"तू ना जाने आसपास है, ख़ुदा"....कितना खूबसूरत गीत है. उदासी के लम्हो में किसी के भी दिल को झकझोर के रख देने की पूरी काबिलियत है, इसके अल्फाज़ों में. गीत- संगीत के बिना जीवन ?? कोई सोच भी नहीं सकता !! इतनी आसानी से गानों ने हर एक की ज़िंदगी में प्रवेश कर लिया है...कि गाए हुए हर शब्द को हम खुद से जोड़ लिया करते हैं. मस्ती वाला गाना हो तो मन मयूर हो नाच उठता है, रोमांटिक गानों का तो कहना ही क्या..सिवाय खुद के किसी और की तो कल्पना करने से भी पाप लगता है जी ! और जब गमगीन हो, फिर तो ग़ज़ब ही समझो...चेहरा यूँ लटक जाता है, जैसे दोनों गालों पे किसी ने दस-दस किलो वज़न टाँग दिया हो !!
अरे, पर मुद्दा तो ये है ही नहीं...हां, तो दो-तीन दिन पहले मैं बेहद खराब और उदासी वाला लुक लेके इस गाने को सुने जा रही थी. कि अचानक ही पेड़ के नीचे बैठे बिना जैसे ज्ञान की प्राप्ति हो गई. वातावरण में बिज़ली सी कौंधी , दिमाग़ में घंटियाँ बज उठीं.....सारा माहौल खुशनुमा हो गया. हां, जी हमें इस गाने का सीधा तात्पर्य जो समझ में आ गया. उफ़,ओ..तो ये बात है..हा-हा-हा....!!
अजी, ये गीत तो भारत सरकार द्वारा जनहित में जारी होना चाहिए. हर शहर, हर गली-मौहल्ले, हर चौराहे पर दिन-रात बजना चाहिए. जिससे आम जनता भी इस चेतावनी को समझ सके और अपने बचाव में खुद आगे आए. आप खुद ही देख लीजिए.....
"तू ना जाने, आसपास है...खुदा"
अरे, इसका इशारा हमारी सड़कों पर पाए जाने वाले गोल-मटोल प्यारे-प्यारे गड्ढों से है. तो जी, ज़रा संभल के ! फिर ना कहना कि हमने सावधान नहीं किया !!
आगे की लाइन...."तेरी क़िस्मत तू बदल दे "
कवि कहना चाहते हैं, कि तू ऐसा बंदा है,जिसका कोई भरोसा नहीं, ना जाने कब अपनी टाँगें खुद ही तोड़ दे. इसलिए आँखें खोल के चल !
"रख हिम्मत साथ चल दे"
कवि ने पुनः समझाने की कोशिश की है, कि अगर गिर भी गया है तू, तो 'इट्स ओके, बेटा ! पर भविष्य में अपना ध्यान रखना, दोबारा ऐसी ग़लती ना हो !
"मेरे साथी, तेरे कदमों के हैं निशान"
कविराज आगे कहते हैं..कि ये जो मिट्टी पर निशान देख रहे हो, ये उन बेचारी अभागी चप्पलो के हैं, जिन्होनें यहीं अपना सफ़र ख़त्म किया !
इसलिए, हे ख़ुदा की बनाई इस दुनिया के नमूनों....डरो मत ! ये अपना ही देश है, गड्ढों से मत घबरा, एक दिन ये ज़रूर भरेंगे. बस, ज़रा लोगों की ज़ेबें तो भर जाने दे ! " इक दिन आएगा, गड्ढा भर जाएगा......."
इससे पहले कि इस गाने के गीतकार हमारे ख़िलाफ फ़तवा जारी कर दें, हम तो निकल लेते हैं, उनसे क्षमा-याचना सहित ! हमारा इरादा, किसी को चोट पहुँचाना नहीं, बल्कि उन उदासी भरे लम्हों में घिरे कुछ अपनों के चेहरे पे मुस्कान लाना है ! ठीक ऐसे ही, जैसे आप अभी मुस्कुरा उठे...!
प्रीति 'अज्ञात'@ :)))))))))))))))))))))))
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