इस बात पर सभी एकमत होंगें कि कोरोना वर्ष 2020 को जितना भी कोसा जाए, कम है! यह काफ़ी हद तक सच भी है. लेकिन यदि गंभीरता से सोचा जाए तो इस वर्ष ने हमें अपने जीवन को समझने और उसके विवेचन-मनन का अवसर दिया है. हमें यह भी सिखाया कि जीने के लिए कितनी कम वस्तुओं की आवश्यकता होती है और बाज़ार दिखावा बेचता है. हमें यह भी पाठ मिला कि स्वच्छता कितनी आवश्यक है और यह न केवल कोरोना बल्कि कई अन्य बीमारियों से भी हमारी रक्षा करती है. इस कठिन समय में हमें प्रकृति के प्र्ति अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ और उन लोगों के प्रति भी मन कृतज्ञता से भर गया जिन्होंने हर हाल में हमारा साथ दिया. असल में तो इस वर्ष ने हमें, हमारे अपनों की पहचान कराई है और हमें मोहब्बत से जीना सिखाया है.
यहाँ आपको कुछ जन की और कुछ मन की बातें मिलेंगीं। सबकी मुस्कान बनी रहे और हम किसी भी प्रकार की वैमनस्यता से दूर रह, एक स्वस्थ, सकारात्मक समाज के निर्माण में सहायक हों। बस इतना सा ख्वाब है!
गुरुवार, 31 दिसंबर 2020
बुरा होते हुए भी बहुत कुछ सिखा गया, 2020
झूठ कम बोला गया
हर बात पर या बेबात ही झूठ बोल देना सच्चे भारतीयों की निशानी है. लेकिन 2020 के लॉकडाउन ने मनुष्यों को सच्चाई का पुतला बनाकर छोड़ा. पहले तो फ़ोन पर उधारी वापिस माँगने वालों को बच्चे द्वारा कहलवा दिया जाता था कि "पापा घर पर नहीं है". अब कैसे कहें क्योंकि अगर घर पर नहीं तो क्या कोविड वार्ड में हैं?
झूठ, बच्चे अपने लेवल पर स्कूल में प्रयोग करते आ रहे थे. जब टीचर होम वर्क न करने का कारण पूछती थी तो दर्दनाक मुँह बनाकर कह दिया करते थे, 'मेम, मेरे पेट में बहुत जोरों का दर्द हो रहा था". अब डर ये है कि जैसे ही बोला और पीछे से मम्मी ने आकर तमाचा जड़ा कि "क्यों रे! कल तो पिज़्ज़ा खाने के लिए जमीन पर पछाड़ें मार-मारकर गिरे जा रहा था".
प्री-लॉकडाउन काल में पुरुष अपने बॉस को अलग ही दुखभरी कहानी से भावुक कर देते कि कल कैसे पत्नी मरते-मरते बची! और इस कारण से फाइल अधूरी रह गई! अब तो इधर कहा और उधर तलाक़ हुआ कि "हाँ, तुम तो चाहते ही यही हो कि मैं मर जाऊँ!"
तो सच का बोलबाला बहुत रहा हालाँकि ऑनलाइन क्लास ने बच्चों के दिमाग में नए आइडियाज़ भी भर दिए हैं और वे "नेट स्लो है" कहकर कैमरा या माइक ऑफ कर देते हैं.
दिखावे पर लगी रोक
शादी-ब्याह में साज-सज्जा के नाम पर
ही लाखों रूपये खर्च दिए जाते थे. उपहार के नाम पर लेन देन भी हमेशा ही चलता आया है. कोरोना के कारण अब इन आयोजनों में उपस्थिति एक निश्चित संख्या तक ही सीमित कर दी गई है. एक तरफ तो इससे लोग खुश हैं तो वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस दुःख में अधमरे पड़े हैं कि "हमने तो वर्मा जी की बहू की मुँह दिखाई पर सोने की अंगूठी भेंट की थी और हमें बस डिजिटल बधाई वाला बुक़े मिला".
वे किशोर जिन्हें माँ-बाप से छुप कर सिगरेट सुलगा अपने फेफड़ों को जलाने का शौक़ था, जो नशे में धुत हो अपने ग़म गलत किया करते थे, कभी- कभी सड़क पर गाड़ी को नागिन की तरह लहरा भी दिया करते थे; कोरोना माई ने उन्हें भी अपनी गिरफ़्त में लेकर उनके सारे स्वप्न ध्वस्त कर दिए. अब उनके पास ग़म को सही, गलत करने के लिए गरम पानी है, काढ़ा है, दिव्य पेय है. खून के घूँट पी-पीकर इन्हें गटकने की पीड़ा भी बहुत है जी!
पुलिस के डंडे के डर से पान-गुटका खाकर, मॉडर्न आर्ट बनाने वाले कलाकारों की संख्या में भी भारी कमी हुई है.
पुरुष गृहकार्य में दक्ष होते गए
कई स्त्रियों को इस बात का बहुत दरद रहा करता था कि उनके मरद को पूजनीया सासू माँ ने कुछ न सिखाया! लॉकडाउन ने जैसे उनकी मनचाही मुराद पूरी कर दी. इस स्वर्णिम अवसर को भुनाने का इससे बेहतर समय और क्या हो सकता था. हेल्पर्स के न आने के दुःख में पतियों को मजबूरन शामिल होना पड़ा. उसके बाद उन्हें सब्जी काटने, वाशिंग मशीन लगाने, कपड़े आयरन इत्यादि का अनचाहा त्रैमासिक कोर्स भी करना पड़ा. उन्हें ढंग से हाथ-पैर धोना भी आ गया. कुछ साहसी लोग कुकिंग भी सीख गए और निपुणता में पत्नी को टक्कर देने लगे. जो महान थे और अपने उसूलों के प्रति कट्टर भी, उन्हें यह लॉकडाउन भी प्रभावित न कर सका! आपके चरणों में विशेष रूप से नमन पहुंचे!
स्त्रियों को मेकअप के बिना रहना आया
जब आधे से अधिक फेशियल एरिया पर मास्क की तिरपाल चढ़ी हो तो पलस्तर करने को बचा क्या! न लिपस्टिक, न क्रीम, न पाउडर. सबका साथ छूट गया. उस पर घर के कामों में जुटी स्त्रियाँ, न तो कहीं आने जाने का सुख ही भोग सकीं और न ही उन्हें नए गहने और साड़ियों को दिखा पाने का सुअवसर ही प्राप्त हुआ. अब क्या कहें! घर में पति की लगातार उपस्थिति से "और क्या बताऊँ, बहिन!" कहकर उसकी बुराई करने के सुख से भी वंचित रहना पड़ा उन्हें.
स्वास्थ्य बेहतर हुआ
अब लोगों को अपना ख्याल रखना आ गया है और वे अपने स्वास्थ्य के प्रति पहले से कहीं अधिक सचेत हो गये हैं. अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए वे तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं. योग के प्रति उनकी रूचि बढ़ी है. चूँकि बाहर का खाना-पीना भी लम्बे समय तक बंद रहा तो घर का भोजन खाने से उनके लगातार बढ़ते वजन पर भी रोक लगी है.
कुल मिलाकर 2020 के कठिन समय ने हमें संघर्ष करना और उससे जूझते हुए आगे बढ़ना सिखाया है. साथ ही हर विपत्ति से निबटने के लिए मानसिक रूप से तैयार भी किया. दुखद पक्ष यह रहा कि इसने कई घरों से उनके अपने छीन लिए. रोज कमाकर, चूल्हा जलाने वालों का जीवन नष्ट कर दिया. देश की अर्थ-व्यवस्था तहस-नहस कर दी. इसके चलते लोग अपने घरों तक न पहुँच सके. लाखों को अपनी नौकरी, व्यवसाय से हाथ धोना पड़ा और भीषण मानसिक तनाव से भी गुजरना पड़ा.
जिन्होंने अपनों को खो दिया उसकी भरपाई तो उम्र भर नहीं हो सकती लेकिन इतनी उम्मीद जरुर रख सकते हैं कि बाकी सब धीरे-धीरे पटरी पर लौट ही आएगा! कहते हैं न कि हर बात के दो पहलू होते हैं तो क्यों न इसके सकारात्मक पहलू को सोच, 2021 में प्रसन्न मन से प्रवेश किया जाए.
नववर्ष की शुभकामनाएँ!
-प्रीति 'अज्ञात'
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सटीक प्रस्तुति
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