इन दिनों आईने ने हमें पहचानना छोड़ दिया है और वो हमसे हमारी पहली-सी क़ातिलाना सूरत की मांग करने लगा है. उस पर सोशल मीडिया में लाइव आने को कहते लोग 'मेरे अपने मेरे होने की निशानी मांगें' जैसा अहसास भी करा रहे हैं. अब इन्हें कौन समझाए कि हम स्त्रियों के जीवन में केवल पति ही परमेश्वर नहीं होते बल्कि हमारे पर्सनल 'पंच परमेश्वर' भी इनके साथ ही exist करते हैं. सहजीविता (Symbiosis) समझते हो तुसी? हाँ, कुछ-कुछ वोई टाइप से.
कैसे बताएँ कि इस लॉकडाउन (Lockdown) के चक्कर में हमारा जीवन बीच भँवर में डोल रहा. हमारी प्रेम की इकलौती नैया का अब कोई खिवैया न रहा. इस कमबख्त गुलाबी वायरस ने हमारी दुनिया से गुलाब का पूरा गमला ही लूट लिया है. नामुराद ने भोली, मासूम स्त्रियों से उनकी 5 सेक्सी चीज़ें छीन लीं हैं. डर लगता है कि शीला की जवानी की तरह कहीं ये भी हमारे हाथों से निकल न जाएँ.
1. जवानी- भारत कुमार ने कई बरस पहले ही ये बात कन्फर्म कर दी थी कि 'वो जवानी, जवानी नहीं/ जिसकी कोई कहानी न हो'. आदरणीय, हम शर्मिंदा हैं. बोझ हैं इस धरती पर क्योंकि हमारी कोई कहानी बन ही न पा रही. एक समय था जब दुकानें खुली होती थीं. बाथरूम में लगी काँच की शेल्फ़ में वो सब कुछ था जो उम्र को साधे रखता था. तमाम उत्पाद (Products) कानों में चुपके से आकर ये फुसफुसा जाते थे, "रंग दे, रंग दे, रंग दे, रंग दे, हाँ रंग दे". हम तब्बू की याद में भावुक हो हर पंद्रह दिन बाद खुद पर बलिहारी हुए होना एक अनुष्ठान समझते थे. कभी-कभी तो भावुकता में दर्पण के सामने खड़े हो आँख मिचका, मुस्कियाकर कह भी उठते थे,"Because I'm worth it!"
2. फ़िगर- "जाने कहाँ मेरा फ़िगर गया जी, अभी-अभी इधर था, किधर गया जी!" बहुत दुःख भरी कहानी है साहब. हमको फ़िगर और फ़िटनेस की बहुत फ़िक़र है जी. हाहा, अब ये न पूछियेगा कि अनुप्रास अलंकार की लत हमें कैसे और किससे लगी!
इस ज़िंदाबाद जवानी के सहारे पार्टियों में जाने की अपनी एक अदा थी. ज़ुल्फ़ों को झटकने का मज़ा था. अब सिर पर चाँदी की फ़सल उग रही. स्थिति तनावपूर्ण और अनियंत्रित दोनों है. कहाँ से लाएँ, निगोड़ी जवानी!
उफ़! ये जालिम दुनिया. जिम और योगा क्लास पर ताले ठुके हैं. म्यूजिक की ताल और ट्रेडमिल पर थिरकते पाँव घर बैठे सुन्ना रहे. हम घुन्ना रहे, लोग हमें देख भिन्ना रहे.
ऑनलाइन योगा भी किससे होगा! घर में रहो तो सौ काम अगल-बगल नाचते, मटकते दिखते हैं. क्लास की बात ही और है! सो, अब अपनी उसी पुरानी छरहरी और यौवनयुक्त काया की चिंता में हम सब यूँ घुले जा रहे जैसे कि दुनिया में कोरोना घुल गया है.
उस पर सोशल मीडिया पर बैठे कुछ निठल्ले रोज जलेबियाँ, लड्डू, खीर की फोटो डाल सारे लॉकडाउन resolution की ऐसी-तैसी करे दे रहे हैं. हे ईश्वर! उन्हें इस भड़काऊ अपराध की सजा अवश्य देना. कम-से-कम बीस किलो बढ़ाना उनका.
3. फैशन- जब क़द्रदान ही गायब हैं तो कहाँ करें फैशन? इसके बिना जीवन एकदम जीरो बटा सन्नाटा है. स्टाइलिश कपडे वार्डरोब से अपनी आस्तीनें बाहर निकाल पहने जाने की भीख माँग रहे कि "आंटी जी, एक बार पहन लो!" हम तुनक गए. उसे तुरंत ही एक तमाचा मार झिड़का, "आंटी, किसको बोला बे? अब क्या बर्तन धोते हुए अनारकली सूट पहनूँ?" बस मारे गुस्सा के उस शेल्फ में अपना पर्सनल लॉकडाउन कर चार जोड़ी कपड़े निकाल बक्से पे धर लिये. अब उन्हीं में ज़िंदगी कट रही है, कटती ही जा रही है. चिंता यही कि ये लघुकथा कहीं हॉरर उपन्यास ही न बन जाए.
4. हेयर कट- अब इसने तो भई महान भोले पुरुषों को भी ऋषि-मुनि वाले युग में पहुँचा दिया है पर अपन उनकी बात क्यों करें! दिक्कत तो हम हुस्न की मल्लिकाओं की है जिनके तमाम हेयर स्टाइल अब मिक्स वेज़ का फ़ील दे रहे. काहे का स्टाइल बचा! बस दो फेंटा मारो और लग जाओ काम पर! हाय, उन गीतों का क्या जो इन परियों की सुंदरता में आसमान की घटाओं तक पहुँच जाते थे. चौदहवीं का चाँद बन सुहानी रातों में आकर हौले से छेड़ जाते थे. धत्त! अब लजवाओगे क्या!
5. फ़ूड- Eating Out याद है न! कहीं current ज़ख्म पर छोटा निम्बुड़ा निचुड़ा जैसा तो नहीं लग रहा न? अहाहा! वो भी क्या दिन थे जब पिज़्ज़ा हट में जाकर टन्न से घंटा बजाते मुस्कुराते निकलते थे, डोमिनोज़ में बैठ स्टाइलिश फोटो अपलोड करते थे. कभी किसी शानदार रेस्टोरेंट में इंडियन, ओरिएण्टल cuisine का मज़ा लेते थे. उस पर सोशल मीडिया में वो 'Having dinner at...' वाला कूल सा स्टेटस, इश्श! कैसे तन-बदन को रोमांचित कर देता था. गोलगप्पे के ठेले पर अपनी बारी का इंतज़ार और इस इंतज़ार के दौर में दिलवर की आँखों का प्यार. हाय, अब रो न देना कहीं!
3. फैशन- जब क़द्रदान ही गायब हैं तो कहाँ करें फैशन? इसके बिना जीवन एकदम जीरो बटा सन्नाटा है. स्टाइलिश कपडे वार्डरोब से अपनी आस्तीनें बाहर निकाल पहने जाने की भीख माँग रहे कि "आंटी जी, एक बार पहन लो!" हम तुनक गए. उसे तुरंत ही एक तमाचा मार झिड़का, "आंटी, किसको बोला बे? अब क्या बर्तन धोते हुए अनारकली सूट पहनूँ?" बस मारे गुस्सा के उस शेल्फ में अपना पर्सनल लॉकडाउन कर चार जोड़ी कपड़े निकाल बक्से पे धर लिये. अब उन्हीं में ज़िंदगी कट रही है, कटती ही जा रही है. चिंता यही कि ये लघुकथा कहीं हॉरर उपन्यास ही न बन जाए.
4. हेयर कट- अब इसने तो भई महान भोले पुरुषों को भी ऋषि-मुनि वाले युग में पहुँचा दिया है पर अपन उनकी बात क्यों करें! दिक्कत तो हम हुस्न की मल्लिकाओं की है जिनके तमाम हेयर स्टाइल अब मिक्स वेज़ का फ़ील दे रहे. काहे का स्टाइल बचा! बस दो फेंटा मारो और लग जाओ काम पर! हाय, उन गीतों का क्या जो इन परियों की सुंदरता में आसमान की घटाओं तक पहुँच जाते थे. चौदहवीं का चाँद बन सुहानी रातों में आकर हौले से छेड़ जाते थे. धत्त! अब लजवाओगे क्या!
5. फ़ूड- Eating Out याद है न! कहीं current ज़ख्म पर छोटा निम्बुड़ा निचुड़ा जैसा तो नहीं लग रहा न? अहाहा! वो भी क्या दिन थे जब पिज़्ज़ा हट में जाकर टन्न से घंटा बजाते मुस्कुराते निकलते थे, डोमिनोज़ में बैठ स्टाइलिश फोटो अपलोड करते थे. कभी किसी शानदार रेस्टोरेंट में इंडियन, ओरिएण्टल cuisine का मज़ा लेते थे. उस पर सोशल मीडिया में वो 'Having dinner at...' वाला कूल सा स्टेटस, इश्श! कैसे तन-बदन को रोमांचित कर देता था. गोलगप्पे के ठेले पर अपनी बारी का इंतज़ार और इस इंतज़ार के दौर में दिलवर की आँखों का प्यार. हाय, अब रो न देना कहीं!
इधर FM 'शीला की जवानी' सुना रहा है. हमें लग रहा कि "तेरे हाथ न आनी!" कहकर हमें ही डायरेक्ट tease कर रहा. न जाने कब ये समां फिर सुहाना होगा! कब ये पाँचों सेक्सी चीज़ें हमारे जीवन में फिर से लौट आयेंगीं!
कष्ट असहनीय है और आज पहली बार हमें हमारे मोहल्ले की बूढ़ी काकी वाली बात एकदम सही लगी, "आग लगे, इस नासपीटी जवानी को!"
"हाय रे ऐसे तरसे हमको, हो गए सौ अरसे रे/ सूखे दिल पे मेघा बन के,
तेरी नजरिया बरसे रे.." ये छेड़ना, फ़िकरे कसना, इश्क़िया अंदाज़, इतराना, फैशन, पार्टी, मौज- मस्ती सब गुम हैं. लेकिन इस काल ने इतना तो तय कर दिया है कि कूल और सेक्सी होने का पहले वाला concept अब पुराना हुआ. सोच बदल रही.
"हाय रे ऐसे तरसे हमको, हो गए सौ अरसे रे/ सूखे दिल पे मेघा बन के,
तेरी नजरिया बरसे रे.." ये छेड़ना, फ़िकरे कसना, इश्क़िया अंदाज़, इतराना, फैशन, पार्टी, मौज- मस्ती सब गुम हैं. लेकिन इस काल ने इतना तो तय कर दिया है कि कूल और सेक्सी होने का पहले वाला concept अब पुराना हुआ. सोच बदल रही.
अब तो Mental peace ही sexiest है जी. जो इस दौर में भी शांति से जी पा रहा, मुस्कुरा रहा...उसके चरणों में साष्टांग दंडवत हो नमन कीजिये. लगे हाथों दो-चार गुर भी सीख लीजिये. बाक़ी तो जो है सो है ही. आज कुशल है, कल सबका मंगल भी होना तय है. भूलना मत, आज के दौर में 'धैर्य' और 'उम्मीद' भी सेक्सी शब्द हैं.
- प्रीति 'अज्ञात'
- प्रीति 'अज्ञात'
सही में आपके पंच में परमेश्वर का निवास-सा प्रतीत हो रहा है, तभी तो आपने बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं छोड़ी😀
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