सिद्धार्थ शुक्ला के निधन की खबर पर सहसा विश्वास नहीं होता! एक प्रतिभाशाली, उदीयमान कलाकार जिसने अभी सफ़लता के पायदान पर आगे बढ़ना शुरू ही किया था कि अचानक ही उसके जीवन का अस्त हो गया. पूरी तरह से चुस्त-दुरुस्त दिखने वाले, व्यायाम को अपनी नियमित जीवन शैली का हिस्सा बनाने वाले सफ़ल अभिनेता का यूँ असमय चले जाना बेहद दुखद है. उनके परिवार का सोच कलेजा भर आता है. उस माँ पर क्या बीती होगी जिसने एक बेहद ज़हीन बेटा खो दिया, उन बहिनों का क्या हाल हुआ होगा जिनका प्यारा भाई अगली राखी पर अब साथ न होगा! कल तक जो हमारे साथ था, वो आज से नहीं है; जीवन की क्षणभंगुरता का यह रूप बुरी तरह से भयभीत कर देता है.
मैं टीवी धारावाहिक नहीं देखती. जब संभव हो तो रियलिटी शोज़ या टॉक शोज़ जरूर देख लेती हूँ. सिद्धार्थ को मैंने बिग बॉस के माध्यम से ही जाना. यद्यपि उस समय तक मैंने यह शो देखना छोड़ दिया था. लेकिन जब इसकी खबरें बहुत आने लगीं तो पुनः उत्सुकता हुई. इस उत्सुकता का नाम था,शहनाज़. सिद्धार्थ के प्रेम में दीवानी हुई एक चुलबुली लड़की. सब इस लड़की के बारे में बहुत कुछ कहते लेकिन मेरा उस पर यक़ीन सदा ही बना रहता. वो चाहे किसी से भी बात करे, कुछ भी कहे, लड़े-झगड़े पर अपने सिड के प्रेम में दीवानी थी वो. उसकी आँखों में, उसके चेहरे पर, उसके व्यवहार में, उसके गुस्से में हर जगह उसका सिड था.
कभी जब सिद्धार्थ उससे रूठ जाता या उसकी बातों को अहमियत नहीं देता तो मुझे बहुत खराब लगता था. मैं सोचती कि माना शहनाज़ की हरकतें बचकानी हैं पर तू उसका प्यार तो देख! माना वो थोड़ी अल्हड़, नादान है पर उसकी दीवानगी तो देख! वो जो भी कर रही है, सब तेरी ही अटेंशन पाने को! उस जैसी प्यार करने वाली नसीब वालों को ही मिलती है. यक़ीनन सिड भी इस बात को समझता था और शहनाज़ की तरफ़ बेपरवाही दिखाते हुए भी उसकी बहुत परवाह करता था. शहनाज़ उसके पीछे-पीछे घूमती और ये उसकी किसी बात से रूठा होता तो लाख मनाने पर भी न मानता. वो मुँह फुलाकर बैठ जाती तो सामने इग्नोर करता. लेकिन दूर से ही उसे प्यार भरी नज़रों से निहारना न भूलता! उसकी भावनाओं की कद्र करता.
जब ये दोनों साथ होते तो जैसे पूरा घर मुस्काता. बिग बॉस के ज़र्रे-ज़र्रे में मोहब्बत गूँजती. सारा घर खुश रहता. कभी-कभी सिड, शहनाज़ को उसकी गलतियों के बारे में समझाता और वो मान भी जाती. हाँ, तुनककर ऐसा जरूर कहती कि 'तू ये बात तब भी तो प्यार से बोल सकता था न!' सिड कभी मुस्कुराता, कभी हँसता और कभी उसे देखते हुए शून्य में खो जाता. यूँ लगता, जैसे गढ़ रहा है इस रिश्ते को. उसे भावनाओं का सम्मान करना आता था. रिश्तों की अहमियत का खूब अहसास था उसे. इन दोनों के बीच का रिश्ता दोस्ती था या प्यार, ये जानने में मुझे कभी दिलचस्पी नहीं रही. लेकिन इतना जरूर जानती थी कि यह बेहद खूबसूरत दिल का रिश्ता है. ये रिश्ते नाम के मोहताज़ नहीं होते. ऊपर से बनकर आते हैं. सदा साथ रहने को. आज ये भरम टूट गया है.
सिद्धार्थ शुक्ला का जाना उनके परिवार के लिए कितना असहनीय होगा, ये हम जानते हैं. लेकिन आज एक खिलखिलाती लड़की के चेहरे से उसकी मुस्कान छीन ली गई है. उसको मनाने वाला एक साथी चला गया है. उसकी बातों पर हँसने-छेड़ने और उसे दुलारने वाला दोस्त चला गया. शहनाज़ के दिल का शहजादा चला गया. सिडनाज़ का सिड हमेशा-हमेशा को चला गया. लड़की, इस दुख को सहन करने की हिम्मत रखना तुम!
- प्रीति अज्ञात
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हृदयस्पर्शी सृजन
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