20 सितम्बर का एपिसोड देवेन्दर सिंह के नाम रहा. वे 6,40,000 जीतकर गए पर बात यहाँ सिर्फ़ ज्ञान के दसवें अध्याय की ही नहीं है। देवेन्दर जी की विनम्रता और संवेदनशीलता भी बेहद प्रेरणादायी थी। उनकी माँ उनके बारे में बात करते हुए जब भावुक हुईं तो वह उनका अपने बेटे के प्रति गर्व की सुखद स्मृतियाँ भी थीं कि कैसे वे अपना भोजन दूसरे को दे देते थे और देखिये देवेन्दर जी के इसी भाव ने उन्हें कम्युनिटी किचन की स्थापना की उम्दा सोच भी दे दी.
इससे भी अच्छी बात यह थी कि वे भरपेट भोजन के लिए मात्र पाँच रुपए लेते हैं, वो भी इसलिये कि भोजन करने वालों का स्वाभिमान बना रहे! सचमुच ऐसे समय मे अपने देशवासियों पर अत्यधिक गर्व का अनुभव होता है. देवेन्दर जी को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं! कभी अवसर मिला तो उनके इस किचन में मदद अवश्य करना चाहूँगी.
उनकी फ़रमाईश पर “आज खुश तो बहुत होगे तुम! जो आज तक तुम्हारे मंदिर की सीढ़ियाँ नहीं चढ़ा, जिसने कभी तुम्हारे सामने हाथ नहीं जोड़े; वो आज तुम्हारे सामने हाथ फैलाये खड़ा है ……" अमिताभ की इस संवाद अदायगी के बाद तो दर्शकों का ख़ुश होना बनता ही था.
उनके बाद बुद्धिमानी और ज़ज़्बे की अनूठी मिसाल लिए जितेंद्र प्रसाद जी हॉट सीट पर आए, जिनकी शिक्षा के लिए उनके भाई औऱ पिता ने दिन-रात एक कर दिया. पिता की चाय की दुकान है. मित्र के भाई ने भी उन्हें बिना फ़ीस लिए पढ़ाया. जितेंद्र जी बहुत अच्छा खेल रहे थे और 25 लाख के प्रश्न तक पहुंच चुके थे. और इसी प्रश्न पर पक्का उत्तर न पता होने और अमिताभ का quit का विकल्प याद दिलाने के बाबजूद भी वे खेल गए और 3,20,000 से ही उन्हें संतोष करना पड़ा.
बहुत अफ़सोस हुआ क्योंकि उन्होंने यह बात साझा की थी कि वे अपने पैरों की shape के कारण बहुत परेशान रहे हैं और वे इसे ठीक करके जूते पहन पूरे गाँव में घूमना चाहते हैं. एक तरफ जहाँ लोग दुनिया भर की सुख-संपत्ति की चाहत रखते हैं वहाँ 'संतोष' की सही परिभाषा जितेन्द्र जी की इसी छोटी सी अभिलाषा से व्यक्त होती है.
KBC सिर्फ़ धन से ही नहीं, सोच से भी समृद्ध कर रहा है. हम इसे यूँ ही नहीं देखते हैं भई! क्या समझे? हईं
-प्रीति 'अज्ञात'
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