बुधवार, 1 अप्रैल 2020

कोरोना! तुम्हें करीना की हाय लगेगी!

लॉकडाउन के इस समय में तमाम तरह के स्टेटस लिखे जा रहे हैं. एक जो सबसे अधिक देखने में आ रहा, वो है 'कमेरे पतियों' का वीडियो या तस्वीर. यक़ीन मानिए कि यह सौहार्द्रपूर्ण भाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से ही बनवाया जा रहा है और जितनी देर का वीडियो है, काम उससे एक सेकंड भी ज्यादा नहीं किया गया है. अपवाद अवश्य हो सकते हैं लेकिन बहुमत ड्रामेबाजों का ही है. भारतीय पुरुष कितने भी समझदार हो चुके हों लेकिन अपने पैरों पर यूँ कुल्हाड़ी नहीं मारते! उल्टा घर बैठे, 'जरा चाय बना दे', 'ये कर दे, वो कर दे' करने में भरपूर आस्था  रखते हैं. इनकी काम करती तस्वीरें ठीक उतनी ही भ्रामक हैं जितनी कि स्त्रियों की बेलन से मारने वाली या घर में न घुसने देने वाली बात है. समाज इतना भी आगे नहीं बढ़ गया है कि स्त्रियों के हाथ में हथियार भी दे और उसके प्रयोग की हिम्मत भी.
कोई सब्जी काट रहा, कोई रोटी बना रहा, कोई कपड़े धो रहा...ये सब 'समय बिताने के लिए करना है कुछ काम' की टैग लाइन के साथ भले ही दिखें पर असल में 'फोटो अपलोड के लिए किये प्रपंच तमाम' ही हैं. यह ठीक वैसी नौटंकी है जैसी कि कई स्त्रियाँ जब किसी प्रोग्राम में दर्शक बनकर जाती हैं और उसकी समाप्ति के बाद मंच पर चढ़, माइक हाथ में ले यूँ फोटो अपलोड करती हैं जैसे कि 'बीज वक्तव्य' उन्होंने ही दिया हो.

और ये जो 'पति घर में हैं', 'बड़ा अच्छा लग रहा जी' केवल चार दिन की अनुभूति है. पांचवें दिन से अखरने लगता है. जब सुबह के नाश्ते के चक्कर में सखियों से गॉसिप मिस हो रही, झाड़ू-पोंछा, कपड़ा, बर्तन के एसेन्शियल वर्क के कारण सोशल मीडिया से भी डिस्टेंस रखना पड़ रहा हो! गृहिणियों की परेशानी की तो हद नहीं! हेल्पर के न आने से आधी जान तो पहले ही सूख चुकी होती है. उस पर ताजा लगे पोंछे से कोई गुजर न जाए, इस पर भी कड़ी नज़र रखनी पड़ती है. हिन्दुस्तानी जनता है जी, मात्र कह देने भर से तो समझेगी नहीं! अच्छे से क्लास लेनी पड़ती है. तभी तो पोंछे के समय हर घर में दहशत वाला माहौल रहता है. बच्चा, फ़ोन पर अपने मित्र को कह रहा होता है, "हाँ, यार. वो प्रॉब्लम तो मैं सॉल्व कर दूँगा पर डायरी बैग में है. अभी पलंग से उतर नहीं सकता! मम्मी ने पोंछा मारा है." पति घबराते हुए पैर के अँगूठे के बल फ्लेमिंगो सा चलता आता है और जम्प मार गार्डन में पहुँच जाता है. सास जी सोफ़े के ऊपर पालथी मार बैठ जाती हैं कि कहीं फिनाइल में नहाया पोंछा उन्हें अपवित्र न कर दे. वैसे इसके पीछे यह मंशा भी रहती है कि कहीं बहू वो एक सेन्टीमीटर वाले स्थान में पोंछा लगाना भूल गई तो क़यामत न आ जाए!

झाड़ू के समय तो हम लोगों की यही कोशिश होती है कि उस समय रूम में कोई न हो. वरना झाड़ू पूरी होने से पहले ही, "हेहे जरा पंखा चालू कर जाना. बहुत गर्मी है." सुनते ही ऐसी आग लगती है कि "हाँ, जी पंखा काहे ए.सी. में बैठो! हम तो कैलाश पर्वत पर पसरे जलेबियाँ उड़ा रहे हैं न!" उस पर हर घर में ऐसा एक सदस्य भी जरुर ही होता है जो आपके कमरे से एन बाहर निकलने के समय ही टोककर कहे, "वो उधर, थोड़ा कचरा रह गया है."
आय-हाय! इन्हें दो-दो मीटर तक फैलाया अपना सामान तो आज तक न दिखा पर सुई की नोक सा कचरा फट से दिख गया!

खाने और बर्तन की तो बात ही न पूछो, ऐसा लगता है कि सिंक के आसपास कोई तांत्रिक का रचा काला साया है जिसके असर से ये हर एक घंटे बाद अठारह बर्तन उगल देती है. वैसे हम सबका जन्म इस धरती पर उपस्थित प्रत्येक पदार्थ खाने के लिए ही हुआ है, इस बात से भी पूर्ण सहमति है मेरी. इसलिए वे जिन्हें यह भ्रम/उम्मीद है कि स्त्रियाँ बड़ी स्लिम-ट्रिम हो जाएँगी, ऐसा कुछ नहीं है! मजूरों की तरह काम करने के बाद भूख भी डबल लगती है. तभी तो खाना हम अपने स्वादानुसार बनाते हैं. इस सबके अलावा भी कितने ही छोटे-बड़े काम, जिनकी गिनती ही नहीं! गीली टॉवल को सही जगह सुखाने और यहाँ-वहाँ पड़ी हुई चप्पलों को उनके मंत्रालय तक पहुंचाने के लिए कई बार फेफड़ों और स्वर नलिका पर अतिरिक्त दबाव बनाना पड़ता है. उफ्फ्फ़! बड़ी टफ लाइफ है जी अपनी! इन दिनों हम ईंट पर सिर रखकर ही सो जाएँ या किसी को दे मारें! गंभीरता से न सोचें, हमें ज्ञात है कि पहला विकल्प ही सेफ है जी!

वैसे भारतीय गृहिणियों का असल सच यही है कि चाहे दुकानें बंद हों, देश में कर्फ्यू लगे, लॉकडाउन हो या कि कोई तीज त्योहार..काम की दोहरी मार उन पर ही पड़ती आई है. ऐसे में जिन स्त्रियों को परफ़ेक्शन के साथ हर कार्य करने की आदत है, उनकी हालत तो और भी ख़राब हो जाती है. उस पर उन्हें 'सारा दिन करती ही क्या हो?', 'अच्छा, आप हाउसवाइफ हैं! फिर तो मेरा ये काम कर दीजिये!', 'हमारी बहू तो कुछ करती ही नहीं!' जैसे बेहूदे वाक्य भी प्रायः सुनाये जाते हैं. नश्तर की तरह चुभते हैं पर हिन्दुस्तानी औरत है न! सो हँसते-हँसते झेल जाती है. अपने लिए कभी किसी 'लॉकडाउन' की माँग नहीं करती! सोचिये जो एक दिन स्त्रियों ने भी घर के कामों की तालाबंदी कर दी, तो क्या होगा??
ख़ैर.....हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें....!


और हाँ...कोरोना, ये तुमने ठीक नहीं किया! तुम भी उस प्रेमी से स्वार्थी, धोखेबाज़ और घोर स्त्री-विरोधी ही निकले! तुम्हें करीना की हाय लगेगी!
देखना! कुछ ही समय बाद न तो तुम्हें कोई दोस्त मिलेगा और न होस्ट सो प्लीज गैट लॉस्ट!
बाक़ी सब बढ़िया है.
-प्रीति 'अज्ञात' 
#Lockdown_stories5

10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूब ! बहुत खूब आदरणीया ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपको मेरी दुआएँ लगेंगी प्रीतिजी ये लेख लिखने के लिए !!!😊

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब..... कोरोना में सभी की मानसिक दशा को खुल के वया किया हैं आपने ,लाज़बाब ऐसे समय में ये हल्काफुल्का गुदगुदाने वाला प्रसंग पढ़कर मज़ा आ गया ,सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. गृहणियों की व्यथा सुनाता ,गुदगुदाता सुन्दर लेख ।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं