बुधवार, 22 अप्रैल 2020

#worldEarthDay: पहली बार हम रोए तो पृथ्वी मुस्कुराई! #lockdownStories



Earth Day 2020: कोरोना महामारी (Coronavirus) के इस कठिन समय में जबकि मनुष्य आंखों में भय की परिभाषा लिए अत्यधिक परेशान एवं दुखी है और सम्पूर्ण विश्व औंधें मुंह गिरा दिखाई दे रहा है. सरकारों के हाथ-पैर फूल चुके हैं और हर जगह अब प्रार्थना को हाथ उठने लगे हैं. ऐसे में यदि कहीं, किसी की खोई रंगत लौट आई है और कोई अब खुलकर सांसें ले पा रहा है तो वह है हमारी प्रकृति (Nature) और पर्यावरण (Environment) . उन्होंने आधुनिक मनुष्यों के उस घमंड को पल भर में चकनाचूर कर दिया जो स्वयं को इस विशाल सृष्टि का विधाता समझ बैठे थे. कोरोना वायरस ने जो वैश्विक तबाही मचाई है. उसका असर आने वाले कई वर्षों तक रहेगा. पीढियां इसे याद रखेंगी और इसकी दुःख भरी तमाम कहानियां इतिहास में दर्ज़ होंगीं. यह भी लिखा जायेगा कि इस आपदा का जो भी एकमात्र सुखद पहलू था वह केवल प्रकृति के पक्ष में खड़ा था. इसके चलते ही दुनिया भर में लॉक डाउन (Lockdown) करना पड़ा. मनुष्य (Human) घरों में क़ैद हो गए और इसी कारण प्रकृति को अपने उन घावों को भरने का समय मिला. जिसे मनुष्य दशकों से कुरेद रहा था.

समझाने भर से जो मान जाए वह मनुष्य कहाँ? युगों से स्वार्थी इंसान बस अपनी ही सोचता आया है और जितना, जिस हद तक हो सकता था. उसने प्रकृति का शोषण किया. मनुष्य पर्यावरण की सुध लेना भूल गया तो इस आपदा ने उसे चारों खाने चित्त करने में कोई दुविधा नहीं समझी. तभी तो आज दुनिया का चेहरा जितना बेनूर और रंगहीन होता जा रहा. प्रकृति उतनी ही जोरों से खिलखिलाने लगी है. आसमान का असल रंग लौट आया है और वृक्षों की हरीतिमा. पहाड़ अब दूर से हाथ हिलाते दिखाई देते हैं तो अपनी स्वच्छता को देख नदियों ने भी गति पकड़ ली है.

प्रकृति की प्रकृति में तो अब भी कुछ नहीं बदला. बस, मनुष्य ही खोटा निकला. हमें प्रकृति जैसा बनना होगा. इससे जीने की प्रेरणा लेनी होगी. आसमान सिखाता है कि मां के आंचल का अर्थ क्या है. पहाड़ सच्चे दोस्त की तरह, किसी अपने के लिए डटकर खड़े रहने की बात कहते हैं. सहनशक्ति धरती से सीखनी होगी.

प्रेम क्या होता है और बिना किसी अपेक्षा के अगाध स्नेह कैसे किया जाता है. किसी के दुख में साथ कैसे दिया जाता है. इस कला को पशु-पक्षियों से बेहतर कोई नहीं जानता.  कट-कटकर गिरने के बाद फिर कैसे बारम्बार उठना है, आगे बढ़ना है.जीवन का यह पाठ पौधे सिखाते हैं. जब तक ये जीवित हैं निस्वार्थ प्राणवायु भी देते हैं कि हमारे अस्तित्त्व को कोई ख़तरा न रहे.

धूप, हवा, पानी से दान की प्रसन्नता महसूस करनी होगी. सभ्यता, बीजों और माटी से समझनी होगी जो उगने के लिए धूप और पोषक तत्त्व साझा करते हैं. ये इंसानों की तरह झगड़ा नहीं करते.

मनुष्य जाति पर यह वो ऋण है, जो हम कभी चुका नहीं सकते लेकिन इसको सहेजकर धन्यवाद अवश्य दे सकते हैं. दुर्भाग्यपूर्ण है कि धन्यवाद देना तो दूर, हम तो इसका उचित प्रकार से संरक्षण भी न कर सके. आज धरती का अस्तित्व ख़तरे में है. वायुमंडल में जो भीषण प्रतिकूल परिवर्तन हुए हैं और प्राकृतिक आपदाओं के रूप में जिसका परिणाम विश्वभर को झेलना पड़ रहा है, वह मानव के अपने कुकृत्यों की ही देन है.

यदि हम प्रकृति की सीख को आत्मसात कर पाते हैं तो ही मनुष्यता को पा सकेंगे. उसके पश्चात् ही प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षित होने की आशा रख सकते हैं. सरकारें कुछ नहीं कर सकतीं जब तक कि हम मनुष्यों की सोच निज हितों से ऊपर न उठे. जिन कारणों से पर्यावरण को हानि पहुंच रही है उन क्रियाकलापों का उचित प्रबंधन होना आवश्यक है साथ ही पर्यावरण संरक्षण हेतु जनमानस को जागरूक एवं सचेत भी करना होगा.

सृष्टि ने हमें वो सब दिया जो इस धरती को स्वर्ग बना सकता था लेकिन हम उसे प्लास्टिक और विषैले पदार्थों से भर अपनी असभ्यता का परिचय देते रहे. परिस्थितियां इतनी विकट हो चुकी हैं कि अब वैश्विक स्तर पर यह घनघोर चिंता का विषय बन चुका है. यहां तक कि पृथ्वी के समाप्त होने की तिथि भी आये दिन घोषित होने लगी है. कोरोना भी यही संकेत दे रहा है.

समय तेजी से आगे बढ़ रहा है पर अभी बीता नहीं. हम सब को अपनी इस धरा से प्रेम है तो इसे ज़ाहिर करना भी सीखना होगा और जब तक ये प्रेम जीवित है तब तक पृथ्वी के बचे रहने की उम्मीद क़ायम है. यदि प्रेम ही ख़तरे में है तो फिर यूं ही जीकर करेंगे भी क्या और किसके लिए! झरनों में जो संगीत है, नदी की जो कलकल है, पहाड़ों से लिपटी जो बर्फ़ है, तारों से खिलखिलाता जो आकाश है, ये बाँहें फैलाए जो वृक्ष खड़े हैं और फूलों की ये सुगंध जिसे घृणा की हजारों जंजीरें भी अब तक बाँध नहीं सकी हैं. ये पक्षी जो आसपास फुदकते, चहचहाते हैं... यही प्रेम है, यही हमारी प्यारी पृथ्वी है.

यह हमारी वो विरासत है जिसे हमें आने वाली नस्लों के लिए सुरक्षित रख छोड़ना है कि वे जब इस दुनिया में आयें तो ये उन्हें भी इतनी ही सुन्दर दिखाई दे जिसके प्रत्यक्षदर्शी हम सब रहे हैं. दुआ करती हूं कि हम सब स्वस्थ, सुरक्षित रहें एवं जब इस संकटकाल से बचकर बाहर आयें तो भूलें नहीं कि अब हमें अपनी इस पृथ्वी को भी बचाना है.

रविन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था कि 'पृथ्वी को पेड़ से सजाकर स्वर्ग जैसा बनाने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए. पेड़ से बातें करना, उन्हें सुनना यह सब महसूस करना ही स्वर्ग सी अनुभूति देता है.'

पृथ्वी ने हमें जीव-जंतुओं, वनस्पतियों की लाखों प्रजातियां उपहार में दी हैं जिनमें से कई प्राकृतिक असंतुलन के कारण विलुप्त हो गईं और कुछ हम मनुष्यों के कारण. विश्व भर को पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों के प्रति जागरूक करने एवं शुद्ध जल, वायु और पर्यावरण के लिए लोगों को प्रेरित करने के उद्देश्य से 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस (Earth Day) के रूप में मनाया जाता है. 'पर्यावरण संरक्षण' के लिए संकल्प लेने का आज से बेहतर और क्या दिन होगा. 'पृथ्वी दिवस' की शुभकामनाएं.

- प्रीति 'अज्ञात'
इसे आप इंडिया टुडे की ओपिनियन वेबसाइट iChowk पर भी पढ़ सकते हैं -
https://www.ichowk.in/society/earth-day-2020-how-planet-earth-detoxing-in-the-time-of-coronavirus-outbreak/story/1/17387.html
#lockdownStories20  

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह !! प्रीति जी ,अत्यंत विचारणीय बिंदुओं को स्कब्दांकित् किया है आपने इस सुंदर लेख में। या गूढ़ व्यवहारिक चिंतन आज दरकार है। हार्दिकशुभकामनायें मा धरा को समर्पित इस सार्थक लेख के लिए 👌👌👌👌🙏🙏

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3680 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जून २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. ये वैश्विक महामारी प्रकृति के दोहन का प्रतिफल है
    बहुत सुन्दर चिन्तनपरक विचारणीय लेख।

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  5. बहुत सुन्दर विवेचनात्मक लेख. प्रकृति का दोहन यदि इसी तरह चलता रहा तो मनुष्य का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा. चेतना जरूरी है.


    मेरी रचना भी पढ़ें

    ओ चित्रकार

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  6. वैचारिक चिंतन देती शानदार प्रस्तुति।।

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