मेरी मित्रता-सूची में सबसे अधिक संख्या में यदि कोई राज्य नज़र आता है तो वो है बिहार/ झारखंड। पता नहीं, यह महज़ संयोग है या कि यहाँ के लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय हैं।
जहाँ हर तरफ़ इस राज्य (मैं अब भी दोनों को एक ही मानती हूँ) को लेकर नकारात्मकता फैली हुई है, वहीं मैं न केवल इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए ही प्रसन्न होती हूँ बल्कि इसे बौद्धिकता और साहित्य के प्रति अगाध प्रेम से पटा हुआ भी पाती हूँ। यहाँ के पठन-पाठन में रुचि रखने वाले लोग जमकर लिखते हैं और अपनी बात को बिना किसी लाग-लपेट के खुलकर कहने में जरा भी नहीं झिझकते। ये अच्छे मित्र हैं, मिलनसार हैं, बातूनी हैं, मस्तीखोर हैं, आशिकमिजाज़ हैं, बिंदास हैं। लेकिन अगर आपकी बात नहीं जँची या फिर आपने कोई बेफिज़ूल बात कह दी तो आवश्यकतानुसार ये दादागिरी पर उतर आने में भी नहीं चूकते। अभी-अभी ही कुछ मित्रों को याद कर 'दादागिरी' को मैंने 'लड़ाकू और अकडू' के सम्मिश्रण के अर्थ में लेने की गुस्ताख़ी कर दी है।
आज देश भर में त्यौहारों की चमक भले ही धूमिल पड़ती जा रही है, लेकिन यहाँ के लोगों के भीतर का उत्साह अब भी जीवित है। बल्कि बिहार, उन इक्का दुक्का राज्यों की श्रेणी में आता है जहाँ आज भी उत्सवों को धूमधाम, पारंपरिक तरीक़े और पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कम-से-कम मुझे तो यही महसूस होता है।
इस राज्य के साथ जब हम ग़रीबी, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, बढ़ते अपराध, अन्याय और विकृत शिक्षा प्रणाली की बात करते हैं तब हम उस लचर और बेलगाम तंत्र व्यवस्था की चर्चा करना भूल जाते हैं जिसके सुधार के बिना इन समस्याओं से मुक्ति पाना असंभव है। पर यह मात्र बिहार ही नहीं, शेष राज्यों में भी इतना ही विकराल रूप धारण किए उपस्थित हैं। हाँ, बिहारी इन बातों को लेकर अत्यधिक भावुक एवं संवेदनशील हो जाते हैं..यहाँ उन्हें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण और आत्मशोधन की आवश्यकता है।
अपनी जन्मभूमि से स्नेह होना स्वाभाविक है, होना ही चाहिए! तभी तो
हमें नालंदा पर गर्व है, बुद्ध पर अभिमान है, देश को सर्वाधिक प्रशासनिक सेवा अधिकारी देने की प्रसन्नता है, जमीन से जुड़े रहने की ज़िद है पर यदि हमारी कमी को लेकर कोई कुछ इंगित करता है तो उसे सहज स्वीकार कर बदल देने का जुझारूपन भी और बढ़ाना होगा। किसी बहस में उलझने से कहीं ज्यादा प्रयास करने होंगे कि हमारे राज्य की तस्वीर और भी ख़ूबसूरत बने। अंततः हैं तो हम भारतीय ही। देश का हर कोना हमारा अपना ही तो घर है।
आज जबकि मैं यह लिख रही हूँ तो मेरी मित्रता सूची के तमाम प्यारे चेहरे मेरी आँखों में तैर रहे हैं। वे शानदार लेखक, लेखिका, संपादक, पत्रकार, अध्यापक, समाज सेवी, व्यापारी, सरकारी नौकरी में सेवारत और लगभग हर व्यावसायिक क्षेत्र से जुड़े हैं। सबकी अपनी विशिष्ट पहचान है। इन सबमें अगर कोई बात कॉमन है तो वो है इनका साहित्य के प्रति मोह, अधिकाधिक एवं अच्छा पढ़ने की लालसा और भीड़ में एक अलग पहचान बनाने की अदम्य इच्छाशक्ति।
मैं आप सबको 'बिहार दिवस' पर ख़ूब शुभकामनाएँ और बधाई देती हूँ कि आप अपने राज्य के साथ हम सबको गौरवान्वित करें। मित्रता-सूची में जुड़े होने का शुक्रिया भी क़बूल कीजिए। कई लोग हैं जिनके नाम मैं लेना चाहती हूँ पर संभव है कि इस प्रक्रिया में कई नाम रह भी जाएँ।
वैसे भी आप लोग कहते हैं न कि 'एक बिहारी सबपे भारी' तो इस बात पर गौर फरमाते हुए और अपने-आप को भावी दुविधा से सुरक्षित रखने हेतु मैं किसी को टैग न करना ही उचित समझती हूँ।
और हाँ, सुनिए... यदि बिहार देश के गले का हार है तो आप उस हार के गुलाब और गुलाबो हैं। इसी बात पर दिल करे तो दो गुलाबजामुन खा लीजिएगा।
शेष शुभ ही शुभ है।
पर सबसे मज़ेदार बात ये है कि हम आज तक बिहार ही न गए। :D
- प्रीति 'अज्ञात'
जहाँ हर तरफ़ इस राज्य (मैं अब भी दोनों को एक ही मानती हूँ) को लेकर नकारात्मकता फैली हुई है, वहीं मैं न केवल इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए ही प्रसन्न होती हूँ बल्कि इसे बौद्धिकता और साहित्य के प्रति अगाध प्रेम से पटा हुआ भी पाती हूँ। यहाँ के पठन-पाठन में रुचि रखने वाले लोग जमकर लिखते हैं और अपनी बात को बिना किसी लाग-लपेट के खुलकर कहने में जरा भी नहीं झिझकते। ये अच्छे मित्र हैं, मिलनसार हैं, बातूनी हैं, मस्तीखोर हैं, आशिकमिजाज़ हैं, बिंदास हैं। लेकिन अगर आपकी बात नहीं जँची या फिर आपने कोई बेफिज़ूल बात कह दी तो आवश्यकतानुसार ये दादागिरी पर उतर आने में भी नहीं चूकते। अभी-अभी ही कुछ मित्रों को याद कर 'दादागिरी' को मैंने 'लड़ाकू और अकडू' के सम्मिश्रण के अर्थ में लेने की गुस्ताख़ी कर दी है।
आज देश भर में त्यौहारों की चमक भले ही धूमिल पड़ती जा रही है, लेकिन यहाँ के लोगों के भीतर का उत्साह अब भी जीवित है। बल्कि बिहार, उन इक्का दुक्का राज्यों की श्रेणी में आता है जहाँ आज भी उत्सवों को धूमधाम, पारंपरिक तरीक़े और पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कम-से-कम मुझे तो यही महसूस होता है।
इस राज्य के साथ जब हम ग़रीबी, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, बढ़ते अपराध, अन्याय और विकृत शिक्षा प्रणाली की बात करते हैं तब हम उस लचर और बेलगाम तंत्र व्यवस्था की चर्चा करना भूल जाते हैं जिसके सुधार के बिना इन समस्याओं से मुक्ति पाना असंभव है। पर यह मात्र बिहार ही नहीं, शेष राज्यों में भी इतना ही विकराल रूप धारण किए उपस्थित हैं। हाँ, बिहारी इन बातों को लेकर अत्यधिक भावुक एवं संवेदनशील हो जाते हैं..यहाँ उन्हें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण और आत्मशोधन की आवश्यकता है।
अपनी जन्मभूमि से स्नेह होना स्वाभाविक है, होना ही चाहिए! तभी तो
हमें नालंदा पर गर्व है, बुद्ध पर अभिमान है, देश को सर्वाधिक प्रशासनिक सेवा अधिकारी देने की प्रसन्नता है, जमीन से जुड़े रहने की ज़िद है पर यदि हमारी कमी को लेकर कोई कुछ इंगित करता है तो उसे सहज स्वीकार कर बदल देने का जुझारूपन भी और बढ़ाना होगा। किसी बहस में उलझने से कहीं ज्यादा प्रयास करने होंगे कि हमारे राज्य की तस्वीर और भी ख़ूबसूरत बने। अंततः हैं तो हम भारतीय ही। देश का हर कोना हमारा अपना ही तो घर है।
आज जबकि मैं यह लिख रही हूँ तो मेरी मित्रता सूची के तमाम प्यारे चेहरे मेरी आँखों में तैर रहे हैं। वे शानदार लेखक, लेखिका, संपादक, पत्रकार, अध्यापक, समाज सेवी, व्यापारी, सरकारी नौकरी में सेवारत और लगभग हर व्यावसायिक क्षेत्र से जुड़े हैं। सबकी अपनी विशिष्ट पहचान है। इन सबमें अगर कोई बात कॉमन है तो वो है इनका साहित्य के प्रति मोह, अधिकाधिक एवं अच्छा पढ़ने की लालसा और भीड़ में एक अलग पहचान बनाने की अदम्य इच्छाशक्ति।
मैं आप सबको 'बिहार दिवस' पर ख़ूब शुभकामनाएँ और बधाई देती हूँ कि आप अपने राज्य के साथ हम सबको गौरवान्वित करें। मित्रता-सूची में जुड़े होने का शुक्रिया भी क़बूल कीजिए। कई लोग हैं जिनके नाम मैं लेना चाहती हूँ पर संभव है कि इस प्रक्रिया में कई नाम रह भी जाएँ।
वैसे भी आप लोग कहते हैं न कि 'एक बिहारी सबपे भारी' तो इस बात पर गौर फरमाते हुए और अपने-आप को भावी दुविधा से सुरक्षित रखने हेतु मैं किसी को टैग न करना ही उचित समझती हूँ।
और हाँ, सुनिए... यदि बिहार देश के गले का हार है तो आप उस हार के गुलाब और गुलाबो हैं। इसी बात पर दिल करे तो दो गुलाबजामुन खा लीजिएगा।
शेष शुभ ही शुभ है।
पर सबसे मज़ेदार बात ये है कि हम आज तक बिहार ही न गए। :D
- प्रीति 'अज्ञात'