शनिवार, 16 मई 2020

'हम मोदी को मारेंगे' कहने वाले बच्चे के दिमाग में ज़हर किसने घोला है?


हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें Covid-19 के संक्रमण से मुक्त हुए कुछ मरीज़ हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद फोटो क्लिक करवा रहे हैं कि अचानक एक बच्चे की आवाज़ आपको चौंका देती है जिसमें वह सीधे-सीधे कह रहा है कि 'हम मोदी को मारेंगे!'
बच्चे के मुँह से निकली यह बात नादानी तो क़तई नहीं मानी जा सकती क्योंकि यह कोई सुनी-सुनाई गाली नहीं कि बच्चे ने घर में सुनी और मासूमियत में बोल दी. बल्कि यह पूरा वाक्य आपको ये बताता है कि बच्चे की कंडीशनिंग कैसे हो रही. यह उसके मौलिक विचार भी नहीं हो सकते अतः यहाँ बात upbringing और एजुकेशन की भी है.
बचपन अच्छी शिक्षा, प्यार, दुलार और संस्कार की माँग करता हैं, उसके उचित प्रकार से पल्लवित होने की यह पहली शर्त है. सही राह, उचित भाषा, सभ्यता और शिष्टता सीखने-समझने के लिए ग़रीबी-अमीरी, सुख-सुविधा के कोई पैमाने नहीं होते. यदि आप दूसरों का सम्मान करेंगे तो क्या मज़ाल कि बच्चा किसी का यूँ अपमान कर दे!  

ऐसे में विचारणीय है कि कौन हैं वे लोग जो इस प्रवृत्ति की न केवल सोच रखते हैं बल्कि उसे बढ़ावा दे नन्हे बचपन की जड़ों को उससे सींच भी रहे हैं. क्या इस बात को समझने में कहीं कोई भी संदेह रह जाता है कि ये बच्चा बड़ा हो कर किस दिशा में जाएगा, क्या करेगा और क्या बनेगा!
बिना कारण और बिना किसी तर्क के भला कोई ऐसा कैसे बोल सकता है? इसके पीछे कहीं कुछ तो ख़तरनाक खेल चल रहा होगा. यह हम सबके लिए एक चेतावनी है जिसे समय रहते समझना होगा. वरना यह ज़हर कब पूरे वृक्ष में फ़ैल उसे नष्ट कर देगा, कोई नहीं जानता.

हद है! आख़िर देश के प्रधानमंत्री के लिए इतनी ज़हरीली सोच कोई कैसे रख सकता है? क्यों रखेगा? वे सही-गलत हो सकते हैं पर देश के दुश्मन तो नहीं हैं न. सबका काम करने का अपना एक तरीक़ा होता है जिससे असहमति और विरोध अपनी जगह है लेकिन उनके पद की गरिमा और मर्यादा का पूरा ख़्याल रखा जाना चाहिए. यदि आप किसी की नीतियों से असहमत हैं तो निश्चित रूप से अपना विरोध दर्ज़ करा सकते हैं. प्रजातंत्र ने हमें यह अधिकार प्रारम्भ से दे रखा है. लेकिन, ऐसा करने के लिए एक बच्चे का इस्तेमाल दुर्भाग्यपूर्ण औेर डराने वाला है. 

मैं स्वयं इस बात में विश्वास रखती हूँ कि यदि कुछ गलत लगता है तो ये हमारा दायित्त्व है कि हम सच के साथ खड़े होकर पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कहें. सुधार की गुंजाइश हमेशा होती है और पुनर्मूल्यांकन ही विकास को बेहतर गति एवं दिशा देता है. समाज के लिए चिंतन जरुरी भी है लेकिन भद्दी भाषा, गाली-गलौज़ या उसका समर्थन इस उद्देश्य की पूर्ति करने की बजाय आपको अपराधियों की श्रेणी में ला खड़ा कर देता है.
मैं यहाँ यह भी जोड़ना चाहूँगी कि बात देश के प्रधानमंत्री के कारण ही शोचनीय नहीं है बल्कि यह किसी के लिए भी कही गई होती तब भी इसमें भरी नफरत उतनी ही चिंताजनक और निंदनीय है.
 
हो सकता है कि आप इस विषय पर हँस जाएँ या यूँ कह हाथ झाड़ दें कि "अरे, यह तो बच्चा है. इसे इतनी गंभीरता से क्यों लेना. कौन सा मार ही देगा!" दुर्भाग्य से ठीक यही हँसी मेरी चिंता का विषय भी है क्योंकि मैं इसे आने वाले कल में दुष्परिणाम के रूप में देख रही हूँ. इसे गंभीरता से ही लिया जाना चाहिए और इस मामले की तह तक जाना चाहिए कि आख़िर ये चल क्या रहा है? यह सोच कैसे विकसित हुई? समय रहते हमें इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढने ही होंगे -
* बच्चों का हृदय बेहद कोमल होता है, आख़िर उनकी इस कोमलता को छीन उसे क्रूरता और हिंसा में कौन परिवर्तित कर रहा है?  
* इस समय जबकि देश विषम परिस्थितियों से गुज़र रहा है, ऐसे में विष की खेती करने वाले वे कौन लोग हैं जो बच्चों के दिमाग को हथियार की तरह इस्तेमाल कर उसे दूषित विचारधारा से ग्रसित कर  अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं?
* कुछ दिन पहले बॉयज/ गर्ल्स लॉकर रूम के ख़ुलासे ने भी यही प्रश्न खड़े किये थे कि बच्चों का संसार खिलने से पहले ही विकृत क्यों होता जा रहा है? उन्हें हिंसा/ हिंसक बातें सहज क्यों लगने लगी हैं?

यह प्रश्न केवल मोदी जी या किसी दल से जुड़ा नहीं है बल्कि देश की एकता, अखंडता और अस्मिता भी दांव पर है. इसलिए यदि आप आदरणीय मोदी जी के विरोधी हैं तब भी इस घटना से आपको प्रसन्न नहीं होना चाहिए और यदि यह किसी पोषित विचारधारा का हिस्सा है तो इसका खुलकर विरोध करना चाहिए क्योंकि जो बात किसी एक बच्चे ने अनायास ही कह डाली वो न जाने कितनों के दिमाग में कूट-कूटकर भर दी गई होगी.
यह घटना उदास करती है, विचलित करती है, चिंतित करती है और नई पीढ़ी के प्रति आश्वस्ति पर प्रश्नचिह्न भी लगाती है पर हमें निराश नहीं होना है. कुछ पल ठहरिये, सोचिये, मनन कीजिये. अपने आसपास के माहौल पर नज़र रखिये और जहाँ भी ऐसी मानसिकता से लबरेज़ कोई बच्चा मिले तो उससे बात कीजिये. आवश्यकता हो तो उसे सुधार-गृह भेजें. बच्चे कच्ची माटी सरीखे होते हैं जो जैसा गढ़ दे. इसलिए उन्हें उचित सांचे में ढालना इस समय की पुकार है. ये उनके भविष्य और देश के वर्तमान का भी सवाल है.
- प्रीति 'अज्ञात'
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