शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

यह शहर कभी हारता नहीं!

इस कोरोना वायरस से लड़ते-लड़ते हम सबको एक माह से अधिक हो गया है, लेकिन केसेस की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. राज्य प्रशासन और सरकार सभी इस मुद्दे को लेकर चिंतित हैं और जो बन पड़ा; कर भी रहे हैं. विभिन्न संगठनों और व्यक्ति विशेष ने भी इस युद्ध में अपनी भागीदारी निश्चित की है लेकिन समस्या सुधरने के स्थान पर और जटिल होती जा रही है. ऐसे में चूक कहाँ हो रही है? क्या हमसे ही? यदि हाँ, और अब न संभले तो आगे संभल पाना बहुत मुश्क़िल होगा. क्या हम कुछ दिनों के लिए घर नहीं बैठ सकते? जो भी किचन में है उसी से काम नहीं चला सकते? जब जीवन का सवाल है तो दाल-रोटी भी इसके लिए काफ़ी है. समय साथ देगा तो आगे व्यंजन भी मिलेंगे पर हमेशा के लिए घर में क़ैद होने से बचना है तो अभी हमें समय के साथ चलना ही पड़ेगा.

देश-दुनिया में कहीं, कुछ  भी बुरा हो तो तक़लीफ़ होना स्वाभाविक है लेकिन जब आग अपने घर तक पहुँच जाए तो पीड़ा और भी बढ़ जाती है. आज मेरा अहमदाबाद ख़बरों में है. 
अब तक अहमदाबाद शहर में 1,638 कोरोना वायरस पॉजिटिव मामले सामने आए हैं जो गुजरात में सबसे ज्यादा है. महाराष्ट्र के बाद देश में दूसरे स्थान पर गुजरात ही है. अहमदाबाद नगरपालिका आयुक्त (म्युनिसिपल कमिश्नर) विजय नेहरा ने एक वीडियो संदेश में बताया कि इनमें से 75 मरीजों की मृत्यु हो गई और 105 स्वस्थ हो चुके हैं. शेष मामले सक्रिय हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि "वर्तमान में, अहमदाबाद में COVID-19 के दोहरीकरण की दर चार दिन है, जिसका अर्थ है कि मामले हर चार दिन में दोगुने हो जाते हैं. यदि यह दर जारी रहती है, तो हमारे पास 15 मई तक 50,000 मामले और 31 मई तक लगभग 8 लाख मामले होंगे."

मैं इस शहर को पिछले बीस वर्षों से जानती हूँ. इस शहर के उत्सवों की साक्षी रही हूँ. यहाँ नवरात्रि के नौ रंग देखे तो पतंग की डोर चढ़ आसमान चूमते हौसले भी. उत्तरायण की मीठी जलेबियों और पूरी उन्धियु का स्वाद भी अभी जुबां से गया नहीं है!  इस शहर में रहने से कहीं ज्यादा जिया है मैंने इसे. यह त्योहारों को सीने से लगाकर चलने वाला शहर है जो गरबा में किसी अज़नबी के हाथों में भी डांडिया थमा अपने दिल के घेरे को थोडा और चौड़ा कर देता है. यहाँ मिठास सिर्फ़ खाने में ही नहीं, व्यवहार में भी बसती है.
मैंने यहाँ की बाढ़ भी देखी और भूकंप भी. कभी लाशों के ढेर पर सिसकते तो कभी दंगों की आग से झुलसते इस शहर को देख बार-बार आँखें नम की हैं लेकिन उसके बाद मदद को आगे आये लाखों हाथ भी देखे, संवेदनशीलता देखी और यह जाना कि जूझना, उठना और फिर चल पड़ना किसे कहते हैं! दूसरों के जीवन को संवारने का ज़ज़्बा मुझे इसी शहर ने सिखाया है. इसलिए इतना अवश्य जान गई हूँ कि यह शहर कभी हारता नहीं! इसे पूरे दिलोजान से जीना आता है! हर कठिनाई को पार कर आगे बढ़ने की जो क्षमता है न इसमें; उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वो कम है. अहमदाबाद और उल्लास, ये दोनों ट्रेन की पटरियों से साथ ही चलते हैं सदा.

मैं जानती हूँ कि आवश्यक सेवाओं के अतिरिक्त सभी काम बंद हैं. व्यापारियों को लाखों का नुकसान भी हो रहा होगा लेकिन जब सोचती हूँ कि गली के मोड़ पर जो मोची बैठता था उसका चूल्हा आज जला कि नहीं! कपड़े रिपेयरिंग करने वाले काका के पास खाने लायक़ पैसा तो जमा होगा न अभी! वो चाकू की धार तेज करने वाला और आज के जमाने में भी प्लास्टिक के दस-दस रूपये के सामान बेचते ठेले वाले का क्या हुआ! तब मुझे सारे बड़े दुःख बेहद बौने लगने लगते हैं. इसलिए जब तक ये संकट टल नहीं जाता ये हमारी ही जिम्मेदारी है कि अपनी सामर्थ्य से जिसके लिए जो और जितना बन पड़े, करें. लोगों को समझाएं, हेल्पर्स को न बुलाएं और न ही उनकी सैलरी काटें. इससे न केवल उनको ही तसल्ली मिलेगी बल्कि आपकी यह भलाई आपको भी संतुष्टि देगी. जरा सोचिये, जब बाद में कभी आप अगली पीढ़ी को इस संकटकाल की कहानियाँ सुनायेंगे और वे आपसे पूछेंगे कि "जब देश कष्ट में था तो आपने क्या किया?" तो उस समय आप शर्मिंदा होने की बजाय शान से कहेंगे कि "मैंने उन सभी की सहायता की जो मुझ पर निर्भर थे." बस इतना ही तो करना है हम सबको कि जो हम पर निर्भर हैं, उन्हें यह विश्वास दिलाएं कि हम उनके साथ खड़े हैं और वे घर से बाहर न निकलें.

अहमदाबाद ही क्यों, गुजरात ही क्यों, भारत ही क्यों, सम्पूर्ण विश्व को यही सोचना है कि हमने इस लड़ाई में अपना क्या योगदान दिया या दे सकते हैं! मैं जानती हूँ कि हम सब हारेंगे नहीं! बस कुछ ही दिनों की बात है ये. निकल जाएगा ये दौर भी और एक दिन हम सब अपनी पुरानी दिनचर्या में लौट इन पलों के किस्से गढ़ रहे होंगे.
न घबराना है और न हताश होना है हमें. बस अपना और अपनों के स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखना है.
- प्रीति 'अज्ञात'
https://www.ichowk.in/society/coronavirus-cases-in-ahmedabad-city-and-its-will-to-fightback/story/1/17408.html
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