सोमवार, 21 अप्रैल 2014

'जान'

'जान' का अर्थ उसके लिए जीवन ही हुआ करता था. जब कभी आज के जमाने के लोगों को, या यूँ कहें कि प्रेमी-प्रेमिकाओं को एक दूसरे के लिए 'जान' शब्द का प्रयोग करते देखती-सुनती. तो बहुत कोफ़्त होती थी उसे ! छी ! ये भी कोई शब्द है, जान, बेबी..उफ्फ, ये आजकल के लोग, हाउ चीप ! क्या हुआ है, इन्हें !!

पर उस दिन जब प्रियम ने उसे प्यार से देखते हुए अपनी क़ातिलाना मुस्कान के साथ एकदम से कह दिया...." love u Jaan, can't live without u ! u r really sweet " तो जैसे रोम-रोम झनझना उठा था, उसका ! रग-रग में एक अजीब-सी खुशी की लहर दौड़ गई थी, पलकें नम और मन तरंगित था. धीमे स्वर में सौदामिनी भी बोल ही उठी, " love u too, jaan " और फिर सारे दिन पगलाती-सी घूमी थी. पहली बार किसी की 'जान' बनने का अहसास कितना खूबसूरत होता है, आज पता जो चला था उसे ! उफ्फ, कितना प्यारा है, ये अहसास ! फिर कागज़ पर कई बार लिखा, टाइप भी किया...पढ़कर देखा और खुद ही हँस दी, हाय ! कित्ता प्यारा शब्द है.....'जान' ! 

कुछ शब्द, सुनने-कहने में बड़े अजीब लगते हैं..पर वो हमेशा ही बुरे हों, ज़रूरी नहीं ! एक व्यक्ति, हर शब्द के मायने बदल सकता है....चाहे वो आपकी ज़िंदगी में ठिठककर ही चला गया हो !

* 'सौदामिनी'.......पूरा हुआ तो एक उपन्यास, वरना कुछ अधूरी कहानियों का संकलन मात्र !
प्रीति 'अज्ञात'

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