अमिताभ, भारतवर्ष के उन चुनिंदा लोगों में से हैं जिन्हें सुनकर भी हिंदी सीखी जा सकती है. भाषा की सभ्यता और बोलने का सलीक़ा क्या होता है, तमाम सुख-सुविधाओं के बीच रहते हुए भी एक अनुशासित जीवन कैसे जिया जाता है, कई दशकों से अमित जी इसके जीते-जागते साक्ष्य बन हमारे जीवन को प्रेरणा देते रहे हैं. कार्य के प्रति उनकी मेहनत, लगन, निष्ठा और अनुशासन देख अच्छे-अच्छे भी उनके सामने पानी भरते नज़र आते हैं. पर यहाँ यह भी जानना आवश्यक है कि इतने दशकों से सभी के दिलों पर कोई यूँ ही राज नहीं कर लेता! इस क़ाबिल बनने के लिए वर्षों की अपार मेहनत और संघर्ष की भीषण आँधियों से गुज़रना होता है. अमिताभ भी सारी मुश्किलों को झेलते हुए अपने बुरे समय से जूझकर आगे बढ़ते रहे. इस उम्र में भी KBC के अब तक के सभी सीजन की लगातार सफ़लता और दसवें अध्याय की शानदार शुरुआत सारी कहानी स्वयं ही कह देती है.
कहते हैं किसी इंटरव्यू में नसीर साब ये कह गए कि "अमिताभ बच्चन का सार्थक सिनेमा में कोई विशेष योगदान नहीं रहा, क्योंकि वे विशुद्ध व्यावसायिक अभिनेता हैं."
कोई और होता तो निश्चित रूप से यह सुनकर उखड़ ही जाता. तो पत्रकार भी इस बात पर बच्चन जी की प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक थे पर अमिताभ बच्चन ने कहा, "जब नसीरुद्दीन शाह जैसा अभिनेता कुछ कहता है तो वे प्रतिक्रिया देने से बेहतर आत्म-मंथन करना चाहेंगे."
इसे कहते हैं शिष्टता और विनम्रता! वे चाहते तो अभिमान, आनंद, चुपके-चुपके सरीखी दसियों श्रेष्ठ फिल्मों के नाम गिना सकते थे और बाद में चीनी कम, ब्लैक, पा, सरकार, पिंक, पीकू,102 नॉट आउट इत्यादि भी. यह सूची अभी मीलों बढ़ती ही जानी है.
'कौन बनेगा करोड़पति' जब प्रारंभ ही हुआ था तो उस समय हर शहर का माहौल कुछ ऐसा होता था जैसे कि देश भर में अघोषित कर्फ्यू लग गया हो. सबको घर पहुँचने की बेहद जल्दी रहती थी. उससे पहले यह दुर्लभ दृश्य प्रति रविवार 'रामायण' के प्रसारण के समय देखने को मिलता था.
कुल मिलाकर सच तो यह है कि प्रतियोगी, प्रश्नोत्तर और भव्य सेट एक तरफ़...पर ये अमिताभ का जादू ही है जो KBC में आज भी सर चढ़कर बोलता है.
जहाँ तक हम जैसे ज़बरदस्त प्रशंसकों की बात है तो अपना तो ये हाल है कि अमिताभ के ख़िलाफ़ कोई कहकर तो देखे, हम तुरंत ही उसे अपनी नजरों से नीचे गिरा देते हैं. पहले जब परदे पर अमिताभ की एंट्री होती थी तो लड़कों की सीटियों की आवाज़ लगातार सुनाई देती और सिक्के उछालते हुए तालियाँ पीटी जाती थीं. सबका कुदकने का ख़ूब मन करता पर हम तो मैनर्स के पीछे मरे जाते थे, सो मंद-मंद सॉफिस्टिकेटेड टाइप मुस्कान ही रख पाते थे. अब टीवी के सामने नाच भी सकते हैं. हमारी पीढ़ी उन लोगों का प्रतिनिधित्त्व करती है जो अमिताभ के युग में ही जन्मे और उनकी फिल्मों के साथ-साथ आगे बढ़ते रहे.
बहुत-सी बातें शेष हैं अभी.......
फ़िलहाल बस इतना ही कहेंगे कि "कौन कमबख़्त इन चैनलों की बहस देखने को टीवी चालू करता है. हम तो इसलिए रिमोट उठाते हैं कि सदी के महानायक की आवाज़ सुन सकें, उन्हें देख सकें, कुछ पल सुकून से जी सकें, ज्ञान के दो घूँट पी सकें और उम्र के हर दौर को ज़िंदादिली से जीने की प्रेरणा ले सकें!"
करोड़पति कोई भी बने बस ये जादू यूँ ही चलता रहे! और क्या!
- प्रीति 'अज्ञात'
#KBC #अमिताभ बच्चन #ज्ञान का दसवाँ अध्याय #कौन_बनेगा_करोड़पति
कहते हैं किसी इंटरव्यू में नसीर साब ये कह गए कि "अमिताभ बच्चन का सार्थक सिनेमा में कोई विशेष योगदान नहीं रहा, क्योंकि वे विशुद्ध व्यावसायिक अभिनेता हैं."
कोई और होता तो निश्चित रूप से यह सुनकर उखड़ ही जाता. तो पत्रकार भी इस बात पर बच्चन जी की प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक थे पर अमिताभ बच्चन ने कहा, "जब नसीरुद्दीन शाह जैसा अभिनेता कुछ कहता है तो वे प्रतिक्रिया देने से बेहतर आत्म-मंथन करना चाहेंगे."
इसे कहते हैं शिष्टता और विनम्रता! वे चाहते तो अभिमान, आनंद, चुपके-चुपके सरीखी दसियों श्रेष्ठ फिल्मों के नाम गिना सकते थे और बाद में चीनी कम, ब्लैक, पा, सरकार, पिंक, पीकू,102 नॉट आउट इत्यादि भी. यह सूची अभी मीलों बढ़ती ही जानी है.
'कौन बनेगा करोड़पति' जब प्रारंभ ही हुआ था तो उस समय हर शहर का माहौल कुछ ऐसा होता था जैसे कि देश भर में अघोषित कर्फ्यू लग गया हो. सबको घर पहुँचने की बेहद जल्दी रहती थी. उससे पहले यह दुर्लभ दृश्य प्रति रविवार 'रामायण' के प्रसारण के समय देखने को मिलता था.
कुल मिलाकर सच तो यह है कि प्रतियोगी, प्रश्नोत्तर और भव्य सेट एक तरफ़...पर ये अमिताभ का जादू ही है जो KBC में आज भी सर चढ़कर बोलता है.
जहाँ तक हम जैसे ज़बरदस्त प्रशंसकों की बात है तो अपना तो ये हाल है कि अमिताभ के ख़िलाफ़ कोई कहकर तो देखे, हम तुरंत ही उसे अपनी नजरों से नीचे गिरा देते हैं. पहले जब परदे पर अमिताभ की एंट्री होती थी तो लड़कों की सीटियों की आवाज़ लगातार सुनाई देती और सिक्के उछालते हुए तालियाँ पीटी जाती थीं. सबका कुदकने का ख़ूब मन करता पर हम तो मैनर्स के पीछे मरे जाते थे, सो मंद-मंद सॉफिस्टिकेटेड टाइप मुस्कान ही रख पाते थे. अब टीवी के सामने नाच भी सकते हैं. हमारी पीढ़ी उन लोगों का प्रतिनिधित्त्व करती है जो अमिताभ के युग में ही जन्मे और उनकी फिल्मों के साथ-साथ आगे बढ़ते रहे.
बहुत-सी बातें शेष हैं अभी.......
फ़िलहाल बस इतना ही कहेंगे कि "कौन कमबख़्त इन चैनलों की बहस देखने को टीवी चालू करता है. हम तो इसलिए रिमोट उठाते हैं कि सदी के महानायक की आवाज़ सुन सकें, उन्हें देख सकें, कुछ पल सुकून से जी सकें, ज्ञान के दो घूँट पी सकें और उम्र के हर दौर को ज़िंदादिली से जीने की प्रेरणा ले सकें!"
करोड़पति कोई भी बने बस ये जादू यूँ ही चलता रहे! और क्या!
- प्रीति 'अज्ञात'
#KBC #अमिताभ बच्चन #ज्ञान का दसवाँ अध्याय #कौन_बनेगा_करोड़पति
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