रविवार, 5 अप्रैल 2020

हम 98 प्रतिशत वाले समूह में ही आते हैं

चीन से शुरू होकर Covid-19 ने जब यूरोप में पाँव पसारने प्रारम्भ कर दिए थे तब देशवासियों ने इसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया था. जब 22 मार्च के लॉकडाउन की घोषणा हुई तब कहीं जाकर लोगों को वस्तुस्थिति का सही अनुमान हुआ. उसके बाद जैसे-जैसे कोरोना  पीड़ितों की संख्या में वृद्धि होती गई, सबके चेहरों पर भय के बादल मँडराने लगे. एक ऐसी बीमारी जो संक्रामक है और जिसकी मृत्यु दर 2 या 3 फ़ीसदी ही है; उसने अपने ही लोगों के बीच लक्ष्मण रेखा खींच दी है. यह एक ऐसी विवश स्थिति है जिसका दर्द हर कोई महसूस कर रहा है. 

विश्व भर से ऐसी तमाम तस्वीरें और वीडियो आ रहे हैं जिसमें डॉक्टर, नर्स, पुलिस एवं कई आवश्यक विभागों से जुड़े लोग अपने ही परिवारों के सदस्यों से मिल नहीं पा रहे. किसी में पिता नम और लाचार आँखों से घर के दरवाजे पर खड़ा हो बच्चों को निहार भर सकता है लेकिन यह बीमारी उसे आगे बढ़कर बच्चों को गले लगाने की इज़ाज़त नहीं देती! इससे मनहूस पल किसी व्यक्ति के जीवन में और क्या हो सकता है! उसके बाद अगली ख़बर मिलती है कि दो मासूम बच्चों की माँ जो हॉस्पिटल में संभावित मरीज़ के तौर भर्ती हुई थी, कभी लौट ही न सकी. अंतिम समय में किसी से भी न मिल पाई बस वाकी-टॉकी पर अपने लाड़लों की आख़िरी बार आवाज ही सुनी उसने और दुनिया को अलविदा कह दिया! यह मार्मिक कहानी पत्थर दिल को भी तोड़कर रख दे. 

यह इस बीमारी की क्रूरता ही है कि आज जो मनुष्य हँस-बोल रहा है, फ़्लू जैसे symptoms होते ही वह 'संदिग्ध' की श्रेणी में आ जाता है और एक ही पल में उसे समाज से अलग होना पड़ता है. मैं फिर याद दिला रही हूँ कि 98% मरीज़ बच जाते हैं लेकिन वे अभागे जो 2% में आते हैं कभी घर नहीं लौट पाते! संक्रमण के भय से उनकी लाश तक नहीं दी जा सकती!
मृत्यु का भय, मनुष्य को जीते-जी मार देता है और मुसीबत की घड़ी में वह स्वयं के लिए सबसे बुरा ही सोचता है.कुछ क्षेत्रों से संभावित संक्रमित लोगों का भागना इसी ओर इंगित करता है कि वे ये मानकर ही चल रहे हैं कि बचेंगे नहीं और इसीलिए अपने घरवालों के साथ ही रहना चाहते हैं. एक-दो स्थानों पर मरीज़ भाग गए या किसी ने कूदकर आत्महत्या कर ली. बहुतों ने सच भी छुपाया. लेकिन ये सब बीमारी से बचने के उपाय नहीं हैं. अपना मेडिकल टेस्ट कराना और उचित समय पर इलाज़ ही इसे महामारी के रूप में फैलने से बचा सकता है. अधिकांश केसेस में तो बीमारी निकलेगी ही नहीं और आपको शीघ्र ही डिस्चार्ज कर दिया जाएगा. 

समाज को भी चाहिए कि वे रोगी के प्रति पूरी सद्भावना एवं  संवेदनशीलता बरते तथा अपना व्यवहार सकारात्मक रख उसे जीवन के प्रति आशावान बनाये.कौन जाने कल किसका नंबर लग जाए! इसीलिए सबसे प्रेम से पेश आयें, उन सभी लोगों को धन्यवाद दें जिन्होंने मुश्क़िल घड़ी में आपका साथ दिया. उन सभी को माफ़ कर दें जिन्होंने आपका दिल दुखाया हो कभी. यह समय हमारी मानवता को जीवित रखने का है, उस अहसास का है कि एक अदृश्य वायरस भी हमारे अस्तित्व को अनायास ही बौना कर देता है, यह उस चिंतन और मनन का भी समय है कि हमारे जीने का उद्देश्य क्या है और एक नागरिक के रूप में हम देश और समाज को क्या दे सकते हैं! यह Covid-19 के प्रति जागरूक और स्वयं के लिए सचेत रहने का भी समय है. इसके लिए आवश्यक है कि हम आवश्यकतानुसार  मास्क पहनें, स्वच्छता सम्बन्धी सारे नियमों का आज और भविष्य में भी पालन कर अपनी इम्युनिटी बढ़ायें, और इस विश्वास को भी क़ायम रखें कि हम 98 प्रतिशत वाले समूह में ही आते हैं. 

एक श्लोक पढ़ा था कहीं -
प्रार्थयामहे भव शतायु: ईश्वर सदा त्वाम् च रक्षतु
पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जय जीवनम् तव भवतु सार्थकम् 
(ईश्वर सदैव आपकी रक्षा करे, आप समाजोपयोगी कार्यों से यश प्राप्त करें,आपका जीवन सबके लिए कल्याणकारी हो, हम सभी आपके लिए यही प्रार्थना करते हैं).
-प्रीति 'अज्ञात'
#Lockdown_stories8 

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