बुधवार, 1 अप्रैल 2020

और भरो टमाटर फ्रिज़ में!! #Lockdown_stories3

इन दिनों गली के कुत्तों की बड़ी मौज है। हमारी गली में दर्जन भर से अधिक तो पहले ही थे और हाल ही में कई पिल्लों के जन्म के बाद से रौनक और बढ़ गई है। अब सुबह वाहनों की आवाज की जगह इनकी भौं-भौं ने ले ली है। असल में हमारे घर के कॉर्नर पर खड़े हों तो वह चार पतली सड़कों का केंद्र बिंदु है। ये चौराहेनुमा स्थान कॉमन प्लॉट की तरह है लेकिन गलियों के अपने-अपने कुत्ता नेता हैं। क्या मज़ाल कि किसी को कोई एक इंच भी अपनी गली में क़दम रखने दे! तो सुबह-सुबह ये हाहाकार मचा अपना वही मसला निबटाते हैं और इस चक्कर में सारे एरिया के लोगों के मीठे स्वप्न मंज़िल तक पहुँचने के पहले ही विस्थापन का दर्द झेलते लगते हैं। दूध लेने जाओ तो मनुष्यों की संख्या से कहीं अधिक इन दिव्य आत्माओं के दर्शन का पुण्य लाभ मिलता है। 

अब चूँकि ये बहुमत में हैं तो इश-इश करने से तो सरकते नहीं। चिल्लाकर बोल नहीं सकते क्योंकि गला फट जाता है और उसके बाद खाँसी निकल सकती है। जो निकल गई फिर तो पब्लिक इन कुत्तों से भी बदतर हालत कर देती है। ख़ैर....अभी सेंटीपना भूलकर कुत्तों पर कंसन्ट्रेट करते हैं। तो इनमें से अधिकांश तो फ़ैल-फैलकर सड़क पर चौड़े होकर चल रहे थे लेकिन दो-तीन तगड़े कुत्ते बड़े अपसेट थे। मैंने कहा, "अब काहे का रोना है? अब तो करोना है।" बोले, "का बताएँ! यही तो दुःख है। ज़िन्दग़ी से साला एडवेंचर ही ख़तम हो गया है। जब तक दो-चार मनुष्यों को दौड़ा नहीं लेते, हमारी तो गुडमॉर्निंग ही नहीं होती!"हमने कंधे पर हाथ रख सांत्वना देते हुए मासूमियत से पूछा, "क्यों, आपके यहाँ सुबह व्हाट्स एप्प पे सुप्रभात भेजने का रिवाज़ नहीं है क्या?"

आप तो हँस दिए होंगे पर वो घुन्ना गया। आगे बोला,"बड़ी बोरिंग लाइफ है। बाइक और कार के साथ दौड़ने में अपन की भी वर्ज़िश हो जाती थी और आंटी लोग को डरते देख बच्चों का एंटरटेनमेंट। अब तो दिन बड़ा सूना और निराश गुजर जाता है।"तभी नन्हे पिल्ले ने असहमति दिखाते हुए कहा, "नहीं पापा, मुझे तो आजकल ठीक लग रहा है। अभी कोई पत्थर नहीं मारता! पूँछ में लड़ी बम बाँधकर हमारे दर्द पर हँसता नहीं। मेरा कोई भी दोस्त गाड़ी से कुचला नहीं! हाँ, थोड़ा खाने-पीने की दिक़्क़त है पर चलता है।"

हमने कहा, "दिक़्क़त तो इसलिए है कि तुम लोगों में एटीट्यूड जरुरत से ज्यादा आ गया है। हम जब छोटे थे तो हमारी गली के कुत्ते तो रोटी, सब्जी, ब्रेड सब कुछ खा लेते थे। तुम लोग भूखे रह जाओगे पर चाहिए पारले-G ही। अब नहीं मिल रहा न, तो हम क्या करें?"तभी सभी पिल्लों ने मुझे घेर लिया और बोले, "कोई बात नहीं! आंटी फ्रिज़ में टमाटर तो होंगे न! कल ही आपने मुँह पे पट्टा बाँध के लूटे थे!"मैंने कहा, "अबे गदहों, तुम सब की बुद्धि घास चरने चली गई है। वो मास्क था, उसे लगाकर लूटना नहीं होता है। स्वयं और दूसरों की रक्षा होती है।""ओह्ह! तो इसका मतलब, हिन्दी फिल्मों ने हमें गलत शिक्षा दी है।" सब एक स्वर में बोले। मैं सिर पकड़कर बैठ गई। "कोई न! आप तो लॉन में बिठाकर पहले की तरह पार्टी कराओ। टमाटर से स्किन पे ग्लो आता है।" और सब खी-खी कर मेरे पीछे चल पड़े।  
और भरो टमाटर फ्रिज़ में!!
बाक़ी सब बढ़िया है।  
-प्रीति 'अज्ञात'
#Lockdown_stories3 
Photo- Google



1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 01 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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