मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

lockdown के प्रथम चरण से उपजते पाँच महत्पूर्ण प्रश्न #lockdownstories15

अब जबकि मार्च के अंतिम सप्ताह से प्रारम्भ lockdown का प्रथम चरण ख़त्म होने को है तो मैं यह सोचने पर विवश हो गई हूँ कि इन इक्कीस दिनों में हमने क्या सीखा? हमने जीवन को जिस तरह जीना सत्य मान लिया था, क्या वह सही था? उतना ही था? ऐसे में पांच प्रश्न इस समय ह्रदय को उद्वेलित कर रहे हैं -

1. क्या अब हम पहले से बेहतर मनुष्य हो गए हैं? 
किसी के भी व्यक्तित्व में दृष्टमान परिवर्तन इतनी आसानी से नहीं होते! एक ही झटके में सारे बुरे लोग अच्छे नहीं हो सकते और न ही सबमें सामूहिक मानवता जाग सकती है. ईर्ष्या-द्वेष, घृणा की राजनीति और समाज में दुर्भावना फैलाने वाले लोगों में भी सेंसेक्स की तरह भीषण गिरावट नहीं आई है लेकिन जो थोड़े कम बुरे हैं या कुंठा ने जिनकी अच्छाइयों को अपने घेरे में ले लिया था; उन्होंने विनम्र होना अवश्य सीख लिया है. उनकी आवाज की तल्ख़ी विलुप्तप्राय है.
अब वे डॉक्टर्स को लूटने वाला नहीं कहते बल्कि उनकी कहानियाँ कहते-सुनते आँख नम कर लेते हैं. 
हमें छोटी-बड़ी  वस्तुओं की क़द्र करना आ गया है. वो सब्जी वाला जिससे मुफ़्त में धनिया लेने और सब्जियों को सही तौलकर देने के लिए चिकचिक हुआ करती थी अब उसकी एक पुकार पर मन कृतज्ञ हो उठता है कि इतने मुश्किल समय में भी उसने हम सबकी गलियों से गुजरने में कोई आपत्ति नहीं दर्ज़ की! साथ ही उसी मुस्कान के साथ यह ढांढस बंधाना नहीं भूलता कि "बहनजी, कल फिर आऊंगा." 
वो स्वीपर अब भी उसी तन्मयता के साथ सड़क पर झाड़ू फेर जाती है और कचरे वाला भी बिना नागा आकर गंदगी समेट लेता है.  ग़र ये न आते तो सोचो किस तरह रहा जाता, हमारे अपने ही घरों में! इनका नियमित आना हमारी संवेदनाओं को पुनर्जीवित करने जैसा है.

2. क्या हमारे जीवन मूल्य बदल गए हैं?
इस समय मृत्यु भय इस क़दर हावी है कि हर तरफ़ जीवन को बचा लेने की क़वायद जारी है. यह एक ऐसा पाठ है जो विश्व भर ने लिया होगा. कुछ ही दिनों में हमारी प्राथमिकताओं की सूची में वृहद रूप से बदलाव आया है और हमने यह भी सीखा कि जीवन जीना उतना भी कठिन नहीं जितना हम और आप माने बैठे थे! आख़िर हमारी मूलभूत आवश्यकतायें हैं ही क्या? रोटी, कपड़ा और मकान के सिवा! कोरोना महामारी के इस घातक समय में जिसे देखिये वह बस एकमुश्त की रोटी और एक सुरक्षित छत से अधिक कुछ नहीं चाहता! हम कम ख़र्च में जीना भी सीख गए हैं.

3. सुख की परिभाषा क्या है और क्या है जीवन की जरूरतें?
वो जिन्होंने भौतिक सुख सुविधाओं और भोग विलास को ही सच्चा सुख मान लिया था उनके लिए सुख के मायने बदल गए हैं. अब वे सुरक्षित और स्वस्थ रहने से अधिक आवश्यक किसी बात को नहीं मानते वरना सोचिये कि दिन-रात समाज के बीच रहने वाले लोग बाहर निकलने से स्वयं को यूँ कभी नियंत्रित कर पाते! अब ग्रॉसरी खरीदते समय चटकारे से कहीं ज्यादा दाल- रोटी की फ़िक़्र सताती है. 'दाल-रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ' को हम सब इस समय जी रहे हैं.
असल में जीवन तो सदा से ही सरल रहा है,बाज़ारवाद और अनौचित्यपूर्ण प्रतिस्पर्धा ने इसे जटिल बना दिया. काम और बातें ऑनलाइन हो रही हैं. आप कह सकते हैं कि मनुष्य की परस्पर दूरी बढ़ रही है लेकिन यह भी समझिये कि कुछ रिश्ते परवान चढ़ नई ऊंचाइयों को भी छू रहे हैं. कहीं दूरियां प्रेम को घटा देती हैं तो कहीं इसे स्नेह के कोमल धागे से बाँध आसमान की छत पर चुपके से टांक भी आती हैं.   

4. क्या हममें आत्मनिर्भरता आई?
इसका जवाब इस समय घर में अकेले रह रहे पुरुषों और गृहिणियों से बेहतर कोई नहीं दे सकता! कितने ही पुरुष और युवा इस समय कहीं किसी दूसरे शहर में हैं. किसी भी तरह के हेल्पर्स की आवाजाही इन दिनों बाधित है तो ऐसे में क्या करें वो? झक मारकर ही सही पर जैसे-तैसे सीख रहे हैं. यह अभी के लिए बहुत कठिन समय है लेकिन उनका भविष्य आगे थोड़ा सरल हो जाएगा. गृहिणियाँ काम से थककर परेशान हैं लेकिन टाइम मैनेजमेंट सीखती जा रहीं हैं, इसका सबसे  प्रमाण और क्या होगा कि हेल्पर्स के बिना भी उनकी मुस्कान सलामत है. 

5. क्या प्रकृति का यह प्रकोप और इससे सबक़ लेना जरुरी था? 
मनुष्य ने जिस तरह और जितनी क्रूरता से प्रकृति का दोहन किया है, उसके प्रतिशोध में यह प्रकृति की Self Healing Process कही जा सकती है. इसके लिए हमें जो क़ीमत चुकानी पड़ रही है वह अत्यंत ही दुखद है. न जाने ये कौन सा नियम है कि सज़ा निर्दोष ही पाता है! कितनों के परिवार ख़त्म हो गए, घर उजड़ गए, नौकरियां छूट गईं और तबाही का ये मंज़र अब तक थमा नहीं है. 
हमारी सावधानी, स्वच्छता और आत्म संयम के साथ जीना सीखने की कला ही अब इससे जीत सकती है लेकिन बदले में हमें भी प्रकृति को यह वादा देना होगा कि इसे विनाश और प्रदूषण से बचाना अब हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है. ग़र हम ये न कर सके तो अगली बार चेतावनी दिए बिना ही ये प्रकृति हमें एक झटके में पलट देगी. 
बेहतर है कि हम प्रकृति से प्रेम करें, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें.  
- प्रीति 'अज्ञात'
https://www.ichowk.in/society/coronavirus-pandemic-5-prominent-questions-related-to-coronavirus-arise-after-lockdown-first-stage/story/1/17338.html
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