शनिवार, 4 अप्रैल 2020

ओल्ड इज़ गोल्ड

इन दिनों चैनल्स नए एपिसोड्स की शूटिंग न हो पाने के कारण जैसे-तैसे एडजस्ट कर रहे हैं. इसी अवसर का सुनहरा लाभ लेते हुए दूरदर्शन ने अपने पॉपुलर, ब्लॉकबस्टर सीरियल्स का पुनर्प्रसारण प्रारम्भ कर दिया है. दशकों बाद लोग दूरदर्शन की ओर लौट रहे हैं और बाक़ी प्राइवेट चैनल्स खाली हाथ होने के कारण टी.आर.पी खोते जा रहे हैं क्योंकि उनके पास टक्कर देने के लिए कुछ है ही नहीं! जो सीरियल्स सुपर हिट हुए भी, वे इतने नए हैं कि तुरंत ही कोई उनका रिपीट टेलीकास्ट नहीं देखना चाहता. दर्शकों को एक गैप तो चाहिए ही न भूलने के लिए! यद्यपि चैनल्स के पास उन्हें ही दिखाते रहने के अलावा फ़िलहाल और कोई विकल्प भी नहीं है.

इधर रामायण, महाभारत जैसे धारावाहिक पुनः प्रसारित कर दूरदर्शन अपनी खोई हुई साख़ को फिर से प्राप्त कर रहा है. दर्शक बीते दिनों को याद कर भाव-विभोर हो रहे हैं. कर्फ्यू पहले से ही लगा है. आना-जाना हो नहीं सकता! इसलिए जो घरों में हैं वे कोरोना वायरस को भूल इन धारावाहिकों संग छुट्टियों का आनंद लेने में मगन हैं. ऐसे में लग रहा है कि ये लॉकडाउन दूरदर्शन के लिए वरदान सिद्ध हुआ है और उसके सुनहरे दिन लौट आये हैं. वो कहते हैं न, 'ओल्ड इज़ गोल्ड'.  
एक समय था, जब रामायण और महाभारत के समय देश में कर्फ्यू-सा माहौल हो जाता था. यह भी एक संयोग ही है कि अब लॉकडाउन के दिनों में भी सड़कें वैसी ही सूनी हैं.

प्रसार भारती ने हर वर्ग के दर्शकों को प्रसन्न रखने की पूरी तैयारी कर ली है. बच्चों के लिए सुपरहीरो 'शक्तिमान' है तो युवाओं के लिए अजीज़ मिर्ज़ा-कुंदन शाह निर्देशित 'सर्कस' आकर्षण का केंद्र हो सकता है जिसमें वे अपने प्रिय हीरो शाहरुख़ ख़ान के शुरूआती अभिनय की झलक देख सकेंगे. इसमें अभिनेत्री रेणुका शाहाणे और आज के निर्देशक आशुतोष गोवारीकर ने भी उनका साथ दिया था.
'श्रीमान श्रीमती', हास्य के कलेवर से जड़े वैवाहिक जीवन के हसीन किस्से दिखा रहा है तो वहीं उन दिनों के रोमांस को समझने के लिए 'बुनियाद' से बेहतर कुछ नहीं. मनोहर श्याम जोशी द्वारा लिखित और रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित यह धारावाहिक विभाजन की पृष्ठभूमि और संयुक्त परिवार पर आधारित था. इसने टीवी की दुनिया में सफ़लता के नए आयाम स्थापित किये थे. कहानी के मुख्य पात्र हवेलीराम और लाजो जी का चेहरा आज भी दर्शकों के ज़हन में बसा हुआ है. 'देख भाई देख', कॉमेडी की भरपूर डोज़ लेकर हाज़िर हुआ है तो बुद्धिजीवी 'चाणक्य' के लिए समय निकाल सकते हैं. इतने सबके बाद भी दर्शकों की फ़रमाइशें बढ़ती ही जा रही हैं.

तक़नीक़ एवं गुणवत्ता की दृष्टि से तब और अब के समय में काफ़ी अंतर आ चुका है इसलिए संभव है कि वर्तमान पीढ़ी को यह सब थोड़ा बचकाना और आउटडेटेड लगे लेकिन अच्छा है इस बहाने उस समय के हेयर स्टाइल, चश्मे के फ्रेम, कपड़े, डायलॉग डिलीवरी और परिवारों के जीने के अंदाज़ को भी जान-समझ पायेंगे. 
वे नागरिक जो इस समय घर पर हैं और पुरानी दिनचर्या से अभी दूर हैं, उनके लिए यही एक अवसर है इस नॉस्टाल्जिया में लौटने का. 
उम्मीद है, लॉकडाउन हट जाने के बाद भी दर्शकों का यह प्रेम यथावत रहेगा और दूरदर्शन अपनी पुरानी बुलंदियों को पुनः प्राप्त करेगा. 
-प्रीति 'अज्ञात'
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