दूर से देखने पर यह खुला हुआ समोसा लगता है या फिर नाचोस/ स्प्रिंग डोसा जैसा कुछ-कुछ. पर इसे देखकर इसके चटपटे स्वाद का अंदाज़ जरूर हो जाता है. अब अनुमान से तो पेट भर नहीं सकता न! तो क्यों न इसे खा ही लिया जाए! एक बार मस्तिष्क तक जब यह संदेश पहुँच गया तो स्वाद कलिकायें भी जैसे बावरी हो उठीं! उस पर प्यारी सखियों का साथ हो तो कहना ही क्या!
वैसे इसे 'चूर-चूर पराँठा' कहते हैं और इसे जब दाल मखनी और रायते के साथ खाया जाता है उस समय चेहरे पर खिली मुस्कान, तृप्ति के जिस मधुर भाव का संचार कर वातावरण में सरगम की तरह बज उठती है; उसे ही परम सुख कहते हैं जी.
इस दिव्य ज्ञान का आभास होते समय हमें सचेत करते मस्तिष्क विभाग के कुछ तंतु पछाड़ें खा-खाकर याद दिलाते रहे कि प्रीति बेन यह भोजन आपके स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं! पर दिल और दिमाग़ की लड़ाई में जो इंसान सदैव दिल के साथ खड़ा होता आया है वो ऐसे बेहूदा तंतुओं की बातों में क्यों आये भला!
अतः वर्ड ट्रेड पार्क,जयपुर के हे चूर-चूर पराँठे.... जग घूमिया थारे जैसा न कोओई 😍
मोरल: महीने में एक-दो बार यदि आपकी आत्मा आपको धिक्कारे, लानत भेजे और सौ बार कहे कि "तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता!"
तो ज़िंदा हो तुम! 😝😎
- प्रीति 'अज्ञात'
#जयपुर #चूर-चूर पराँठा#हिन्दुस्तानी_स्वाद
वैसे इसे 'चूर-चूर पराँठा' कहते हैं और इसे जब दाल मखनी और रायते के साथ खाया जाता है उस समय चेहरे पर खिली मुस्कान, तृप्ति के जिस मधुर भाव का संचार कर वातावरण में सरगम की तरह बज उठती है; उसे ही परम सुख कहते हैं जी.
इस दिव्य ज्ञान का आभास होते समय हमें सचेत करते मस्तिष्क विभाग के कुछ तंतु पछाड़ें खा-खाकर याद दिलाते रहे कि प्रीति बेन यह भोजन आपके स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं! पर दिल और दिमाग़ की लड़ाई में जो इंसान सदैव दिल के साथ खड़ा होता आया है वो ऐसे बेहूदा तंतुओं की बातों में क्यों आये भला!
मोरल: महीने में एक-दो बार यदि आपकी आत्मा आपको धिक्कारे, लानत भेजे और सौ बार कहे कि "तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता!"
तो ज़िंदा हो तुम! 😝😎
- प्रीति 'अज्ञात'
#जयपुर #चूर-चूर पराँठा#हिन्दुस्तानी_स्वाद
देखते ही मुहं में पानी आ गया.
जवाब देंहटाएंपर क्या करें जयपुर आ भी तो नही सकते.
:)
अंगूर खट्टे हैं.
बेकरारी से वहशत की जानिब