शुक्रवार, 8 मई 2020

#Go_corona_go #इमोशन का डिमोशन

हमारे इमोशन का इत्ता डिमोशन पहले कभी न हुआ. पता है, आज सपने में सब्जी मंडी आई. मल्लब, यार कोरोना! तुमने हमारे सपनों का स्टैण्डर्ड कितना गिरा दिया है! कहाँ हम स्विट्जरलैंड की वादियों में इश्क़ के सदाबहार नग़मे गाया करते थे. हिमाचल की ठंडी हवाओं को मुट्ठी में भर अपने दिलवर की ओर चुपके से उछाल दिया करते थे. किसी के दिये गुलाब की खुशबू से सारा दिन महकता था, तो कभी उसकी शैतानी भरी आँखें हमारे ख्वाबों को आसमान के उस गुल्लू से चाँद को चूमने पर मजबूर कर देती थीं.

और अब तुम हो! गली में लगे ये निर्जीव बैरिकेड्स हैं! डंडे को उसका लक्ष्य स्मरण दिलाते पुलिस वाले हैं. सूनी सड़कें और उस पर आवारागर्दी करते पशु हैं. जिनकी आवाज़ें यूँ लगती हैं मानो, पूछ रही हों, "क्यों बे आदमी, सब ठीक तो है न?" सच कहूँ तो मुझे उनकी आवाज़ में, कंसर्न से कहीं ज्यादा बुलीगीरी नज़र आती है. 

अब घर है और हेल्पर्स की अनुपस्थिति में कर्म वीरांगना बने हम हैं. आँखें मूँदते हैं तो गाड़ियों की चिल्लपों याद आती है, किराने की दुकान याद आती है,  बाजारों से हम तक पहुँचने के पहले उठ गए मैगी और हल्दीराम के तमाम पैकेट याद आते हैं.  वो frozen आइटम जो हमारी थकान को सम्बल देते हुए चुपके से माथे पर हाथ फेर यह कह दिया करते थे कि "चल, आराम कर ले, आज हम हैं न!" वो सब किसी स्वार्थी और बेवफ़ा प्रेमी की तरह जरुरत के वक़्त नदारद हैं.

अब हम हैं, रोटी है नमक है.....हाँ, भई दाल भी है. अब उसको न नज़र लगाओ! हाय! पर वो हरियाली अब ढूँढे नहीं मिलती. मैथी और पालक का उदास-मुरझाया चेहरा याद आ रहा जिन्हें मैं यह कह जब-तब झिड़क दिया करती थी कि "हट, तुझे कल बनाऊंगी. बहुत टाइम लेते हो बे!" और वो सुर्ख लाल टमाटर जो उदरस्थ हो हमारी त्वचा को जवां रखता था...उफ़! तुम्हारी भी याद में हम पीले होने लगे हैं.

लोग चमक-चमककर लाइव आ रहे, उस समय हमारे दिल पे जो हथौड़े चलते हैं न, शास्त्र उसको डिस्क्राइब करना भूल गए हैं. बस जान लो, या ख़ुदा! उसकी टंकार कभी किसी ग़रीब के जीवन में न बजे. तुम ही बताओ, हे ईश्वर! हम जैसे मासूम लोग अब Dye लेने कहाँ जाए? ये रातों-रात हम सडनली वृद्ध कैसे हो गए? ये दोनों eyebrows जो अपने-अपने घर में सलीक़े से रह रहीं थीं, अब अचानक मिलकर चार लेन वाला highway बनाने को किसलिए बेताब हैं? मैं पूछती हूँ आख़िर किसलिए?

कोरोना, तुम्हें इनकी सुपर बेताबी की डुपर बद्दुआ लगे. हमें घनी वादियों से मैथी-पालक की क्यारियों तक पहुँचाने का पाप भी तुम्हारे सर मढ़े.
Covid अंकल जी, शुक्र मनाइये कि ये जो आप कर रहे हैं न! हमारे गोलगप्पे तक तो ये बात पहुँचाई ही नहीं है हमने. बेचारा कब से स्टोर में बंद लोनली फील कर रहा है! सोचता होगा कि हम कहाँ खो गए! पर तुम देखना, जिस दिन वो आज़ाद होगा न! हमारे और उसके बीच ये भद्दी दीवार खड़ी करने के लिए, सीधे तुम्हारा मुँह तोड़ देगा या दुर्वासा ऋषि टाइप क्रोधाग्नि में भकभकाकर तुम्हें भस्म कर देगा. एक बार भी पलटकर नहीं पूछेगा, "हाउ आर यू फ़ीलिंग?"
 
भई Mr. Covid 19, 20, 21 और जितने भी तुम्हारे खानदान वाले हैं न, सबको लेकर अब निकल्लो! चलो, जगह हम ही suggest करे देते हैं. सुनो डियरम, पहला ऑप्शन कि तुम पाताल लोक में जाकर खुद को एनी हाउ एडजस्ट कर लो क्योंकि थोड़ी देर बाद तो असुर गंडासे से तुमरा संहार कर ही देंगे या तुम उनका! अपन दोनों situation में फील गुड करेंगे. दूसरा विकल्प ये है आर्यपुत्र! कि तुम स्वर्ग की ओर ही अपने पर्सनल पंखों से प्रस्थान कर डालो. तुम्हारे लिए उधर देवता पलक पाँवड़े बिछाए बैठे हैं. अपने भी कुछ दोस्त हैं वहाँ, वे लोग तुम्हें ऐसे ट्रीट करेंगे, ऐसे ट्रीट करेंगे कि अगली बार तुम गुलाब की गुलाबो बन आसमान से लटक-लटक महकोगे. उस दिन तुम्हारे स्वागत में सबसे पहले आरती का थाल हम ही सजायेंगे लेकिन उस अद्भुत पल के आने तक पिलीज़ एक्सेप्ट माय हर्टिएस्ट हेट एंड एंगर विद अ सुपर थप्पड़ 
हुश्श, हुरर्र,भक्क
दस्विदानिया! सायोनारा! अलविदा!
गो कोरोना गो 
- प्रीति 'अज्ञात'
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