गुरुवार, 11 जून 2020

Gujarat में संक्रमित शख्स, उसके परिवार की कहानी Unlock 1.0 का भयानक भविष्य है!


कोरोना वायरस जब दबे पाँव बिना दस्तक़ हमारे देश में घुस आया था, तब और अब की स्थिति में जमीन-आसमान का फ़र्क आ चुका है. उस समय हम सबके मन में भय से कहीं अधिक जोश था. दुश्मन को धूल चटाने का जोश! हम ये मानकर ही चलते हैं कि किसी में इतना दम ही नहीं जो हमें हरा सके! लेकिन अदृश्य से जूझने का अनुभव नहीं था हमें. हमने उसे कम आँका और बार-बार गलती करते रहे. शायद आत्मविश्वास की यही अधिकता हमें ले डूबी है. मार्च के महीने के वे आंकड़ें जो उँगलियों पर गिन लिये जाते थे, अब उनका हिसाब कैलकुलेटर पर लगने लगा है. संख्या दो लाख को पार कर चुकी है. कितने मरे, कितने जीवित, कितने संदिग्ध, कितनों की जाँच और कितने बिना जाँच के! ख़बर बस यही है. वायरस लौटकर भले ही न गया लेकिन जीवन पटरी पर लौटने लगा है. इस बात में दो राय नहीं कि देश की गिरती अर्थव्यवस्था में प्राण फूँकने की दरक़ार थी ही. लेकिन जनता अति उत्साह में भर इस तरह अपना आपा खो देगी, इसका इल्म क़तई नहीं था! बिना मास्क के घूमते लोग, मिलने-मिलाने या तफ़रीह के लिए बस यूँ ही भटकते लोग हर जगह देखे जा रहे हैं. ऐसा लगता है कि अनलॉक-1 को इन्होंने कोरोना वायरस पर जीत की तरह ले लिया है. चार लॉकडाउन (lockdown) के बाद ये पिंजरे में क़ैद किसी पक्षी की तरह व्यवहार कर रहे हैं जिसे अचानक ही उड़ने को सारा आकाश मिल गया हो.
अहमदाबाद में इस समय जो मंज़र है,  दुआ करती हूँ ऐसा किसी शहर में  न हो. जबकि आज ही ये ख़बर भी सुनी है कि दिल्ली और NCR में भी कमोबेश यही स्थिति है. देश के शेष हिस्सों में भी कहाँ सुकून है! मरीज़ों की संख्या इस हद तक बढ़ चुकी है कि अस्पतालों ने अपने दरवाज़े लगभग बंद ही कर लिए हैं. शुरुआत में सरकारी अस्पतालों की स्थिति और व्यवस्था दोनों बेहतर थी लेकिन अब वहाँ जाने के नाम पर लोग हाथ जोड़ लेते हैं. वैसे भी अब सरकारी और निजी दोनों ही अस्पतालों में बेड का मिलना असंभव सा होने लगा है. जान लीजिये कि आपके परिवार में भले ही कोई कोरोना पॉजिटिव हो, बाकियों में लक्षण हों लेकिन test तब तक नहीं होगा जब तक कि उन्हें सुनिश्चित न हो जाए कि आप पॉजिटिव ही निकलेंगे. आपको एक परिवार की कहानी बताती हूँ–

मरीज़ की ज़ुबानी
Covid-19 का परीक्षण कराना आसान नहीं रहा. प्राइवेट हॉस्पिटल एक टेस्ट का तीस हज़ार (30,000) रूपये तक चार्ज कर रहे हैं. नाम तो कोरोना का, पर मरीज़ के प्रवेश करते ही उन्हें अपनी सारी मशीनों के उपयोग का उम्मीदवार दिख जाता है. फिर CT Scan, Echo और जितने भी टेस्ट संभव हैं सबकी उपयोगिता बताते हुए मरीज़ को डराया जा रहा है. बात इतने पर भी नहीं रूकती. जैसे ही पॉजिटिव निकला, उसे बेड (Bed) न होने की असमर्थता जता दी जाती है. मानकर चलिए यदि आप एक संभावित मरीज़ हैं तो दो दिन केवल परीक्षण के लिए भटकेंगे, उसके बाद तीन दिन हॉस्पिटल की खोज में गुजर जायेंगे. भटकने की इस प्रक्रिया में आप कितने लोगों के संपर्क में आकर उन्हें संक्रमित कर सकते हैं, इस बात से किसी को कोई लेना-देना नहीं! यह भी गाँठ बाँध लीजिए कि निजी अस्पताल एक दिन के पच्चीस हज़ार रुपए (25,000) तक चार्ज कर रहे हैं. अब पंद्रह दिन तो वहां रुकना ही पड़ेगा तो जरा अपना बैंक अकाउंट देख लीजिए कि क्या आपमें इतना खर्चा करने की हिम्मत है? दिल्ली में आठ लाख का पैकेज है.

घर की दुर्दशा 
मरीज़ को हॉस्पिटल ले जाते समय घर के बाहर ताला मार दिया गया. जब उन्हें ये कहा गया कि घर में एक वर्ष से भी कम उम्र का छोटा बच्चा है तो यह कहकर तसल्ली दी गई कि “अरे, हम हैं न! आप इस नंबर पर कॉल कर लेना.” पच्चीसों कॉल किये गए, लेकिन कुछ उठाये नहीं गए और कुछ में यह कह दिया गया कि “अभी इन साहब को बताते हैं.” साहब से साहब तक बात घूमती रही लेकिन 36 घंटे तक किसी ने संपर्क करना आवश्यक नहीं समझा. उसके बाद आये और ताला खोल दिया गया. ताला लगाना और खोलना, दोनों ही बेतुका है. यहाँ एक अच्छी बात जोड़ना चाहूँगी कि इस परिवार को पाँच दिन की दवाइयाँ दे दी गईं थीं. घर के दो अन्य सदस्यों में संक्रमण के कुछ लक्षण दिख रहे थे.
समाज का वही रवैया रहा जो ज्यादातर केसेस में देख ही रहे हैं कि आपको अपराधी मान लिया जाता है. कुछ मित्र बिल्डिंग तक सामान पहुँचा गए. घर में जा नहीं सकते थे. अब दरवाज़े तक उस सामान को सोसाइटी का ही कोई सदस्य पहुँचा सकता था. सबने हाथ खड़े कर दिए और वाचमेन ने भी साफ़ इंकार कर दिया. 

सस्पेक्ट का हाल
जब एक सदस्य का बुखार बढ़ने लगा तो सौ मिन्नतों के बाद जाँच के लिए ले जाया गया. यहाँ कोरोना पॉजिटिव मरीजों के साथ ही उन्हें रखा गया. बाथरूम, बेसिन सब कॉमन शेयर करने थे. तबियत में सुधार हुआ तो  होम क्वारंटाइन की हिदायत देकर घर भेज दिया गया. उनकी रिपोर्ट नेगटिव आई है. क्या कोरोना सस्पेक्ट और पॉजिटिव को एक साथ रखना सही है? क्या इससे संक्रमण फैलने की आशंका और बढ़ नहीं जाती?

चेत जाइए 
मानकर चलिए कि यदि आप कोरोना से पीड़ित हो जाते हैं तो संघर्ष का एक ऐसा भीषण दौर शुरू हो जायेगा जो आपका पूरा जीवन उलट-पुलट कर देगा! आप बेधड़क घर से बाहर निकल रहे हैं तो ये वायरस गला दबोचने को ही तैयार बैठा है. केंद्र या राज्य सरकारों पर आरोप लगा लेने से कुछ हल नहीं निकलेगा. वो रोज़ आपके मुँह पर मास्क नहीं बाँध सकते हैं. अपनी सुरक्षा हमें स्वयं ही करनी है. संक्रमण का खतरा हर जगह है, हर किसी से है. 
अब दोबारा सोचिए कि जान कैसे बचेगी? क्या पूरी सावधानी एवं सुरक्षा के बिना घर से बाहर निकलना, जान से भी ज्यादा जरुरी है? मास्क कोई हेलमेट नहीं है कि कहीं भी अटकाया और चल पड़े. ये जीवन है आपका, जिस पर आपका परिवार भी निर्भर करता है. अपना नहीं तो उन अपनों का सोचिए जिनकी ज़िंदगी आपसे जुड़ी है. कहीं आपकी तफ़रीह और अनावश्यक जोश उनकी ख़ुशियों का बलिदान न ले ले!
- प्रीति ‘अज्ञात’
#coronavirus #the_real_story #Ahmedabad #iChowk #Gujarat

5 टिप्‍पणियां:

  1. कोविड के नाम पर अस्पतालों का सच, भयावह स्थिति सच में डरा रही है।
    मौत के डर से ज्यादा तो गिंजन का डर लगने लगा।
    सुरक्षा से बढ़कर कोई उपाय नहीं।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ जून २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. आपके अहमदाबाद में ही नहीं यह स्थिति शायद हर शहर में है .. यहाँ पटना (बिहार) में तो लोग रास्ते में आम दिनों की तरह ही बिना मास्क के और ऊपर से मुँह पर बिना रुमाल या हाथ रखे छींकते-खाँसते चल रहे हैं,खैनी-गुटखा खा कर या यूँ भी रोड पर पच्च-से थूकना आम बात है पहले की तरह .. आप को ही बच कर गुजरना होता है ...
    रिक्शा या ठेला वाला तो खैर माना जा सकता है कि अनपढ़ है, जागरूक नहीं है, पर तथाकथित सभ्य लिबास वाले, लाल टीकाधारी या मंहगे कार से उतरते लोग भी यही सब करते नज़र आते हैं तो लगता है कि जागरूकता डिग्री या दौलत की मोहताज़ नहीं है .. शायद ...

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  4. सही बात कही है अपने ,हमारे अहमदाबाद में हालत बहुत खराब है ,स्वयं को बचकर रहना होगा ।

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