है; जीवन की क्षणभंगुरता का यह रूप बुरी तरह से भयभीत कर देता है. 

मैं टीवी धारावाहिक नहीं देखती. जब संभव हो तो रियलिटी शोज़ या टॉक शोज़ जरूर देख लेती हूँ. सिद्धार्थ को मैंने बिग बॉस के माध्यम से ही जाना. यद्यपि उस समय तक मैंने यह शो देखना छोड़ दिया था. लेकिन जब इसकी खबरें बहुत आने लगीं तो पुनः उत्सुकता हुई. इस उत्सुकता का नाम था,शहनाज़. सिद्धार्थ के प्रेम में दीवानी हुई एक चुलबुली लड़की. सब इस लड़की के बारे में बहुत कुछ कहते लेकिन मेरा उस पर यक़ीन सदा ही बना रहता. वो चाहे किसी से भी बात करे, कुछ भी कहे, लड़े-झगड़े पर अपने सिड के प्रेम में दीवानी थी वो. उसकी आँखों में, उसके चेहरे पर, उसके व्यवहार में, उसके गुस्से में हर जगह उसका सिड था. 

कभी जब सिद्धार्थ उससे रूठ जाता या उसकी बातों को अहमियत नहीं देता तो मुझे बहुत खराब लगता था. मैं सोचती कि माना शहनाज़ की हरकतें बचकानी हैं पर तू उसका प्यार तो देख! माना वो थोड़ी अल्हड़, नादान है पर उसकी दीवानगी तो देख! वो जो भी कर रही है, सब तेरी ही अटेंशन पाने को! उस जैसी प्यार करने वाली नसीब वालों को ही मिलती है. यक़ीनन सिड भी इस बात को समझता था और शहनाज़ की तरफ़ बेपरवाही दिखाते हुए भी उसकी बहुत परवाह करता था. शहनाज़ उसके पीछे-पीछे घूमती और ये उसकी किसी बात से रूठा होता तो लाख मनाने पर भी न मानता. वो मुँह फुलाकर बैठ जाती तो सामने इग्नोर करता. लेकिन दूर से ही उसे प्यार भरी नज़रों से निहारना न भूलता! उसकी भावनाओं की कद्र करता. 

जब ये दोनों साथ होते तो जैसे पूरा घर मुस्काता. बिग बॉस के ज़र्रे-ज़र्रे में मोहब्बत गूँजती. सारा घर खुश रहता. कभी-कभी सिड, शहनाज़ को उसकी गलतियों के बारे में समझाता और वो मान  भी जाती. हाँ, तुनककर ऐसा जरूर कहती कि 'तू ये बात तब भी तो प्यार से बोल सकता था न!'  सिड कभी मुस्कुराता, कभी हँसता और कभी उसे देखते हुए शून्य में खो जाता. यूँ लगता, जैसे गढ़ रहा है इस रिश्ते को. उसे  भावनाओं का सम्मान करना आता था. रिश्तों की अहमियत का खूब अहसास था उसे. इन दोनों के बीच का रिश्ता दोस्ती था या प्यार, ये जानने में मुझे कभी दिलचस्पी नहीं रही. लेकिन इतना जरूर जानती थी कि यह बेहद खूबसूरत दिल का रिश्ता है. ये रिश्ते नाम के मोहताज़ नहीं होते. ऊपर से बनकर आते हैं. सदा साथ रहने को. आज ये भरम टूट गया है. 

सिद्धार्थ शुक्ला का जाना उनके परिवार के लिए कितना असहनीय होगा, ये हम जानते हैं. लेकिन आज एक खिलखिलाती लड़की के चेहरे से उसकी मुस्कान छीन ली गई है. उसको मनाने वाला एक साथी चला गया है. उसकी बातों पर हँसने-छेड़ने और उसे दुलारने वाला दोस्त चला गया. शहनाज़ के दिल का शहजादा चला गया. सिडनाज़ का सिड हमेशा-हमेशा को चला गया. लड़की, इस दुख को सहन करने की हिम्मत रखना तुम!

- प्रीति अज्ञात 

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 कुछ तो अच्छे कर्म रहे ही होंगे जो सुबह-सुबह ऐसी दुर्लभ ख़बर से सामना हुआ -

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खड़े वाहन में घुस गया सांप 

अल्मोड़ा। करबला के पास खड़ी Dl2FCG0555 में रविवार की देर शाम सांप घुस आया।

कार में बैठने से पहले वाहन स्वामी की नजर सांप में पड़ गई। इस बीच मौके पर लोगों की भीड़ जमा हो गई। इधर मौके पर वन विभाग की टीम पहुंची। काफी देर के रेस्क्यू में तेंदुए की जान नहीं बच सकी। संवाद

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हे ईश्वर! क्या यही दिन देखने के लिए हमें जीवित रख छोड़ा है? आदरणीय पत्रकार जी, एक सलाह हमारी भी सुनो. यदि इसमें एक पंक्ति और जोड़ देते कि 'फिर भारी जनसमूह के साथ कछुए की शवयात्रा निकाली गई'. क़सम से, तब तो मज़ा ही आ जाता इसे पढ़ने का!

भई! बहुत समाचार पढ़े हैं, टीवी पर भी देखे-सुने. अनगिनत फ़िल्में देखीं पर कहानी में ऐसा खतरनाक मोड़! तौबा रे तौबा! बाहुबली की पटकथा भी इसके आगे पानी भरती नज़र आए. सच!अब तक कितने बड़े रोमांच से वंचित थे हम! लेकिन हम भी कुछ कम नहीं! पत्रकार बिरादरी के साथ अंतिम साँस तक खड़े रहेंगे. तभी तो नियति के इस क्रूर मज़ाक को पढ़ने के बाद भी हार नहीं मानी है और इस अद्भुत, अकल्पनीय, अलौकिक समाचार के संदर्भ में कुछ निष्कर्ष प्राप्त कर ही लिए हैं -

1. हो सकता है, उस साँप का नाम 'तेंदुआ' हो और उसके मम्मी-पापा ने उसके गले में इस नाम का locket लटका रखा हो. 

2. ये भी संभव है कि गाड़ी तेंदुआ चला रहा था. अब चूँकि साँप को गाड़ी मालिक से ही बदला लेना था. तो उसने तेंदुए को काट लिया होगा. जिसके परिणामस्वरूप उस तेंदुए की ही लाश प्राप्त हुई. इस दुखद पल में साँप का उल्लेख, उचित नहीं था. 

3. कार की अंतिम तीन डिजिट 555 है. शास्त्रों में इस तरह के अंकों को शुभ एवं मंगलकारी बताया गया है. अतएव वह कार भी चमत्कारी हो सकती है. तात्पर्य यह कि घुसा तो साँप ही पर वो तेंदुआ बनकर बाहर निकला. 

4. क्या पता वह किसी सुप्रसिद्ध, जनहित में प्रसारित होने वाले, ज्ञानवर्धक धारावाहिक की इच्छाधारी नागिन हो, जो कि सेट से बाहर हवा खाने निकल आई थी. फिर उसे मुँह की खानी पड़ी. अब एकता उसके घरवालों पर कितना गुस्सा करेगी, सोचकर अपना तो दिल ही बैठा जा रहा. 

5.उस कार में रजनीकांत बैठे थे तो न्यूज उनके लेवल की बनाई गई है. कृपया, धैर्य रखें. अब इसका सीक्वल आएगा. 

6. नागपंचमी अभी-अभी निकली है. जन-साधारण की भावनाएं आहत न हों, इसलिए क्लाइमैक्स बदल दिया गया है.  

7. हो न हो, ये वन विभाग की कारस्तानी है जिसने एक पहले से मरे तेंदुए को दूसरे दरवाजे से घुसेड़ दिया और साँप को सीट बेल्ट की जगह लटका दिया. 

8. संभवतः नौकरी सिफ़ारिश की है और बंदा कर-करके परेशान हो गया है. अब आत्मनिर्भर बनने का इच्छुक होगा. 

9. तालिबानी सिर पर खड़े थे और उनके हथियारों को देख घबराहट में साँप को तेंदुआ बन प्राण तजने पड़े. 

10. अच्छा, इस ख़बर का शीर्षक भी बड़ा रोचक है -'खड़े वाहन में घुस गया सांप'मतलब ये कहना चाह रहे कि सामान्यतः तो वो चलती ट्रेन को जंप मारकर पकड़ता आया है. पर इसकी जुर्रत तो देखो! मुआ, अबकी बार खड़े वाहन में भी घुस गया. वैसे आनंद में सौ गुना वृद्धि चाहिए तो आप इस 'समाचार' का एक-एक शब्द गौर से पढ़िए. हर शब्द में क्रांति भरी हुई है. 

11. जिस विकास को पाने के लिए हम तड़प रहे थे, सनसनी फैलाता हुआ अंततः वो मिल ही गया। देखो, देखो वो आ गया! हा हा हहा हा 

जो भी सच हो जी, पर भगवान के लिए कोई उस साँप का भी इंटरव्यू ले लो. न जाने उसके दिल पर क्या बीती होगी.  बताओ तो, उसके काम का क्रेडिट कोई और ले गया!क्या वो अब लौटेगा? क्या वो तेंदुआ का रूप धर, अपने खोए हुए सम्मान को प्राप्त करने की चेष्टा करेगा? ये कुछ प्रश्न हैं जिनके उत्तरों की तलाश जारी है. 

हम जैसे कुंठित लेखक का दुख: जो भी सच हो जी, पर ऐसी खबरें अगर लिखी जा रहीं हैं और उसके बाद ससम्मान छापी भी जा रहीं हैं! तो हम क्या बुरे हैं! हमने ऐसे कौन से पाप कर दिए, जो बेरोज़गारी का दंश झेल रहे और ऐसे लेखन वाले तनख्वाह पा रहे! ये हम जैसे मासूम लेखकों की भावनाओं के साथ भीषण खिलवाड़ है, मानसिक उत्पीड़न की पराकाष्ठा है जी! अब आप तो हम पर देशद्रोह का आरोप लगाकर पाकिस्तान ही भेज दो. अरे, सॉरी. अबकी तो तालिबान भेजने का टर्न चल रहा न!

- प्रीति अज्ञात 

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