शनिवार, 23 मई 2020

#Lockdown crime: आम, इंसान, इंसानियत, ईमान, और बेइमान


लॉकडाउन (Lockdown) शहर से क्या हटा कि लगता है अब लोगों ने अपनी बुद्धि पर अलीगढ़ी ताले को ही डाल लिया है. सोशल डिस्टेंसिंग (Social distancing) का नियम तोड़ते बहुत से वीडियोज़, शहर-दर-शहर आम होने लगे हैं. बस 'आम' ही ख़ास है जो इस बार इंसानियत का ग़ुनहगार बन बैठा!' आम को देखते ही आम आदमी की नीयत फ़िसलने लगे तो क्या कहिए!
शर्म से डूबना ही होगा क्योंकि ये ग़रीब, लाचार, भूखे लोग नहीं हैं कि हमें इनकी मजबूरी पर तरस आये. यह दूध-दवाई जैसी आवश्यक वस्तुओं (Essential need) में भी नहीं आता कि इसके बिना जान पर बन आये और लूटना जरुरी-सा लगे. लेकिन फिर भी शहर की हवा लगते ही मानसिकता उसी पुराने ढर्रे पर लौट आई है. जब तक कोरोना वायरस (Corona Virus) के भय से सब घरों में क़ैद थे तब सिवाय Covid-19 के शायद ही कोई और ख़बर आती थी.

घटना दिल वालों की दिल्ली की है. जहाँ जगतपुरी इलाक़े में छोटे नामक एक फल-विक्रेता बहुत दिनों बाद अपने ठेले पर आम बेचने निकला था. कुछ लोगों ने आकर उसे ठेला हटाने को कहा. झगड़ा बढ़ा और ठेले पर से उसका ध्यान हट गया. इसी बीच आमों को यूँ खुले में बिना विक्रेता के देख राहगीरों ने बहती गंगा में हाथ धोने शुरू कर दिये. इस बंदर बाँट की हद देखिये कि हाथों में, थैले में, हेलमेट में, शर्ट, पेंट में जिसके जितने समाये..लेता चला गया. लगभग 30,000 रुपये के ये पंद्रह टोकरी आम कुछ ही समय में अमानवीय रूप से लूट लिए गए.
एक इंसान जो महीनों बाद कुछ कमाने की आशा लेकर घर से निकला होगा, उसकी बची-खुची कमाई भी उन लोगों ने लूट ली जिन्हें बस मुफ़्तख़ोरी का आनंद उठाना था. ये बिल्कुल भी भूख-प्यास से तड़पते लोग नहीं थे. ऐसा भी नहीं कि आमों का सीजन ख़त्म हो रहा हो और ये उसकी आख़िरी खेप हो. मास्क लगाए ये लोग लुटेरे ही हैं जिनके लिए मुफ़्त बिजली-पानी पर्याप्त नहीं. इनके लालच का कोई अंत ही नहीं! मास्क लगाए ये लोग लुटेरे ही हैं!

छोटे ने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी है. उसे और कुछ नहीं पर आश्वासन अवश्य मिल गया होगा. इसकी कड़ी निंदा तो हो सकती है पर जाँच होगी, मैं इस भ्रम को यहीं खारिज़ करना चाहूँगी. भीड़ के विरुद्ध कैसी और कितनी कार्यवाही होती आई है ये हम सबसे छिपा नहीं. हमने तो बड़ी-बड़ी घटनाओं और लूटों को देखा, सुना और सहज भाव से लील लिया है. उसके सामने यह घटना तो बहुत छोटी लगती है न! लोग हँसते हुए कहेंगे, आम खाना ग़ुनाह थोड़े ही है!
प्रायः बुरा समय इंसान को बेहतर, संवेदनशील और परिपक्व बनाता है इसलिए लगने लगा था कि चलो, इस कोरोना काल से बाहर निकलने के बाद सब कुछ अच्छा हो जायेगा. लोगों की मानसिकता में सुधार होगा और वे जीवन को नए ढंग से देखने-समझने लगेंगे. पर ये हम सबकी ग़लतफ़हमी ही है क्योंकि लॉक डाउन खुलते ही अन्य आपराधिक घटनाओं के ताजा समाचार आने शुरू हो गए हैं. लोग भूल रहे हैं कि जीवन और मृत्यु के बीच के महीन अंतर को समझाने वाला यह विषाणु (Virus) अभी दुनिया से गया नहीं है. हमारे आसपास ही है. मजबूरी ही मानिए कि बस हमने इसके साथ जीना शुरू कर दिया है. ऐसे जियेंगे?
- प्रीति 'अज्ञात'
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2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही निंदनीय कुकृत्य! लेकिन सनद रहे, ये 'आम' लूटने वाले कुछ खास लोग होते हैं जो आम जन की छवि बिगाड़ देते हैं।

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  2. सटीक प्रस्तुति. अमानवीय काम.

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