'प्यार' बड़ा ही अनमोल सा शब्द लगता है, सिर्फ़ तभी तक; जब तक हुआ न हो. कुछ फिल्मों का प्रभाव और कुछ कल्पनाओं की उड़ान जब एक साथ परवान चढ़ते हैं. तो होशो-हवास ही गुम हो उठते हँ. मन अपने प्रिय के विचारों में खोया रहता है. चाहे . उम्र के किसी भी दौर में हो, पर असर वही रहता है. सोते-जागते, खाते-पीते, पढ़ते-लिखते कमोबेश हर वक़्त एक वही चेहरा जेहन में छाया रहता है. दुनिया उसी के आसपास ही सिमट आई हो जैसे, समझ ही नहीं आता कि इसे उस शख़्स को कैसे बयाँ किया जाए. कभी आसमाँ से भी ज़्यादा, कभी ज़िंदगी से भी ज़्यादा, तो कभी खुदा की बंदगी सा लगने लगता है इश्क़. पर इस मोहब्बत को अगर कायम रखना है, तो यहीं पर रुक जाना चाहिए......
एक बार इज़हार-ए-मोहब्बत कर दिया, बस उसी पल से हक़ीक़त की मुश्किल ज़मीं से सामना होना शुरू हो जाता है. अपेक्षाएँ जुड़ने लगती हैं और उन्हीं सही-ग़लत सी अपेक्षाओं के पूरा न होने पर दर्द पनपता है, जो कभी ईर्ष्या तो कभी अवसाद के रूप में आँखों से रिसा करता है. खुशकिस्मत हैं वो लोग, जिनके प्यार को उनके हर दर्द का अहसास हुआ करता है और वो उसकी खुशी के लिए अपने व्यस्त लम्हों में से कुछ पल चुरा लिया करते हैं.
वरना उम्र-भर का वादा निभाने का दावा करने वालों को भी प्राप्य के बाद कोफ़्त होने लगती है, उसी इंसान की बातों से; जिसके साथ घंटों वक़्त का पता तक न चलता था. घुटन देने लगता है उन्हें वही साथ; जो कभी सुकून हुआ करता था.जिन शब्दों और भावों की तारीफ़ में वो कसीदे पढ़ते नहीं थकते थे, अचानक वही बेहद बचकाने और अपरिपक्व लगने लगते हैं. उन्हें एक ही झटके में अनदेखा, अनसुना कर दिया जाता है. कहते हैं, प्यार का दर्द बड़ा मीठा हुआ करता है, लेकिन ये भी तो सच है कि इस मिठास को सहन करने की भी एक सीमा होती है. वरना अंत में अक़्सर ही लोग ये क्यूँ कहा करते हैं...इश्क़ वही है, जो मैंने उससे किया और उसने किसी और से, और रह गया ये सिर्फ़ एकतरफ़ा जुनून बनकर, हाँ, जुनून ! जिसकी अगली सीढ़ी पर पागलपन आपका इंतज़ार कर रहा होता है...जाइए, अगर हालातों ने यहाँ तक पहुँचा ही दिया है, तो मिल लीजिए इससे भी. ख़ुदा, आप सभी को सलामत रखे और किसी के इश्क़ में गिरफ्तार भी. जीने की यह एक खूबसूरत वजह भी तो है, न !
."कैसा ये इश्क़ है,
ग़ज़ब का रिस्क़ है".
प्रीति 'अज्ञात'
एक बार इज़हार-ए-मोहब्बत कर दिया, बस उसी पल से हक़ीक़त की मुश्किल ज़मीं से सामना होना शुरू हो जाता है. अपेक्षाएँ जुड़ने लगती हैं और उन्हीं सही-ग़लत सी अपेक्षाओं के पूरा न होने पर दर्द पनपता है, जो कभी ईर्ष्या तो कभी अवसाद के रूप में आँखों से रिसा करता है. खुशकिस्मत हैं वो लोग, जिनके प्यार को उनके हर दर्द का अहसास हुआ करता है और वो उसकी खुशी के लिए अपने व्यस्त लम्हों में से कुछ पल चुरा लिया करते हैं.
वरना उम्र-भर का वादा निभाने का दावा करने वालों को भी प्राप्य के बाद कोफ़्त होने लगती है, उसी इंसान की बातों से; जिसके साथ घंटों वक़्त का पता तक न चलता था. घुटन देने लगता है उन्हें वही साथ; जो कभी सुकून हुआ करता था.जिन शब्दों और भावों की तारीफ़ में वो कसीदे पढ़ते नहीं थकते थे, अचानक वही बेहद बचकाने और अपरिपक्व लगने लगते हैं. उन्हें एक ही झटके में अनदेखा, अनसुना कर दिया जाता है. कहते हैं, प्यार का दर्द बड़ा मीठा हुआ करता है, लेकिन ये भी तो सच है कि इस मिठास को सहन करने की भी एक सीमा होती है. वरना अंत में अक़्सर ही लोग ये क्यूँ कहा करते हैं...इश्क़ वही है, जो मैंने उससे किया और उसने किसी और से, और रह गया ये सिर्फ़ एकतरफ़ा जुनून बनकर, हाँ, जुनून ! जिसकी अगली सीढ़ी पर पागलपन आपका इंतज़ार कर रहा होता है...जाइए, अगर हालातों ने यहाँ तक पहुँचा ही दिया है, तो मिल लीजिए इससे भी. ख़ुदा, आप सभी को सलामत रखे और किसी के इश्क़ में गिरफ्तार भी. जीने की यह एक खूबसूरत वजह भी तो है, न !
."कैसा ये इश्क़ है,
ग़ज़ब का रिस्क़ है".
प्रीति 'अज्ञात'
इश्क और रिस्क का अन्योनाश्रय संबंध :)
जवाब देंहटाएंहोता है न ? :)
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