'बिग बॉस' जब शुरू हुआ था तो यह कॉन्सेप्ट एकदम नया और कुछ अलग सा लगा था. शायद इसीलिए यह आते ही हिट भी हो गया था. एक घर में अलग-अलग क्षेत्रों, विभिन्न विचारधारा और संस्कृति से जुड़े लोगों का आपस में पटरी बैठाते हुए रहना; साथ ही एक-दूसरे को बाहर निकालने की जुगत भिड़ाते हुए स्वयं अंत तक गेम में बने रहने की कोशिश दर्शकों को ख़ूब भाती थी. मज़ेदार टास्क दिए जाते थे जिन्हें तमाम लड़ाइयों के बावजूद भी टीमवर्क से नियत समय में पूरा करना होता था. यह कहना गलत न होगा कि अपने प्रारंभिक वर्षों में यह जितना रुचिकर प्रतीत होता था, अब उतना ही भौंडा और अविश्वसनीय होता जा रहा है.
विगत वर्षों में इस कार्यक्रम में आने वाली जोड़ियों के रिश्ते बनने से कहीं ज्यादा बिखरते रहे. वाद-विवाद की जगह गालीगलौज़ और हाथापाई ने ले ली, जो जितनी जोर से चीखे-चिल्लाये, वो उतना ही लम्बा टिकता भी था.
पहले मुझे लगता था कि मानव व्यवहार और मनोविज्ञान को समझने के लिए इससे बेहतर कोई शो नहीं! क्योंकि यहाँ अच्छे से अच्छे, संवेदनशील, भावुक और सच्चे लोगों को एक अलग ही रंग में परिस्थितियों के आगे टूटते या जूझते देखा. लड़ाकू और तेजतर्रार लोगों की कितनी श्रेणियाँ संभव हैं उसका ज्ञान भी यहीं से मिला. इसमें रोटी, अंडे के लिए लड़ाई हुआ करती थी, काम के लिए भी यही हाल और सफाई को लेकर भी परस्पर लानत-मलानत का दौर चला करता था. धीरे-धीरे प्रेम कहानियाँ भी पैर पसारने लगीं और विवादास्पद लोगों को ही प्रतियोगी बनाकर चयनित किया जाने लगा.
हिन्दी में ही बात करने का नियम इस शो का सबसे आकर्षक पहलू था और एक कारण भी जिसने इसे जन-जन तक पहुँचा दिया. सीरियल की दुनिया से उकताए दर्शकों के लिए यह रियलिटी शो एक अच्छा विकल्प बन गया था.
इस समय जबकि सिरदर्द देने के लिए न्यूज़ और चर्चा के नाम पर चैनलों पर चीख-पुकार का प्रसारण हो ही रहा है, तो ऐसे में 'बिग बॉस' की कोई आवश्यकता रह ही नहीं जाती उस पर KBC के ही समय इसका प्रसारण अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है.
खैर,इस बार का यह बारहवाँ सीजन है और मेरे लिए यह पहली ही बार है कि मैं इसे नहीं देख रही हूँ. जबकि मुझे इसे कुछ वर्ष पहले ही देखना बंद कर देना चाहिए था.
- प्रीति 'अज्ञात'
#बिग_बॉस #Bigboss
विगत वर्षों में इस कार्यक्रम में आने वाली जोड़ियों के रिश्ते बनने से कहीं ज्यादा बिखरते रहे. वाद-विवाद की जगह गालीगलौज़ और हाथापाई ने ले ली, जो जितनी जोर से चीखे-चिल्लाये, वो उतना ही लम्बा टिकता भी था.
पहले मुझे लगता था कि मानव व्यवहार और मनोविज्ञान को समझने के लिए इससे बेहतर कोई शो नहीं! क्योंकि यहाँ अच्छे से अच्छे, संवेदनशील, भावुक और सच्चे लोगों को एक अलग ही रंग में परिस्थितियों के आगे टूटते या जूझते देखा. लड़ाकू और तेजतर्रार लोगों की कितनी श्रेणियाँ संभव हैं उसका ज्ञान भी यहीं से मिला. इसमें रोटी, अंडे के लिए लड़ाई हुआ करती थी, काम के लिए भी यही हाल और सफाई को लेकर भी परस्पर लानत-मलानत का दौर चला करता था. धीरे-धीरे प्रेम कहानियाँ भी पैर पसारने लगीं और विवादास्पद लोगों को ही प्रतियोगी बनाकर चयनित किया जाने लगा.
हिन्दी में ही बात करने का नियम इस शो का सबसे आकर्षक पहलू था और एक कारण भी जिसने इसे जन-जन तक पहुँचा दिया. सीरियल की दुनिया से उकताए दर्शकों के लिए यह रियलिटी शो एक अच्छा विकल्प बन गया था.
इस समय जबकि सिरदर्द देने के लिए न्यूज़ और चर्चा के नाम पर चैनलों पर चीख-पुकार का प्रसारण हो ही रहा है, तो ऐसे में 'बिग बॉस' की कोई आवश्यकता रह ही नहीं जाती उस पर KBC के ही समय इसका प्रसारण अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है.
खैर,इस बार का यह बारहवाँ सीजन है और मेरे लिए यह पहली ही बार है कि मैं इसे नहीं देख रही हूँ. जबकि मुझे इसे कुछ वर्ष पहले ही देखना बंद कर देना चाहिए था.
- प्रीति 'अज्ञात'
#बिग_बॉस #Bigboss
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