शनिवार, 10 जुलाई 2021

जब चोर की चिट्ठी ने हमें भावुक कर दिया!

कुछ खबरें ऐसी होती हैं जिन्हें जानने के बाद हम जैसे होमो सेपिएन्स बेहद कन्फ्यूज़ हो जाते हैं. मतलब रत्ती भर भी समझ नहीं आता कि भावुक होकर प्राण तज दें या केवल सिर धुनकर ही इस दिल की बेचैनी को क़रार दें!. 

बताइए, ये भी कोई बात हुई कि एक बंदे ने चोरी की और उसपे सॉरी नोट भी छोड़ गया! कि "मैं मजबूर हूँ. जैसे ही पैसे जमा होंगे, सूद समेत तुम्हारे पास फेंक जाऊँगा. मैं अच्छा इंसान हूँ".  हालांकि इसमें 'फेंकना' शब्द पर मुझे घोर आपत्ति है, थोड़ी शालीन भाषा का प्रयोग किया जा सकता था. पर कोई न! जल्दी में बेचारे के मुँह से निकल गई होगी. वरना उफ़्स! इतना क्यूट और मासूम चोर, न भूतो न भविष्यति! 

मुझे तो लग रहा कि इसका पत्र पढ़कर पीड़ित पक्ष भी एक-दूसरे के गले लग बिलख-बिलख रोया होगा. शायद आँखों ही आँखों में परस्पर बधाई का आदान-प्रदान भी कर लिया हो कि हम कितने भाग्यशाली हैं जो एक चरित्रवान, संवेदनशील और ईमानदार चोर ने हमारा घर चुना. घर की एक-एक ईंट अपने भाग्य को सराह रही होगी कि कैसे एक देवदूत ने उन्हें स्पर्श कर दैवीय बना दिया. 

अच्छा! ये भी इतिहास में पहली बार ही दर्ज़ समझिए कि जब चोर ने अपने ही पर्सनल हाथों से अपना चरित्र प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया हो. सोचिए, चोरी के उन नाजुक क्षणों में जहाँ एक-एक पल कीमती होता है. साँसों की मद्धम आवाज़ भी गुस्ताख महसूस होती है, वहाँ इस मासूम ने चिट्ठी लिखते समय अपनी जान की तनिक भी परवाह न की. हे युवक! तेरी इस वीरता की कहानी पाठ्यपुस्तक का हिस्सा बनेगी. 
सिर्फ़ इतना ही नहीं मैं तो यह सोचकर भी परेशान हूँ कि हिन्दी साहित्य इस बाँके जवान के निश्छल कृत्य से कैसे उऋण हो सकेगा! आखिर उसने रुपये उठाने के साथ-साथ, लुप्त होती पत्र-लेखन विधा को पुनर्जीवित करने का बीड़ा भी तो उठाया है. 

ओ मोरे खुदा! ओ माय भगवन! मतलब इन जैसे लोग हम डिजिटल कार्ड वालों को तो डायरेक्ट गिल्ट में ही मार के चले गए! क्या बताएं! एक जमाने में हम भी दो-दो किलोमीटर लंबी चिट्ठियां लिखा करते थे. अब लज्जा से मुंडी जमीन में धंसी जा रही है. तरन्नुम में सोचती हूँ "हम कितने मासूम थे, क्या से क्या हो गए देखते-देखते!" 
खैर! कलेजे पर पत्थर रख हमने इन मजबूर महाशय को कोसने की बजाय इनकी प्रशंसा का मन बना ही लिया था. अभी प्रशस्ति पत्र का प्रारूप दिमाग की अटरिया में उमड़-घुमड़ ही रहा था कि हाय रे! हमारे कोमल दिल पर एक और आकस्मिक भारी जुलुम हो गया. अब इसे भाग्य की विडंबना कहें या अपने अथाह पनौतीपन की जानी-पहचानी कंटिन्यूटी. पता चला, मामला भिंड (म. प्र.) का है. 

अब साब! लेट मी क्लियर माय ऑरिजिनल मन की बात, कि मामला जब जन्मभूमि (माना कि हम राम जी नहीं, पर कहीं तो पैदा हुए हैं न!) से जुड़ा हो तो संवेदनशीलता अलग ही लेवल पर भभककर बाहर आने को दौड़ती है. आपने एकदम ठीक समझा, भिंडी ऋषि की यह पावन भूमि इस नाचीज़ की अवतरण स्थली भी है. भई, यहाँ का अपना एक समृद्ध इतिहास है. गौरी सरोवर है, किला है. ग़ज़ब की खूबसूरती है, गुलाब की पत्तियों से महकते लिपटे पेड़े तो दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं ही. यहाँ की प्रतिभाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में खूब नाम कमाकर शहर को गौरवान्वित किया है. एक तो आपके सामने अभी है ही. खी खी खी. 

हमें पता है आप मन में क्या सोच रहे हैं! तो सुनिए, ये जो थोड़ी इमेज खराब हुई भी है वो इस चक्कर में कि यहाँ नेक डाकू-वाकू हो गए थे कभी. जैसा कि हमने अभी ही अपने भावपूर्ण उद्बोधन में कहा कि जगह तो लल्लन टॉप है. उसी को विस्तार देते हुए बता रहे हैं कि इधर इटावा वाली साइड में जो बीहड़ है न, वो पहले विला टाइप फ़ील देता था. तो कुछेक दस्यु सम्राट और साम्राज्ञी भी इसी चक्कर में यहाँ सेटल हो गए थे. मल्लब उन की और उनकी बंदूक की पदचाप यहाँ की फिज़ाओं में बेतहाशा गूँजी हैं. लेकिन इस भ्रम में न रहिएगा कि इसके लिए केवल भिंड ही जिम्मेदार है. न, बेटा न! ऐसी मिस्टेक गलती से भी मत करना!
आपने लक्ष्मी-प्यारे, शंकर-जयकिशन, नदीम-श्रवण, सलीम सुलेमान, विशाल-शेखर आदि की संगीत जोड़ी का नाम तो सुना ही होगा.  बस, ठीक वैसे ही हमाई जन्मस्थली की भी जोड़ी याने द्वय है जी. लोग जब डाकुओं का जिक्र करते हैं न, तो बड़े सम्मानपूर्वक भिंड-मुरैना एक साथ जपा जाता है. 

वैसे विषय से इतर एक बात बताएं आपको? पर पिलीज़ पहले प्रॉमिस कीजिए कि आप इसको घमंड समझ, हमको सेलिब्रिटी समझने की भूल कतई न करेंगे. वो बात ये है कि हमको भी दस्यु सुंदरी फूलन देवी और श्री मलखान सिंह जी के साक्षात दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है. पर वो कहानी फिर कभी! अभी जरा चोरी की इस प्रेरणास्पद घटना पर ठीक से पिरकास डाल लें!

तो आगे का किस्सा ये है कि आदरणीय चौर्य महोदय ने अपनी वीरगाथा सुनाते हुए एक अन्य महत्वपूर्ण जानकारी भी दी. सूत्रों से बात करते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने 'धूम-3' के नायक की तरह 'अच्छा काम' किया है. उनके लिखे पत्र में भी धूम-3 और उनके अच्छे इंसान होने की पुष्टि की गई है. लेकिन अंदर की खबर यह है कि पुलिस कुछ पुष्टि स्वयं ही करने की इच्छुक पाई गई है. हो सकता है कि भिंड पुलिस ने ही ससम्मान इस नवयुवक के माथे पर लड्डू उगाके उस को सूद समेत घर लौटाने का मन बना लिया हो. 

जो भी हो, देश भर के अखबारों में इस अच्छे इंसान की धूम मची है. चोरी वोरी की बात कौन करे! वो तो रोज का किस्सा है जी. अपन को तो सेंटीमेंटल होना जमता है. तभी तो खुशी से मेरी शुष्क आँखें छलक उठी हैं. इंतज़ार की घड़ियाँ समाप्त हुईं. अंततः हमारे भिंड के अच्छे दिन आ ही गए! हौसला न छोड़ना. आपके भी आएंगे. 

रात के तीन बजा चाहते हैं. लेकिन सुंदर कल्पनाओं से मन का आँगन सजा हुआ है. हौले-हौले सतयुग में लौट रहे हैं हम. इस सतत प्रक्रिया के मध्य में सिबाका फिर से बिनाका गीतमाला बन चुकी है. अपने अमीन सयानी जी चहकते हुए कह रहे हैं, ऊँ हूँ आहा, तो भाइयों और बहनों, इस बार चार छलाँगे ऊपर लगाता हुआ पायदान नंबर एक पर पहुँचा है, ये गाना -
दुख भरे दिन बीते रे भैया 
अब सुख आयो रे 
रंग जीवन में नया लायो रे 
आए हाए दुख भरे दिन बीते रे भैया, बीते रे भैयाआआ 
- प्रीति अज्ञात 
फोटो: न्यूज का स्क्रीन शॉट लिया है. चिट्ठी हमारे घर नहीं आई थी. 
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