रविवार, 21 फ़रवरी 2021

#IndianIdol


आज का #IndianIdol माँ को समर्पित था. शायद ही कोई दर्शक होगा जिसका जी न भर आया होगा, गला न अटका होगा!  उस पर मनोज मुंतशिर जी के शब्दों ने हर गीत की भूमिका को जैसे शृंगारित ही कर दिया था. यह विषय है ही ऐसा कि हर इंसान इससे जुड़ा हुआ महसूस करता है. लेकिन इस शो से दर्शकों के ज़बरदस्त जुड़ाव का एक और महत्वपूर्ण कारण है, वो है इसके तीन शानदार जज.

बहुत सारे रियलिटी शोज़ आते हैं और धीरे-धीरे सब एक ही ढर्रे को पकड़ लेते हैं. वही एंकर का किसी एक जज के साथ फ्लर्ट करना, कभी किसी कंटेस्टेंट के बॉयफ्रेंड/गर्लफ्रैंड का किस्सा या फिर किसी के पापा या मम्मी की नाटकीयता भरी दीवानगी. ये इस हद तक होता है कि कोफ़्त होने लगती है. फिर या तो हम वो प्रोग्राम देखना ही छोड़ देते हैं या फिर उसे रिकॉर्ड कर फॉरवर्ड करते हुए, केवल पार्टिसिपेंट्स की परफॉर्मेंस देखते हैं. लेकिन  #IndianIdol  अकेला ऐसा शो है जो प्रतियोगियों के साथ-साथ उसके जजों के कारण भी देखा जाता है. इतने अच्छे, सच्चे और ईमानदार जज शायद ही किसी और शो में नज़र आते हों.
बात प्रतियोगी को प्रोत्साहित करने की हो, उसे मार्गदर्शन देकर सुधार की कहने की या खुलकर उसकी प्रशंसा करने की...तीनों अपना काम इतनी बखुबी से निभाते हैं कि प्रत्येक कंटेस्टेंट के साथ उनका स्पेशल कनेक्ट दिखता है.

मैं हमेशा से मानती हूँ कि किसी भी रचनात्मक क्षेत्र से जुड़े होने वाले इंसान बेहद भावुक, संवेदनशील और भावनाओं को गहराई से समझने वाले होते हैं. यही गुण हैं जो इंसान को खूबसूरत बनाते हैं और भीड़ से अलग खड़ा करते हैं. मैं जब विशाल ददलानी, नेहा कक्कड़ और हिमेश रेशमिया को देखती-सुनती हूँ तो बस एक ही बात समझ आती है कि ये तीनों मिट्टी से जुड़े लोग हैं, संगीत और मोहब्बत में सिर से पाँव तक डूबे लोग हैं. अहंकार उन्हें छू भी नहीं गया है. सबसे अच्छी बात यह है कि इनकी बातों में बनावट नहीं है. बच्चों जैसे हँसते हैं और जमकर मस्ती भी करते हैं लेकिन अपने काम के लिए पूरी तरह समर्पित और एकदम संज़ीदा. ऊँचाई तक कोई यूँ ही तो नहीं पहुँच जाता न!

विशाल ददलानी को मैंने पहले भी कई बार निर्णायक की कुर्सी पर बैठे देखा है. उनकी स्पष्टवादिता, समझ, भाषा और संगीत के प्रति सम्मान की प्रशंसक रही हूँ. प्रेम से भरे हैं वे. 
नेहा किसी चंचल, भोली हिरणी की तरह इतनी प्यारी और मासूम हैं कि जब वे जरा सी भी उदास दिखती हैं तो बर्दाश्त ही नहीं होता! जी करता है कि दुनिया जहान की सारी खुशियाँ इस प्यारी लड़की की झोली में डाल दूँ! 
हिमेश रेशमिया को पहली बार इस रूप में देखा है और उनके व्यक्तित्व का सबसे सुनहरा रंग देखने को मिला है, उनके बारे में अलग जानने को मिला है. वे बेहद भावुक और प्यारे इंसान हैं. हाँ, एक बात और है कि उनकी और विशाल की आँखों मे कभी-कभी एक सूनापन भी दिखाई देता है. जैसे कोई गहरी उदासी हो, जैसे कोई अनकही कहानी वहीं ठहर गई हो, जैसे एक दरिया है जो खुद को बहने से रोक लेता है बार बार.  ईश्वर उन्हें जीवन की हर खुशी दे!

फिलहाल बस इतना ही कहकर अपनी बात को विराम दूँगी कि जिसका दिल बड़ा होता है, उसका कद और भी बड़ा हो जाता है. इन तीनों ही जजों का क़द मेरी नज़र में बहुत बड़ा है. 
- प्रीति 'अज्ञात'
#VishalDadlani #iAmNehaKakkar #SonyTV #HimeshReshammiya
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शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

इंजेक्शन से मर्द को भी दर्द होता है!

सबसे पहले तो मैं इस झूठी कहावत को तत्काल प्रभाव से खारिज़ करना चाहती हूँ कि ‘मर्द को दर्द नहीं होता!’ भिया, होता है और बहुत जोर से होता है. इतना भीषण होता है कि उसकी चीख ही निकल जाती है. हाल ही में वैक्सीन लगवाते हुए कुछ पुरुषों ने इसके पुख्ता प्रमाण भी दे दिए हैं. वैसे भी एक डायलॉग के चक्कर में कोई कब तक फंसा रह सकता है? सच तो एक-न-एक दिन बाहर आना ही था. 

सच कहूँ, तो सदियों से ये कहावत पुरुषों के गले की हड्डी बन चुकी है. और इसे संभालते-संभालते बेचारों का जबड़ा भी दर्द करने लग गया है. अब तक तो इंजेक्शन के दर्द को पुरुष, अंदर ही अंदर खींच लिया करता था. या फिर कसकर मुट्ठी बाँध, चेहरे पर  अप्राकृतिक मुस्कान मेंटेन करे रहता था. लेकिन अब उसके सब्र का बाँध टूट चुका है और वह खुलकर खुली हवा में चीख पा रहा है.

खैर! अब जब बात छिड़ ही गई है तो मैं अपने देश के वैज्ञानिकों से ये अनुरोध करुँगी कि वे एक ऐसी वैक्सीन बनाएं जिससे वैक्सिनेशन के समय होने वाला दर्द महसूस ही न हो. वैसे सुनने में तो आया है कि अमेरिका वालों ने डाक टिकट के आकार का कोई इंजेक्शन बनाया है जिसे चिपकाकर दवाई भीतर पहुँचा दी जाती है. कोई कह रहा कि नेज़ल ड्रॉप्स टाइप वैक्सीन आ रही है. मतलब कोरोना वायरस को मेन गेट पर ही कुचल दो. अब अगर ये सच है तो आधा हिन्दुस्तान तो इसी बात पर उत्सव मना मिठाई  बाँट आएगा. पर हमारी जेनरेशन वाले लोग इस बात पर विश्वास करें तो करें कैसे? क्योंकि हमें जिस उपकरण से बचपन में वैक्सीन दी गई थी, नाम तो उसका भी इंजेक्शन ही था पर क़सम से उसका लुक और फील स्क्रू ड्राईवर से रत्ती भर भी कम न था. इस बात के गवाह बस हम ही नहीं बल्कि हमारे हाथों पर छपे हुए टीके के वो अठन्नी जैसे निशान भी हैं. आप चाहो तो अपने-अपने घरों के फ़ोर्टी प्लस सदस्यों के हाथ देख, अपनी निजी आँखों से इसकी पुष्टि कर लो.

अच्छा, इंजेक्शन लगवाते समय बच्चों को बुक्का फाड़कर रोते हुए सबने देखा है. ऐसे बच्चे भी इस दुनिया में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जो हॉस्पिटल के दरवाज़े पर ही पछाड़ें खाकर फ़ैल जाते हैं. कुछ डॉक्टर को देखते ही मूर्छित हो जाते हैं तथा कुछ विशिष्ट प्रकार के बच्चे दुःख भरा नागिन डांस करते हुए भी पाए जाते रहे हैं. ऐसे पावन अवसरों पर हम, 'अरे! बच्चा है. थोड़ा डर गया है' कहकर टाल देते हैं. लेकिन जब बड़े और समझदार टाइप लोग भी सुई देखकर टसुए बहा, बिलखने लगें तो भई, फिर तो हम जैसे परोपकारी जीवों का इस पर विस्तार से चर्चा करना बनता है.

तो साब, इंजेक्शन की सुई का डर ही ऐसा है कि इसके आगे अच्छे-अच्छों के पसीने छूटने लगते हैं. उनके हॄदय की गति पाँच सौ किलोमीटर प्रति मिनट रफ़्तार से बढ़ जाती है. आँखों की पुतलियाँ चौड़ी होने लगती हैं या मुँह के साथ ही उन्हें कस के भींच लिया जाता है. सुई देखते ही, मस्तिष्क की सारी माँसपेशियाँ उद्वेलित हो, सभी अंगों तक यह दुखद समाचार पहुंचा आती हैं कि अब आप आत्मघाती दस्ते द्वारा चारों तरफ से घेर लिये गए हो. 

अब चाहे आप पुलिस वाले हों, आपकी अपनी बटालियन हो, कद्दावर नेता हों या आप फलाने ढिमकाने राजघराने के पोलो खेलते इकलौते वंशज हों. अजी, इंजेक्शन देखते ही बड़े से बड़े सूरमा भी ढेर हो जाते हैं. सॉरी टू इन्फॉर्म यू, पर वे इंसान जिनकी सुपर मैन टाइप इमेज आपकी आँखों में बसी थी, उन्हें मारे भय के नर्स के सामने गिड़गिड़ाते या आत्मरक्षा हेतु उसे तात्कालिक तौर पर भींचते भी देखा गया है. कुल मिलाकर सब हँसते-हँसते गोली खाने को तैयार हैं, चाहे दवाई वाली हो या बंदूक वाली. लेकिन इंजेक्शन देखते ही इनकी हवाइयां उड़ने लगती हैं और प्रथम दृष्टि में ही वह मासूम, जीवन रक्षक इन्हें तोप के इक्कीस गोलों के एक साथ दागने से भी अधिक मारक एवं भयंकर लगने लगता है. कारण साफ़ है कि गोली तो सीधे-सीधे जान ही ले लेती है न! उसमें सोचने-समझने की गुंजाइश ही कहाँ होती है! पर जानलेवा दर्द तो सुई ही देती है साहिबान! अब आप खींसे निपोरते हुए ये जरूर कहेंगे क़ि हमें तो दरद होता ही नहीं! तो हमारा जवाब बड़ा क्लियर है क़ि ज़नाब! डरते तो सब हैं पर भरी सभा में इसे स्वीकारता कोई-कोई ही है. 

अब इसमें मज़ाक उड़ाने जैसी कोई बात नहीं है. दर्द के बाद इंसान की सारी प्रतिक्रियाएं स्वाभाविक ही होती हैं. फिर चाहे वो चीखना-चिल्लाना हो या हाथ-पैर फेंकना. लेकिन हम केवल एक जरुरी उपाय बता देते हैं, जिसे अपनाने के बाद रोना थोड़ा कम आएगा या शायद आए ही नहीं! बस, आम पब्लिक इस बात को गाँठ बाँध ले कि जब नर्स आपको इंजेक्शन लगाने आए तो आप उसको घूरें नहीं. (न नर्स को, न इंजेक्शन को). कुछ लोग इंजेक्शन को इस तरह घूरते हैं मानो वो सुतली बम हो कि अब फटा, तब फटा. आप सुई की नोक से ध्यान हटा कर इस बात पर गौर फरमाइए कि जिस वायरस ने पूरी दुनिया में त्राहिमाम मचा रखा है, आपके शरीर में उसे नष्ट करने के हथियार की पहली खेप पहुँच चुकी है. यह भी सोचिए कि जब आप सोशल मीडिया पर ये तस्वीर पोस्ट करेंगे तो कितनी बधाई और नमन इकट्ठा होंगे. देशप्रेमी कहलाए जायेंगे, सो अलग!

अच्छा सोचें और उत्तम फल पाएं. आज नहीं लग सकी हो तो क्या, कल वैक्सीन लगवाएं.

- प्रीति अज्ञात 

आप इसे यहाँ भी पढ़ सकते हैं-

https://www.ichowk.in/humour/coronavirus-vaccination-in-india-questions-is-covid-19-vaccine-injection-painful/story/1/19466.html

#CoronavirusVaccine #injection #मर्द्कोदर्दहोताहै #humour #iChowk #PreetiAgyaat

फोटो क्रेडिट: गूगल 

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

#ProposeDay सुनो, मुझे तुमसे मोहब्बत है.


'मेरा दिल भी कितना पागल है/ ये प्यार तो तुमसे करता है

पर सामने जब तुम आते हो/ कुछ भी कहने से डरता है'

'साजन' फ़िल्म का ये गीत यूँ ही अमर नहीं हो गया है. यूँ ही नहीं इसे सुनकर आपकी धड़कनें बढ़ने लगती हैं और आप एक अलग ही दुनिया में चले जाते हो. ये धकधक तो इसलिए होती है क्योंकि आप इससे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं. वो किसी को प्यार करने और न कह पाने का जो मलाल है न, असल में आप उससे अब तक उबर ही नहीं पाए हैं. और इस गीत को सुनते ही प्यार का यही मीठा-मीठा दर्द झिलमिलाने लगता है. प्रेम में डूबे प्यारे लोगों! आज Propose Day पर अच्छा मौक़ा है, अपने महबूब या दिलरुबा तक अपने दिल का हाल पहुंचाने का. वरना देख लीजिए, कहीं पहले आप, पहले आप के चक्कर में ये दिन 'मलाल दिवस' न बनकर रह जाए. 

मैं इस बात की प्रतीक्षा कभी न करूँ कि मेरा प्रेमी ही मुझे गुलाब दे या प्रेम का इज़हार वही पहले करे. ये काम तो मैं भी कर सकती हूँ. 'प्रेम' कोई प्रमेय थोड़े ही है कि उन्हीं चरणों से होता हुआ 'इति सिद्धम्' तक पहुंचेगा, जो श्री पायथागौरस महाराज जी समझा गए हैं. अजी, प्रेम का कोई प्रोटोकॉल नहीं होता. जब कोई अच्छा लगे तो उसे सीधे-सीधे बिना किसी लाग-लपेट के कह ही देना चाहिए कि 'यार, तुम बिन नहीं जिया जाता!' हर हाल में, उम्र भर के अफ़सोस से बेहतर, कह देना ही है.   

कोई आपको प्यार करता है, आपके साथ जीने के सपने देख रहा है. इससे ज्यादा प्यारी बात भी कोई हो सकती है क्या? ख़ुद से मोहब्बत होने लगती है, जी. मुस्कान डेढ़ इंच और चौड़ जाती है. मन, महबूब के सपने देखने लगता है और हर प्रेम गीत में वही तस्वीर नज़र आती है. कितनी ही बार दर्पण के सामने, जुल्फों को सँवारते हुए ख़ुद पर इठला लिया जाता है. पूरी क़ायनात तक ये समाचार पहुंचाने का जी करता है कि 'सुनो, उसे मुझसे मोहब्बत है'.

फिल्मों ने भले ही आपके दिमाग़ में ये भर कंफ्यूज कर दिया हो कि हीरो ही पहले Propose करता है  पर असल ज़िंदगी में इस फ़ॉर्मूला के चलते, कई रिश्ते मन के भीतर ही दबे रह जाते हैं. किसी के हिस्से के गुलाब की खुश्बू, बस नोटबुक के निर्जीव पन्ने को महकाती रह जाती है. तो कोई उन ख़तों के उत्तर न दे पाने के मलाल में डूब जाता है जो तमाम मुश्किलों से जूझते हुए उसकी साईकल की पिछली सीट पर अटके मिले थे. धीरे-धीरे गुजरता समय न तो इस खुश्बू को बाँध पाता है और न ही पंखुड़ियों का नर्म अहसास ही बचा पाता है. हाँ, इन सूखी हुई पंखुड़ियों को थामे हुए मन के किसी कोने में अफ़सोस उपजता है और एक आवाज़ भी आती है कि काश! हमने उसे कह दिया होता!   

कितनी अजीब सी बात है न कि प्रेम में डूबी लड़की की सारी सहेलियों को पता होता है कि उसके सपनों का राजकुमार कौन है. लड़के के दोस्त भी इस बात को जानते हैं कि कौन उसकी भाभी बनने वाली है लेकिन हाय रे संकोच और शर्म के मारे, बस उन दोनों को ही एक-दूसरे के दिल का हाल नहीं पता होता, जिनका इसे जानने का पहला हक़ बनता है. प्रिय के सामने आते ही धड़कनें बढ़ जाती हैं, ज़ुबान अटकने लगती है. सौ बातें कर ली जाती हैं, बस इक इश्क़ के सिवाय.

ये बात जरुर है कि लड़कियों की प्रवृत्ति ऐसी रहती आई है कि वे यहाँ भी लड़के की प्रतीक्षा करती हैं! साथ ही ये अपेक्षा भी रहती है कि वही पहल करेगा. मानती हूँ, अच्छा लगता है पर कभी उसे भी तो अच्छा लगाओ. किसी का भी हो, 'दिल' एक सी माँस पेशियों से ही बना है. तुम प्रेम में पहल कर सकती हो. लड़के के दिल का बोझ कुछ तो कम करो, उसे समझो और अपना 'हाल ए दिल' कह ही डालो उससे. 

बड़े से बड़े शूरवीर भी 'इज़हार ए मोहब्बत' के मामले में छुईमुई बन जाते हैं. यहाँ उनकी बात नहीं हो रही जो 'एक गई, दूसरी आएगी' के सिद्धांत पर चलकर प्रेम की झूठी क़समें खाने का ढोंग रचते हैं. बल्कि ये उन सच्चे प्रेमियों के लिए है जो एक-दूसरे की परवाह करते हैं. जो इस डर से कह ही नहीं पाते कि कहीं लड़के/लड़की को बुरा लग गया तो दोस्ती न टूट जाए! वे रिजेक्शन से कहीं ज्यादा एक रिश्ते को खोने से डरते हैं. लेकिन यक़ीन मानिए जहाँ दोस्ती सच्ची होती है, वहां लड़का हो या लड़की, उन्हें डरे बिना अपने दिल की बात कह ही देनी चाहिए. हो सकता है कि दूसरा पक्ष भी यही सोच रहा हो और न भी सोचे, तब भी दिल से जुड़े रिश्ते खोते नहीं, बल्कि ऐसी अभिव्यक्ति से तो और गहरा ही जाते हैं. 

पहले के समय में कबूतर और चिट्ठियों का दौर बेहद ख़ूबसूरत और नाज़ुक था. गलत पते पर पहुँचने के सौ ख़तरे भी थे उसमें. लेकिन इंटरनेट युग ने बहुत कुछ आसान कर दिया है. अब एक क्लिक पर इज़हार किया जा सकता है. यहाँ पहली टिक का मतलब आपके दिल का हाल पते पर पहुंचना है, दूसरा टिक होते ही लिफ़ाफ़ा टेबल पर है  और इन दोनों के नीले रंग में बदलते ही आप उलटी गिनती गिनना शुरू कर दीजिए. कुछ ही पलों में आपके भाग्य का फ़ैसला होने वाला है. यदि इतना भी सब्र नहीं तो सीधे फ़ोन उठाइए और वीडियो कॉल कर लीजिए. यूँ भी यह सबसे बेहतर तरीक़ा है. वरना बाद में यह अफ़सोस भी रह सकता है कि आपने अपने जीवन के सबसे ख़ूबसूरत पल को तस्वीर बनते नहीं देख पाया! मैं तो ये भी कहूँगी कि इन सबके चक्करों में भी क्यों पड़ना! उसके पास जाइए और कोमल हाथों को थाम आज Propose कर ही दीजिए उसे. जी लीजिये इस अहसास को और सुनिए इन धडकनों को. 💓
- प्रीति 'अज्ञात'  
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रविवार, 7 फ़रवरी 2021

#Valentine week Rose day: गुलाब के साथ बात प्रेम में चुभने वाले कांटों की

आज Rose Day है, वैलेंटाइन वीक का पहला दिन. कई लोग हैं जो आज से प्रेम की जड़ों में मट्ठा डालने बैठ गए होंगे. दुनिया की रीत यही है कि किसी को चैन से जीने नहीं देना है और प्रेमी तो हरगिज़ ही बर्दाश्त नहीं होते. आलम यह है कि प्रेम को मिटाने की कोशिश में समाज अपनों को मिटाने से भी नहीं चूकता. हवाला, वही सदियों पुरानी तथाकथित इज़्ज़त का दे दिया जाता है. न जाने ये इज्ज़त का कौन सा टाइप है जो प्रेम का नाम सुनते ही डूबने, बिखरने और बिलबिलाने लगता है! खैर! कुल मिलाकर दुनिया तो कांटे ही चुभोने बैठी है.

पर ज़नाब! गुलाब को खिलने से भला कौन रोक पाया है. मोहब्बत को इस फ़ूल से जोड़ने का कारण यूँ ही नहीं तय कर लिया होगा! वो इश्क़ का मारा कोई पगला प्रेमी ही होगा या कोई दीवानी प्रेमिका ही रही होगी. इन दोनों ने जमाने भर से लड़, तमाम शारीरिक और मानसिक पीड़ाओं से गुजरते हुए ही एक-दूसरे को पाया होगा. उन्हें पता है प्रेम की शुरुआत जितनी नरम, मुलायम अहसासों से भरी होती है, उसकी राहों पर चलना दिनों-दिन उतना ही दुष्कर होता जाता है. ये प्रेम ही है जो तमाम दुश्वारियों को रौंदते हुए अपने साथी का हाथ थामे, आगे चलने का हौसला देता है. कँटीली डालियों के बीच पनपता ये कोमल अहसास सुर्ख़ गुलाब सी महकती सुगंध ही देता है और अपने कोमल, मखमली रूप को भी बचाए रखता है. काँटों की हिम्मत नहीं होती जो गुलाब को छू भी सकें.

सोचिए, कितना भरोसा होता है प्रेमियों को एक-दूसरे पर, जो इसकी ख़ातिर जमाने भर की दुश्मनी भी मोल ले लिया करते हैं. सोचिए, कैसे होते हैं वो लोग! जो प्रेम की राह में काँटे बिछा दिया करते हैं. प्रेमियों को ताने देते हैं और अपने मन का सारा ज़हर उनके जीवन में भर देते हैं. यह भी सोचिये, कि कैसे होते हैं वे प्रेमी जो एक-दूसरे पर अथाह विश्वास करते हैं. फिर विचार कीजिए कि प्रेम से जीना अच्छा है या दिल में किसी के प्रति नफ़रत भरकर? 

अरे! चैन से जीने दीजिए प्रेमियों को. सच्चे प्रेमी चाहे जो करें पर किसी का नुक़सान कभी नहीं कर सकते! इनके पास वक़्त ही नहीं होता किसी की बुराई का. किसी को दर्द देने की तो ये सोच भी नहीं सकते. ये तो स्वयं ही एक-दूसरे का मरहम बनते हैं. इनसे चिढ़ने या ईर्ष्या करने की बजाय कभी किसी रोज इन्हें ध्यान से देखिए, इनकी आँखों में झांकिए, इनके चेहरे को पढ़िए. हर जगह बस एक ही नाम दिखाई देगा, मोहब्बत, मोहब्बत, मोहब्बत!

आप 'वैलेंटाइन-वीक' से चिढ़ सकते हैं, इसे अपनी संस्कृति का विरोधी भी कह सकते हैं. लेकिन जरा ग़ौर से देखिए और समझिए कि कोई भी संस्कृति 'प्रेम' की विरोधी हो ही नहीं सकती. एक सप्ताह ही क्यों, हमें तो 'वैलेंटाइन ईयर' मनाना चाहिए. नफ़रतों, लड़ाई-झगडे, मार-काट, ईर्ष्या और मालिक बने रहने की होड़ से भरी इस दुनिया में मोहब्बत की कमी सबसे ज्यादा है. किसी त्योहार की तरह जिया जाना चाहिए मोहब्बत को या यूं कहूं कि मोहब्बत में हर दिन त्योहार सरीखा स्वतः ही हो जाता है.

- प्रीति अज्ञात

https://www.ichowk.in/society/valentine-week-2021-and-celebrations-of-love-but-why-people-hate-lovers/story/1/19336.html

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