शनिवार, 8 अगस्त 2020

#बातें बेवज़ह

 कई बार हम बहुत सी बातों पर दुनिया को ज्ञान बाँट रहे होते हैं पर ऐसा संभव है कि उन्हीं मुद्दों पर हम स्वयं हार चुके हों!

कई बार हम तमाम हारे हुए लोगों को जीतने का तरीक़ा सिखाते हैं भले ही वो सभी तरीक़े अपनाकर हमने स्वयं कुछ भी नहीं जीता होता है। 
कई बार जीतने के बाद भी कोई प्रसन्नता नहीं होती है क्योंकि उसे बाँटने वाला कोई नहीं होता पर हम सबको पूरे विश्वास से कहते हैं, 'एकला चलो रे!'
अकेले चल पाना मुश्क़िल भले न हो पर ये अकेलापन उदास रातों में काट खाने को दौड़ता है। उस समय हम सबको चाँद से बातें करना सिखाते हैं और आसमान के तारों में खोए हुए अपनों को ढूँढ लेने की बातें करने लगते हैं। \

हम अपने धराशायी स्वप्नों से रोज एक नया महल खड़ा करते हैं। हम ये भी जानते-समझते हैं कि सबका जीवन एक सा नहीं होता!
ये उम्मीद भी अजीब है, कई बार निरर्थक प्रतीत होती है और कभी लगता है कि हमारी कोशिशें क़ामयाब न हुईं तो क्या, किसी की तो होंगी!
अगर हम हार गए तो क्या! कोई तो जीतेगा न!
अगर हम अकेले हैं तो क्या! औरों का तो साथी है न!

हर बार ही हमें दूसरों के लिए खुश होते रहना चाहिए। जितना हो सके, सबकी मदद करना चाहिए। सबके आनंद में हमारा मन भी प्रफुल्लित होना ही चाहिए। 
जब हम नियमित रूप से ऐसा करते हैं तो एक दिन कोई देवदूत बन हमारे दरवाज़े पर भी दस्तक़ देता है। हमारी हर पराजय को एक ही झटके में भुलाकर हमें हर पल विजयी होने का अहसास कराता है। हमारा साथी बन धड़कनों के साथ चलता है और हमारी आँखों में अपनी सूरत धर बेवज़ह मुस्कुराता है। 
ग़र एक अच्छा और सच्चा इंसान साथ हो तो दुनिया इतनी बुरी भी नहीं लगती! बुरी भूल ही जाइये, ख़ूबसूरत लगने लगती है। 
बस हमें हर हाल में सबका साथ देना है। यक़ीन कीजिए फिर एक दिन ये दुनिया आपके साथ होगी।

रोज ही स्वयं को एक दिलासा देना जरुरी है कि कल ही सुबह इस उदासी का पटाक्षेप होगा।
ये अलग बात है कि कई बार पूरा जीवन बस इसी उम्मीद के सहारे ही कट जाता है।
- प्रीति 'अज्ञात' 

1 टिप्पणी:

  1. उम्मीद का ही नाम तो जिंदगी है और उम्मीदों को जगाए रखना बंदगी। सुंदर लेखन।

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