सैंतालीस से लेकर अब तक यदि हम पीछे पलटकर देखें तो भारत ने हर क्षेत्र में उन्नति की है चाहे वह शिक्षा हो, चिकित्सा हो, उद्योग, विज्ञान, सुरक्षा या कोई भी क्षेत्र; हमारी विकास की कहानी हर सफ़हे पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज़ है. हाँ एक बात अवश्य है कि इसके लिए कोई भी दल जब श्रेय लेने या दूसरे के काम में कमी निकालने पर आमादा हो जाता है तो वह दृश्य बड़ा ही वीभत्स एवं अमानवीय लगता है. जनता पूरे विश्वास के साथ अपने नेताओं को चुनती ही इस उम्मीद के साथ है कि वे देश की प्रगति में योगदान देंगे साथ ही उनके लिए भी कुछ सकारात्मक करेंगे. लेकिन न जाने क्यों राजनीति उसे सदा ही अहसान की तरह परोसती आई है.
दुनिया के सामने हमारी प्रगति तो बहुत हुई है और इस हद तक हुई है कि हम अपनी भारतीयता पर गर्व कर नित इस धरती का माथा चूम सकते हैं. दुःख यह है कि एक तरफ़ जहाँ हम भौतिक विकास यात्रा की ओर बढ़ते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर हमारी मानसिकता अत्यंत ही दूषित हो चुकी है. जिस स्वतंत्रता ने हमें पंख दिए और बाँहें फैलाए आसमान तक पहुँचने की उड़ान भरने का हौसला दिया, हमने उससे दूसरों को घायल करना पहले सीख लिया.
हम अपनी लक़ीर बड़ी करने के स्थान पर दूसरों की छोटी करने और उसे मिटाने पर अधिक जोर देने लगे हैं.
हमने इतिहास को पढ़ तो लिया पर उसे ठीक से समझा नहीं और न ही उसकी गलतियों से कोई सीख ही ली. यही दशा(दु) कट्टरपंथियों की भी है जो समय के साथ आगे बढ़ना ही नहीं चाहते. इन्हें हर बात पर आग उगलना आता है. भले ही उसकी लपेट में मानवता त्राहिमाम कर उठे!
हमें विचार करना होगा कि
1. अभिव्यक्ति के नाम पर हम कहीं अपने ही अधिकारों का दुरूपयोग तो नहीं करने लगे हैं?
2. कहीं हम स्वयं ही अपने देश की प्रगति में रोड़ा तो नहीं बनते जा रहे?
3. दुनिया के समक्ष देश की तस्वीर को कहीं हमारे कुकृत्य ही तो बदरंग नहीं कर रहे?
4. कहीं हमसे जाने-अनजाने में ऐसा कुछ तो लिखा-कहा नहीं जा रहा जिस पर हमारी पीढ़ियाँ भी शर्मिंदा हों?
5.देश की उन्नति के स्वप्न को मन में सँजोए कहीं हम अपने कर्तव्य-पथ से भटक तो नहीं रहे हैं?
यदि इस सब का उत्तर ‘न’ है तो हमें न केवल हमारी स्वतंत्रता के मूल्यों का ज्ञान है बल्कि हम दूसरों का भी मार्गदर्शन कर सकते हैं. करना ही होगा! इस पावन मातृभूमि के अनगिनत वीरों के त्याग और बलिदान से मिली स्वतंत्रता अमूल्य है, इसे हम किसी भी नासमझी से जाया नहीं होने दे सकते हैं.
स्वतंत्रता दिवस के इस पावन पर्व पर आइये हम सब प्रण लें कि हमें स्वतंत्रता मिले-
उन विचारों से जो हमारी भावनाओं को हिंसक बनाने की कुचेष्टा करते हैं.
अधिकारों की उस माँग से जो अपने कर्तव्य भुला देश की संपत्ति को नष्ट करने पर आमादा है.
उस सोच से जो हमारी संस्कृति और सभ्यता को अपमानित करने से नहीं चूकती.
उस अंधभक्ति से जहाँ धर्म की आड़ में हजारों युवाओं के मन मस्तिष्क में ज़हर भरा जा रहा है.
उस भेदभाव से जहाँ हजारों निर्धन और विवश इंसानों की मृत्यु से किसी को अंतर नहीं पड़ता, उनकी चर्चा नहीं होती. उन्हें उनके हिस्से का सम्मान तक नहीं मिलता. उनके जीवन का मोल बस एक निश्चित धनराशि तय कर दिया गया है.
जहाँ पैसा ही रिश्तों की धुरी बन जाता है और भावनाओं की क़द्र नहीं होती.
जहाँ स्वार्थसिद्धि के लिए झूठ और मनगढ़ंत आरोप का सहारा ले किसी को मृत्यु द्वार तक पहुंचा नित झूठी कहानियाँ गढ़ी जाती हैं.
जहाँ स्त्रियों के प्रति हुए अपराध में दोषी को पकड़ने के पहले स्त्रियों की ही गलती ढूंढी जाती है. उनके वस्त्रों की चर्चा होती है. चरित्र हनन किया जाता है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश को ही दुनिया के सामने उछाला जाता है.
जहाँ प्रेम से कहीं अधिक घृणा, ईर्ष्या और वैमनस्यता के भावों को खाद पानी दिया जाता है.
जहाँ बच्चों के कोमल हृदय में भय भर दिया गया है. उनके बचपन पर तमाम बोझ लाद दिया जाता है और उन्हें खिलने नहीं दिया जाता.
राजनीति के उस छिछले दरिया से जिसके लिए जनता एक प्यादा भर है.
उन नेताओं से जो अपने लिए सम्मान की अपेक्षा रखते हुए नित दूसरों को अपमानित करने का एक भी मौक़ा नहीं छोड़ते.
उस मानसिकता से जिसने हमारी आंखों पर पट्टी बांध नेताओं को हमारा ख़ुदा बना दिया.
समाज को भ्रमजाल में लपेटने के लिए बने उन समस्त फर्जी एकाउंट्स से जो झूठ के पहाड़ पर खड़े हो सच का थोथा आह्वान करते हैं.
गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं
हम मानते हैं कि प्रत्येक नागरिक को शिक्षा चाहिए, रोज़गार चाहिए और सम्मान से जीने का हक़ भी. लेकिन हमें उस दिन की भी प्रतीक्षा है; जब हमारे भारत का निर्धन, अशिक्षित, शोषित, पीड़ित और बेरोज़गार वर्ग भी पूरी शक्ति के साथ स्वयं की उन्नति हेतु हर संभव प्रयास करे. इस प्रक्रिया में आरोप-प्रत्यारोप की कीचड़ से अपने-आप को दूर रख न केवल सरकार बल्कि प्रत्येक भारतवासी उनके साथ हो और हम सब हृदय से यह भाव महसूस कर पूरे जोशोल्लास के साथ सम्पूर्ण विश्व के सामने यह नारा गुंजायमान कर दें कि “भारत हमको जान से प्यारा है, सबसे प्यारा हिन्दोस्तां हमारा है!”
इस जन्मभूमि पर सौ-सौ जीवन क़ुर्बान!
शहीदों को नमन करते हुए, स्वतंत्रता की एक और सुबह हम सबको मुबारक़!
जय हिंद!
-प्रीति 'अज्ञात' #iChowk
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बहुत सही, सटीक, समीचीन और सार्थक लेख! बधाई!!!
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 16 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक ओर सुंदर अभिव्यक्ति .
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